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गंगाजल पर संग्राम

July 6, 2016
in पर्वतजन
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गंगाजल लेकर उसे डाक विभाग व आनलाइन स्टोर्स के माध्यम से बेचने की केंद्र सरकार की योजना पर हरिद्वार के संतों-पुरोहितों ने संग्राम छेड़ दिया है।

कुमार दुष्यंत/हरिद्वार

IMG-20160610-WA0030हरिद्वार व ऋषिकेश से गंगाजल लेकर उसे डाक विभाग व आनलाइन स्टोर्स के माध्यम से बेचने की केंद्र सरकार की योजना पर हरिद्वार के संतों-पुरोहितों ने संग्राम छेड़ दिया है। संतों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र ही इस योजना की वापसी की घोषणा नहीं हुई तो संत इसके खिलाफ दिल्ली पहुंचकर जंतर-मंतर पर धरना देंगे। संतों की इस चेतावनी के बाद केंद्र की घर-घर गंगाजल पहुंचाने की यह योजना खटाई में पड़ती दिख रही है।
ई-पोर्टल के माध्यम से गंगाजल बेचने की योजना के केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के ऐलान के बाद से ही हरिद्वार में इसको लेकर माहौल गर्माया हुआ है। हरिद्वार के नागरिक, साधु-संत व पंडे-पुरोहित केंद्र सरकार की इस भावी योजना के खिलाफ खड़े हो गए हैं। लोगों की धार्मिक भावनाओं व हरिद्वार की महत्ता से जुड़ा हुआ मुद्दा होने के कारण इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है।
संतों में मचा शोर
हरिद्वार के संतों ने भूमा पीठाधश्वर व हिंदू हितों के लिए संघर्षशील संत स्वामी अच्युतानंद के नेतृत्व में एकत्रित होकर केंद्र से शीघ्र इस योजना को निरस्त करने की मांग की है। संतों ने सरकार की इस योजना को संतों और करोड़ों गंगा भक्तों की धार्मिक भावनाओं पर चोट करने वाला बताया है। संतों ने एक स्वर में इस योजना को लाने वाले केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से तुरंत यह योजना वापस लेने की मांग करते हुए चेताया है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो हरिद्वार ऋषिकेश के सभी संत जंतर मंतर पर एकत्रित होकर गंगा व गंगा भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाली केंद्र सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी संत-समाज की इस मांग का समर्थन किया है। संतों ने इसके बाद भी सरकार के न मानने पर योजना को रोकने के लिए न्यायालय की शरण में जाने का मन भी बना लिया है।
गंगा से आजीविका एवं धार्मिक-सांस्कृतिक रूप से सीधे-सीधे जुड़े हरिद्वार के पंडे-पुरोहितों में भी इस योजना को लेकर आक्रोश है। पुरोहितों का कहना है कि तीर्थों की यात्रा तीर्थ पर आकर ही सार्थक होती है, लेकिन सरकार गंगाजल को घर बैठे उपलब्ध कराकर प्राचीन तीर्थ-परंपरा को ही समाप्त करने पर तुली है।
व्यापारी भी नाराज
व्यापारी केंद्र की इस योजना से अलग नाराज हैं। उनका मानना है कि यह अधार्मिक तो है ही साथ ही तीर्थ नगर के व्यापार को भी चौपट करने वाला है। जब लोगों को घर बैठे ही गंगाजल मिल जाएगा। तो भला इसके लिए वह हरिद्वार या ऋषिकेश क्यों आएंगे! व्यापारी मानते हैं कि केदारनाथ आपदा के बाद से ही सुस्त चल रहे व्यापार को सरकार की यह योजना ओर भी चौपट कर देगी। जिसका सीधा असर इन तीर्थ नगरों के साथ-साथ राज्य की आर्थिकी पर भी पडऩा तय है।
होगी कांवड़ यात्रा फीकी
उल्लेखनीय है कि हरिद्वार-ऋषिकेश का प्रमुख आकर्षण गंगा ही है। प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु गंगा स्नान एवं अपने धार्मिक कर्मकांडों को संपन्न करने के लिए यहां पहुंचते हैं। इनमें प्रति वर्ष दो बार संपन्न होने वाले कांवड़ मेले तो सीधे-सीधे गंगाजल के ही मेले हैं। इन मेलों में प्रतिवर्ष देश के विभिन्न भागों से करोड़ों श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल ले जाकर अपने शिवालयों में चढ़ाते हैं। सरकार की घर बैठे जल उपलब्ध कराने की योजना से इन महामेलों का प्रभािवत होना तय है। सरकार की इस योजना की घोषणा के साथ ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है।
यूकेडी, आम आदमी पार्टी व कांग्रेस ने इस योजना का विरोध करते हुए केंद्र और भाजपा को घेरना शुरू कर दिया है। संतों-पुरोहितों की धरने-प्रदर्शन व कोर्ट-कचहरी की चेतावनी के बावजूद सरकार ने इस पर अभी तक रोलबैक की घोषणा नहीं की है। इससे इस मुद्दे पर अभी और भी संग्राम छिडऩे की संभावना बनी हुई है।

कई बार झुकी सरकार
हरिद्वार से जुड़ी कई योजनाओं पर पहले भी संतों-पुरोहितों के विरोध के बाद सरकारों को रोलबैक करना पड़ा है। 1926 में जब अंग्रेजों ने हरकी पैड़ी पर ही बांध बनाना शुरू कर दिया तो पुरोहितों ने इसका विरोध किया। आखिर अठारह महीनों की लड़ाई के बाद अंग्रेजों को पंडों के आगे झुकना पड़ा।
इसी प्रकार हरिद्वार में गंगा किनारे अप्पूघर के निर्माण, गंगा में बोट चलाने, फव्वारे लगाने के निर्णय भी संतों के विरोध के बाद शासन को वापस लेने पड़े। तीन वर्ष पूर्व जब नैनीताल की भांति गंगा में प्रदूषण दूर करने वाली मशीनें लगाई जाने लगी तो पंडे इसके भी खिलाफ खड़े हो गए। करीब दो दशक पूर्व गुलशन कुमार की टी-सिरीज ने गंगा में बोतल बंद पानी का प्लांट लगाया था, लेकिन संतों के विरोध के बाद उन्हें भी अपना यह संयंत्र समेटना पड़ा। निशंक सरकार के कार्यकाल में भी सरकार ने गंगाजल को बोतलबंद पेयजल के रूप में परोसने का मन बनाया था, लेकिन संभावित विरोध के कारण ये योजना भी परवान नहीं चढ़ी।

ये है योजना
केंद्र सरकार के दो साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस योजना का ऐलान किया था। इसके तहत डाक विभाग को आनलाइन वस्तुओं की आपूर्ति करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ मिलकर गंगाजल वितरण की योजना बनानी हैं। गंगाजल की छोटी यूिनट का पैकेजिंग मूल्य दस रुपए रखा गया है। इसमें अन्य खर्चे एवं ई-कॉमर्स कंपनियों व डाक विभाग का मुनाफा अभी तय किया जाना है।
गंगाजल का विज्ञापन ई-कॉमर्स कंपनियां करेंगी। वितरण का जिम्मा डाक विभाग का होगा।

केंद्र का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण
गंगाजल बेचने का केंद्र सरकार का निर्णय बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। पहले राम मंदिर के नाम पर जनता को लुभाते रहे। अब जिस गंगा के नाम पर जीतकर आए, उसी का पवित्र जल बेचने की बात कर रहे हैं। बेचने से पहले सरकार को इस बात की चिंता करनी चाहिए कि गंगा में लगातार घट रहे जल को कैसे बचाया जाए!
– किशोर उपाध्याय
प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस
केंद्र के खिलाफ दुष्प्रचार
सनातन धर्म में गंगा व गंगाजल का विशेष महत्व है। सभी लोग पवित्र जल को अपने घरों-मंदिरों में रखते हैं। इसी भावना से केंद्र सरकार ने इसे घर-घर पहुंचाने का निर्णय लिया है, लेकिन कुछ लोग अपने स्वार्थ के कारण जल बेचने की बात कहकर भ्रमित कर रहे हैं।
-अजय भट्ट, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा

गंगा कलियुग में साक्षात देव है। उसके जल को बेचना महापाप है। इतिहास उठाकर देख लीजिए। जिसने भी गंगा के महत्व को कम कर आंका है। उसका पतन हुआ है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
– पं. यतीन्दर सिखौला, (पुरोहित/गंगासभा)

गंगाजल बेचना उचित नहीं है। यह तीर्थ परंपरा के भी खिलाफ है। जब आप घर बैठे ही जल उपलब्ध करा देंगे तो फिर इन तीर्थों पर आकर कोई क्या करेगा?
– मदनलाल अग्रवाल (व्यापारी हरिद्वार)

गंगा को भारतीय धर्म-शास्त्रों में मां का दर्जा दिया गया है और मां की पूजा की जाती है। उसके पवित्र-अमृत तुल्य जल को बेचने की बात करना भी पाप है।
– स्वामी अच्युतानंद तीर्थ (भूमा पीठाधीश्वर)

व्यापारी मानते हैं कि केदारनाथ आपदा के बाद से ही सुस्त चल रहे व्यापार को सरकार की यह योजना ओर भी चौपट कर देगी। जिसका सीधा असर इन तीर्थ नगरों के साथ-साथ राज्य की आर्थिकी पर भी पडऩा तय है।



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