मामचंद शाह
उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार की स्पीड और माली हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार के पास 3 माह से डाक टिकट तक के लिए पैसे नहीं हैं।
3 महीने से सचिवालय में डाक का अंबार लग गया है। कमीशनखोरी के लिए ₹5 की चीज ₹50 में भुगतान करने वाली सरकार की संवेदनहीनता की इंतहा देखिए कि विभिन्न समस्याओं से संबंधित महत्वपूर्ण डाक पिछले 3 माह से निर्गम विभाग में अटी पड़ी है।
इस कमरे की हालत यह हो गई है कि डाक के ढेर के पीछे बैठे कर्मचारी तक नहीं दिखाई देते। इन महत्वपूर्ण डाक मे किसी जरूरतमंद बीमार आदमी की चिकित्सा प्रतिपूर्ति की स्वीकृतियां पड़ी होंगी तो किसी के नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर होगा अथवा किसी महत्वपूर्ण मीटिंग में बुलाए जाने का बुलावा होगा।
3 माह में हालत यह हो गई है कि जिस व्यक्ति को चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए तत्काल धन की जरूरत रही होगी, वह ठीक होकर घर भी आ गया होगा।
जिस मीटिंग के लिए कर्मचारी को बुलाया गया होगा वह मीटिंग संपन्न होकर उसका कार्यवृत्त भी जारी हो गया होगा।
डाक के इस ढेर में सूचना के अधिकार के अंतर्गत भेजी गई कई सूचनाएं दबी पड़ी हैं इन्हें लोक सूचना अधिकारी के स्तर से तो टाइम पर भेज दिया गया किंतु यहां दफ़न हो जाने के बाद लोक सूचना अधिकारियों को सूचना आयोग के स्तर से पेनाल्टी का सामना करना पड़ रहा है।
इस तरह के कई महत्वपूर्ण पत्र अभी भी रवानगी का इंतजार करते करते निष्प्राण हो गए हैं।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सचिवालय में इनको भेजने के लिए “नियो पोस्ट” नाम की कंपनी से करार किया गया था। कंपनी ने डाक सिस्टम के लिए दो मशीनें स्थापित की हुई हैं। इसमें से एक मशीन खराब पड़ी हुई है। नियो पोस्ट कंपनी ने एनुअल मेंटेनेंस चार्ज का भुगतान न होने के कारण मशीन ठीक करने से भी इंकार कर दिया है।
एक बड़ा सवाल इस कंपनी की सेवाएं लेने को लेकर भी खड़ा हो रहा है। आखिर सचिवालय प्रशासन क्यों इस कंपनी की सेवाएं ले रहा है और ऐसी कंपनी को एनुअल मेंटेनेंस का ठेका देने की जरूरत क्या है, जो जरा से भुगतान अटक जाने से 3 महीने से हाथ खड़े किए बैठी है।
इस कंपनी के खिलाफ अति आवश्यक सेवाओं में व्यवधान डालने के मामले में कोई कार्यवाही अभी तक क्यों नहीं की गई, यह भी एक अहम सवाल है। सचिवालय प्रशासन के पास इसके अलावा एक विकल्प और भी है कि वह यह सारी डाक सीधे डाकघर में दे सकता है। अथवा भविष्य के लिए एक तरीका यह भी हो सकता है कि डाक विभाग से एक करार कर लिया जाए, जिसमें साल भर में ही भुगतान किए जाने की सुविधा हो। डाक विभाग ऐसी सेवाएं बल्क पोस्टिंग के लिए देता है। ऐसे में डाक विभाग से एक लाइसेंस मात्र ही लेना होता है और उन्हें एडवांस में एकमुश्त राशि जमा करनी होती है। किंतु यह सचिवालय के अफसरों की ही संवेदनहीनता है कि ऐसे किसी भी विकल्प पर विचार न करके डाक का ढेर बढ़ाया जा रहा है। फिर सचिवालय प्रशासन विभाग किस दबाव में है! जब उसके पास सभी विकल्प सुरक्षित हैं
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