पर्यावरण पर राजमार्ग की वक्र दृष्टि।
कूड़ा और मलवा गंगा को समर्पण।
मलवे से गंगा नदी को पाटने में जुटी एन एच आई डी सी एल।
डंपिंग ज़ोन के नाम पर चल रहा खेल
नोटिस भेजने तक सीमित है वन महकमा
गिरीश गैरोला
गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के बाद अब इसका अस्तित्व मिटाने की तैयारी के तहत विकास के लिए बनाई जाने वाली सड़कों से निकला मलवा सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों के प्रवाह में डाला जा रहा है, जो इसके आगे जाकर बांध परियोजनाओं के जलाशयों में गाद के रूप में जमा होकर न सिर्फ विधुत परियोजनाओं की उम्र घटा रहा है बल्कि एक सुशुप्त बम की तरह फटने की तैयारी भी कर रहा है। ऑल वेदर रोड में भी गंगा की अनदेखी हो रही है जहाँ डंपिग ज़ोन निर्माण के नाम पर करोडों रुपये केवल कागज पर खर्च दिखाई दे रहे हैं और मलवा सदैव की तरह गंगा को ही समर्पित किया जा रहा है।
भारत सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट आल वेदर रोड पर सड़क चौड़ीकरण करने वाली संस्था ही पलीता लगा रही है।आलम ये है कि सड़क चौड़ीकरण से निकला मलवा एनजीटी के कड़े प्राविधानों के बावजूद सीधे गंगा नदी में उडेला जा रहा है। वन महकमे ने कार्यदायी संस्था को नोटिस देकर नदी में मलवा डालने पर रोक लगा दी है, उसके बाद भी चोरी-छुपके नदी में मलवा डालने का काम जारी है।
आल वेदर रोड निर्माण से पूर्व गंगोत्री हाई वे पर धरासू-नालूपानी के पास भूस्खलन वाली पहाड़ी का उपचार और बड़ेथी चुंगी के पास सड़क चौड़ीकरण कार्य चल रहा है, किंतु पहाड़ी से निकले मलवे को सीधे नदी में पलट दिया जा रहा है। जिसके बाद वन विभाग के डीएफओ संदीप कुमार ने कार्यदायी संस्था को नोटिस देकर जबाब माँगा है। डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि धरासू के पास 0.4 हेक्टेयर वन भूमि और चुंगी बड़ेथी के पास 2500 वर्गमीटर भूमि डंपिंग ज़ोन के लिए दी गयी थी जहाँ पर मानकों के अनुरूप निर्माण करने के बाद ही मलवा डंप किया जाना था किंतु कार्यदायी संस्था ने बगैर स्वीकृत डिजाइन के ही मलवा डालना सुरु कर दिया जो ओवर फ्लो होकर नदी के प्रवाह को बाधित कर रहा था, जिसके बाद विभाग ने नोटिस देकर वहाँ एप्रूव्ड डिजाइन होने तक मलवा नदी के किनारे डालने पर रोक लगा दी है , और ऐसा न करने पर फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट और भारतीय वन अधिनियम के अंतर्गत सख्त कार्रवाई करने की चेतावनी जारी कर दी।
मौके पर मौजूद कार्यदायी संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर नीलाद्रि दास ने बताया कि उनके पास धरासू – नालूपानी क्षेत्र में 675 मीटर क्षेत्र में स्लोप स्टेब्लाईजेशन का काम है जो दिसंबर 2017 में शुरु हुआ था और 2019 में इसे पूर्ण किया जाना है । उन्होंने स्वीकार किया कि वन विभाग द्वारा आवंटित 200 मीटर डंपिंग ज़ोन में अभी तक मलबा डाला जा रहा था किंतु नोटिस मिलने के बाद डंपिंग ज़ोन की एप्रूव्ड डिजाइन मिलने तक़ एक निजी भूमि पर मलवा डंप किया जा रहा है।
मीडिया की खबर का संज्ञान लेने के बाद भले ही वन विभाग ने कार्यदायी संस्था को नोटिस दे दिया हो और कार्यदायी संस्था भी एक निजी भूमि पर मलवा डंप करने की बात कर रही हो किन्तु प्रतिदिन पहाड़ी काटकर निकले मलवे की मात्रा के अनुरूप निजी भूमि पर डाले गए मलवे से कहीं भी मैच नहीं होती। जाहिर है कि अभी भी चोरी छिपे नदी में ही मलवा फेंका जा रहा है। इतना ही नहीं दिसंबर 17 से चल रहे निर्माण कार्य पर मीडिया के खबर के बाद ही वन महकमे की नजर पड़ी, तब आखिर तीन महीने तक विभाग ने क्यों अपनी आंखें बंद कर दी थी! और अब भी केवल नोटिस देकर इतिश्री कर ली ? सड़क में काम कर रही संस्था पर जुर्माना क्यों नहीं लगाया गया?