देहरादून के जोनल प्लान में खामियों की भरमार है। कहीं विशाल वन क्षेत्र को आवासीय व कृषि तो कहीं नदी से सटे जंगल को आवासीय क्षेत्र बना कर दर्शाया गया है
कुलदीप एस. राणा
लगता है कि मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने अपनी पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं ले रहा है। वर्ष 2008 में देहरादून का पहला मास्टर प्लान शहर के विस्तार को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया। इस मास्टर प्लान को 9 जोन में बांटकर २०१२ में जोनल प्लान तैयार किया गया, किंतु मास्टर प्लान में खामियां रह जाने पर तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास एमएच खान ने इसके संशोधन हेतु शासनादेश जारी कर दिया। जोनल प्लान चूंकि मास्टर प्लान का ही प्रतिरूप होता है और मास्टर प्लान में संशोधन हो जाने पर जोनल प्लान को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता महसूस हुई और एक बार फिर हैदराबाद की साइंट इंफोटेक इंटरप्राइजेज कंपनी को इसका टेंडर दे दिया गया और अवलोकन हेतु 21 दिसंबर 2016 से 20 फरवरी 2017 के बीच इसे पब्लिक डोमेन में लाया गया। इस पर जनता के बीच से जिस प्रकार की आपत्तियां और प्रतिक्रियाएं आई, वह एमडीडीए की कार्यशैली और शहर के नियोजन के नजरिए से बहुत ही निराशाजनक प्रतीत होती है।
छोटे-छोटे जोन में बांटकर तैयार किये जाने से अब खामियां ज्यादा बड़ी व स्पष्ट नजर आने लगी हैं। अधिकांश जोन में जमीन के खसरा नंबर को अंकित नहीं किया गया। शहर के नक्शे से कई महत्वपूर्ण राजकीय संस्थान गायब हैं। सैकड़ों बीघा वन भूभाग को कृषि भूमि, आवासीय को व्यावसायिक व सार्वजनिक संपत्ति दर्शाया गया है। शहर के ज्यादातर स्कूल गायब हैं व अधिकांश सड़कों की लोकेशन और दिशाएं बदल गई हंै। उनकी वास्तविक चौड़ाई में भारी-उलटफेर दिख रहा है। कहीं-कहीं तो काल्पनिक सड़कें भी बना दी गयी हैं। प्राकृतिक नाला-खाला क्षेत्र, जो कि मास्टर प्लान में भी दिख रहे हैं, उन्हें जोनल प्लान से गायब कर दिया गया है।
जोनल प्लान में वन भूभाग की ड्राफ्टिंग पर निकल कर आयी तमाम खामियों के बारे में देहरादून डिवीजन के डीएफओ पीके पात्रों से पूछा गया तो उन्होंने इस पर अनभिज्ञता जताई। प्राधिकरण द्वारा जोनल प्लान को तैयार करने में वन विभाग से कोई चर्चा नहीं की गई और न ही प्लान अवलोकन हेतु वन विभाग के पास आया है। वन विभाग का जंगल के विस्तार का अपना नक्शा होता है। वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कार्यवाही के लिए भारत सरकार से अनुमति लेना आवश्यक है। वनाच्छादित भूभाग के लैंड यूज पर भारत सरकार के कड़े नियम है। ऐसे में जंगल को कृषि और आवासीय भूमि कैसे दर्शाया जा सकता है! पात्रो कहते हैं कि अब मामला उनके संज्ञान में आया है। इस पर एमडीडीए से पत्राचार किया जाएगा!
आर्किटेक्ट से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि पहले मास्टर प्लान और अब जोनल प्लान दोनों को देखने से साफ पता चलता है कि संबंधित अधिकारियों ने जोनल प्लान तैयार करने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई है। शहर की वस्तुस्थिति को दर्शाने के लिए न जमीनी और न हवाई सर्वेक्षण किए गए। सड़क, वन, रेजिडेंशियल/कमर्शियल क्षेत्रों की ड्राफ्टिंग में जिस तरह से घोर लापरवाही बरती गई है, उससे आने वाले समय में दूनवासियों को नक्शा पास कराने में भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
शहर के सबसे महंगे और पाश इलाके में शुमार राजपुर क्षेत्र में जमीन के लैंड यूज को लेकर जोनल प्लान में जो खामियां दिखायी दे रही है, वह प्राधिकरण की मंशा पर सवाल खड़े करती हैं। यह ड्राफ्ट भूमाफिया के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पूरे जोनल प्लान को देखकर लगता है कि इसे भूमाफिया, सफेदपोश लोगों और भ्रष्ट नेताओं की मिलीभगत से तैयार किया गया हो। मास्टर प्लान की खामियों का खामियाजा पहले ही दूनवासियों को भुगतना पड़ रहा है।
जोनल प्लान को लेकर अब तक एमडीडीए के पास लगभग 238 आपत्तियां दर्ज हो चुकी हैं। इन्हीं में से एक आपत्ति आर्किटेक्ट ड्राफ्टमैन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष व देहरादून शहर के नियोजित विकास के लिए संघर्षरत डीएस राणा की भी है। जिन्होंने जनहित में लगभग 241 बड़ी खामियों को प्राधिकरण के संज्ञान में लाने का प्रयास किया है। डीएस राणा का कहना है कि मास्टर प्लान/जोनल प्लान किसी भी शहर के भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया सबसे महत्वपूर्ण डॉक्युमेंट होता है, ताकि शहर की प्राकृतिक बनावट और बसावट को ध्यान में रखते हुए जरूरत के मुताबिक शहर के विस्तार का खाका तैयार किया जा सके।
एमडीडीए ने अपनी जिम्मेदारियों को लेकर कभी गंभीरता नहीं दिखाई है। राज्य बनने के बाद भी प्राधिकरण शहर पर बढ़ रहे अतिरिक्त दबाव को कम करने की दिशा में असफल रहा है। अस्सी के दशक में एमडीडीए के गठन और 82 में मास्टर प्लान बन जाने के 26 वर्ष बाद देहरादून को दूसरा मास्टर प्लान नसीब हुआ। नियमानुसार इसे 2001 -02 में ही बन जाना चाहिए था।
अर्बन डेवलपमेंट एक्ट के अनुसार मास्टर प्लान लागू होते ही जोनल प्लान भी तैयार हो जाना चाहिए, जिसे एमडीडीए ने अब जाकर तैयार किया है। देहरादून शहर के बिगड़े स्वरूप के लिए प्राधिकरण की यह लापरवाहियां ही दोषी हैं। राणा मानते हंै कि इन्हीं खामियों का नतीजा है कि जहां कहीं भी जमीन खाली पड़ी दिखती है, उस पर भू माफिया गिद्ध की तरह झपट जाते हैं। प्राधिकरण ने आज तक तो मास्टर प्लान को लागू करने के संदर्भ में भारत सरकार से जरूरी अनुमति नहीं ली है।
प्राधिकरण है कि अवैध निर्माण की कंपाउंडिंग कर उसे लीगल करने के काम में ही जुटा है। जोनल प्लान के इस स्वरूप पर जब चीफ टाउन प्लानर एसके पंत से पूछा गया तो उनका कहना था कि उनका इससे कोई लिंक नहीं है। हम तो सिर्फ उस कमेटी का हिस्सा होंगे, जो खामियों के सुधार के लिए शासन द्वारा गठित की जाएगी।
दो-दो बार जोनल प्लान तैयार किये जाने के बावजूद भी इस तरह की खामियों के उभरने पर विभागीय मंत्री मदन कौशिक कहते हैं कि आपत्तियों की प्रकृति को देखते हुए यदि सुधार संभव नहीं हुआ तो इसे कैंसिल कर नए सिरे से प्लान तैयार करने पर विचार किया जाएगा।
लैंड यूज संबंधी इन इन खामियों को समय रहते सुधार नहीं किया गया तो फिर वर्ष 2025 तक इंतजार करना पड़ सकता है। दूनवासियों को अपनी ही संपत्ति के लैंड यूज चेंज करवाने के लिए शासन के गलियारों में भटकने को मजबूर होना पड़ेगा। घटती जा रही कृषि भूमि, अवैध निर्माण, ट्रैफिक और प्रदूषण की समस्याओं से जूझ रहे देहरादून शहर का स्वरूप कितना बिगड़ चुका होगा, यह समय के साथ दिखाई देगा।
राज्य की राजधानी की पहचान को पीछे छोड़ चुका देहरादून तेजी से अपनी सीमाओं को लांघते हुए आगे बढ़ रहा है। पहाड़ों से पलायन और रोजगार ने यहां की आबादी में तेजी से बढोतरी की है, जिससे देहरादून का लगातार चारों दिशाओं में विस्तार होता जा रहा है। ऐसे में देहरादून के सुनियोजित विकास के लिए एमडीडीए की जिम्मेदारी बनती है।
खामियां ही खामियां
जोन-1: सुभाष रोड स्थित राज्य का पुलिस मुख्यालय, खुड़बुड़ा स्थित गुरुनानक गल्र्स स्कूल और तिब्बती मार्केट नक्शे से गायब हैं। बिंदाल स्थित पावर स्टेशन,धामावाला स्थित मस्जिद, एमकेपी कॉलेज एरिया, रेंजर्स कॉलेज की दोनों तरफ की सड़कें, ईसी रोड स्थित बिजली ऑफिस, जीपीओ के निकट स्थित चर्च, सचिवालय के पिछले गेट के सामने स्थित राजकीय स्कूल, तिलक रोड स्थित वन विभाग कार्यालय व आवास, कांवली रोड स्थित एमडीडीए कॉलोनी सहित अनेक सरकारी व प्राइवेट क्षेत्रों को कमर्शियल एरिया दर्शाया है। घोसी गली अपनी जगह पर नहीं है।
जोन -2: रेस कोर्स स्थित सरकारी फ्लैट व एमएलए हॉस्टल भी नक्शे से गायब हैं। वहीं गुरुद्वारा, पटेलनगर स्थित बीएसएनएल ऑफिस, एसजीआरआर मेडिकल इंस्टीट्यूट, बिंदाल नदी से लगता हुआ बाइपास कारगी चौक का रेजीडेंशल एरिया अदि अनेक क्षेत्र अपने वास्तविक लोकेशन पर नहीं दर्शाए गए हैं। एचएनबी मेडिकल यूनिवर्सिटी को रेसीडेंशल और हर्रावाला रेसीडेंशल कॉलोनी, विधानसभा से लगता हुआ रेसीडेंशल एरिया अदि अनेक क्षेत्र को सार्वजनिक व अद्र्धसार्वजनिक दर्शाया गया है।
जोन -3: कुआंवाला, नकरौंदा, नथुवावाला के एक बड़े भूभाग को कृषि क्षेत्र दर्शाया गया है। इस इलाके का अधिकांश भाग रेसीडेंशल एरिया में कन्वर्ट किया जा चुका है। रायपुर रिंग रोड स्थित राजस्व परिषद और इससे लगते हुए अन्य राजकीय विभागों को कमर्शियल भूमि दर्शाया है। राज्य सूचना आयोग के पिछले तरफ से लगते हुए आवासीय क्षेत्र को वन क्षेत्र दिखाया है। डालनवाला के ब्राइटलैण्ड स्कूल को रेसीडेंशल व राजकीय गांधी शताब्दी हॉस्पिटल को प्लान से गायब किया हुआ है। बलबीर रोड स्थित रिवेरडेल जूनियर स्कूल को भी प्लान में नहीं दर्शाया गया है। मोहिनी रोड स्थित दून इंटरनेशनल स्कूल, चैशायर होम, लक्ष्मी रोड स्थित इन्कमटैक्स कॉलोनी मोहिनी रोड स्थित जल निगम ऑफिस आदि जोन 3 के नक्शे से गायब हैं।
जोन -4: रायपुर के अधिकांश रेसीडेंशल क्षेत्र को कैंट की भूमि दर्शाई गई है। रायपुर रोड स्थित पुलिस स्टेशन से लगते हुए वन क्षेत्र के स्थान पर नक्शे में पार्क दिखाया गया है और उससे लगते हुए आवासीय भूमि को वन भूभाग दर्शाया है। जगतखाना से लगते हुए आवासीय क्षेत्र को कृषि भूमि दिखाया गया है।
जोन -5: जाखन जोहरी गांव से लगते हुए विशाल वन भूभाग को जोनल प्लान में आवासीय और कृषि भूमि दर्शा देना गले से नहीं उतर रहा। मसूरी डायवर्जन इलाके में सिनोला के वन भूभाग को आवासीय दिखाया गया है। उत्तरी गांव (कसिगा) स्थित भगवती इंटर कॉलेज और इससे लग वन क्षेत्र को कृषि भूमि दिखाया गया है। भगवंतपुर से जाने वाले बाइपास रोड कृषि क्षेत्र को दर्शाया ही नहीं गया है। पुरकुल गांव के प्राइवेट जमीन पर नक्शे में जंगल उग आया है। नक्शे में दानियों का डांडा इलाके के विशाल वन क्षेत्र को कृषि क्षेत्र दिखाया गया है।
जोन- 6: गोविन्दगढ़ स्थित ईदगाह नक्शे से गायब है। यमुना कॉलोनी के सरकारी विभाग भी नक्शे में नहीं है। राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री स्कूल को भी नक्शे से गायब कर दिया गया है। ओएनजीसी के हेलीपैड को टूरिस्ट प्लेस दिखाया गया है, जबकि पंडितवाड़ी स्थित राजकीय स्कूल और अधिकांश आवासीय क्षेत्र को कमर्शियल दर्शाया गया है।
जोन- 7: शिमला बाय पास रोड के करीब की व्यक्तिगत एवं कृषि की जमीन को वन भूभाग दिखाया गया है और बड़ोवाला से लगते हुए आवासीय क्षेत्र को कृषि भूमि। मेहूंवाला, हरभजवाला और मेहूंवालामाफी के अधिकांश आवासीय क्षेत्र को कृषि भूमि दिखाया गया है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से लगते हुए एक बड़े भूखंड को जिसमे आवासीय निर्माण हैं, को पार्क और बाग दिखाया गया है। वहीं इंस्टीट्यूट से लगते हुए आरकेडियाग्रांट के आवासीय क्षेत्र को जंगल दिखाया गया है।
जोन- 8: चायबागान से लगते हुए तमाम क्षेत्रों में भारी अनियमितताएं हैं। प्रेमनगर स्थित कारमन स्कूल के सामने से शुरू होकर आसन नदी तक फैले चाय बागान को नक्शे से गायब आवासीय क्षेत्र को चाय बागान दर्शाया गया है। ईस्ट होपटाउन रिया के रेसीडेंशल एरिया को कृषि क्षेत्र दर्शा दिया गया है। आसन नदी से लगते हुए गांव के एक बड़े आवासीय भूभाग को कृषि भूमि दर्शा रखा है।
जोन- 9: कोल्हूपानी में स्थित उर्वरक फैक्ट्री को कृषि भूमि और कृषि भूमि को सार्वजनिक भूमि दर्शाया गया है। पौन्धा स्थित दून इंटरनेशनल स्कूल तो नक्शे से ही गायब है। फुलसनी स्थित आवासीय क्षेत्र व कोटड़ा संतौर स्थित कृषि भूमि को जंगल दिखाया गया है। मसंदावाला स्थित टीएचडीसी कालोनी, जैंतनवाला, गजियावाला के आवासीय क्षेत्रों को कृषि भूमि दर्शाया गया है। संतला देवी मंदिर भी नक्शे से गायब है। द्य