कुमार दुष्यंत
हरीश रावत के हरिद्वार का मोर्चा छोड नैनीताल निकल जाने से हरिद्वार में रावत के समर्थक खासे मायूस हैं।राजनीतिक विश्लेषक भी हरीश रावत के एकाएक नैनीताल शिफ्ट हो जाने के निर्णय को हैरत से देख रहे हैं।लेकिन रावत ने अपनी खास रणनीति के तहत ही अपनी हरिद्वार लोकसभा सीट को छोड़ने का निर्णय लिया है।
हरीश रावत को शुरु से ही हरिद्वार सीट पर कांग्रेस का मजबूत दावेदार माना जा रहा था।हरिद्वार से टिकट की मांग कर रहे स्थानीय दावेदारों के स्थानीय के मुद्दे पर लामबंद हो जाने के बावजूद रावत ने हरिद्वार सीट पर अपना नहीं छोडा।जब हरिद्वार के कांग्रेसियों ने उन्हें बाहरी बताकर विरोध शुरू किया तो रावत ने भी मुकाबले में हरिद्वार के कतिपय कांग्रेसी नेताओं के लिए बदमाशों के नाम पर मांडवाली करने का झन्नाटेदार बयान दे डाला।
हरिद्वार से टिकट की दावेदारी के बीच ही जब ‘पर्वतजन’ ने रावत को हरिद्वार में बाहरी बताए जाने पर उनसे बात की तो उनका साफ कहना था कि संसदीय चुनाव में स्थानीय-बाहरी का कोई महत्व नहीं होता।यह हरिद्वार सीट पर रावत की दावेदारी की गंभीरता दर्शाने के लिए पर्याप्त है।फिर ऐसा क्या हुआ कि हाईकमान द्वारा उन्हें हरिद्वार से टिकट देने की सहमति के बावजूद रावत ने एकाएक हरिद्वार छोडकर नैनीताल की मांग कर डाली?
वास्तव में इसका कारण नैनीताल सीट पर ठाकुर और ब्राह्मण वोटों की लड़ाई है।हरीश रावत ने नैनीताल पर भाजपा टिकट का ऐलान होते ही कांग्रेस हाईकमान से नैनीताल भेजने की मांग कर डाली।जबकि नैनीताल पर रावत के ही समर्थक महेंद्र पाल को टिकट दिये जाने की तैयारी थी।इसी समय रावत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी डाली।जिसमें उन्होंने लिखा, जहाज का पंछी जहाज पर लौटेगा।वास्तव में पूर्व सांसद भगतसिंह कोश्यारी के न लड़ने व भाजपा द्वारा अजय भट्ट का नाम फाईनल करते ही हरीश रावत ने हरिद्वार छोडकर नैनीताल की राह पकड़ ली।
इसका बड़ा कारण यही था कि नैनीताल में अजय भट्ट के आने से रावत की संभावनाएं वहां से जीतने की बढ गयी थी।नैनीताल ठाकुर बहुल सीट है।कोश्यारी के सामने आने पर रावत दो ठाकुरों की भिडंत में नहीं फंसते।जबकि भट्ट के आने के बाद ठाकुर वोटों के ध्रुवीकरण का उन्हें लाभ मिलता दिख रहा है।