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चहेते बैकडोर, बाकी नो मोर

July 5, 2016
in पर्वतजन
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चहेते बेरोजगारों को आउटसोर्स के माध्यम से बैकडोर भर्ती करने की घटिया सियासत के कारण उत्तराखंड को योग्य कर्मचारी नहीं मिल रहे।

पर्वतजन ब्यूरो

ड्राइवरों तथा कंडक्टरों को आउटसोर्स के माध्यम से भर्ती किए जाने का प्रस्ताव मुख्य सचिव के सामने आया तो मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह इस बात पर अड़ गए कि जब निगम में पद रिक्त हैं तो इन पर सीधी भर्ती होनी चाहिए। मुख्य सचिव ने संविदा के माध्यम से भर्ती करवाने के औचित्य पर सवाल उठाए।

उत्तराखंड में आउटसोर्स के जरिए सरकारी महकमे में होने वाली भर्तियों पर फिलहाल मुख्य सचिव ने रोक तो लगा दी है, किंतु यह रोक कितना समय रहेगी, यह एक अहम सवाल है।
सियासी अस्थिरता का फायदा उठाते हुए मंत्रियों ने अपने चहेतों को रोजगार देने के लिए अफसरों पर दबाव डालकर सरकारी विभागों में आउटसोर्स के जरिए हजारों भर्तियां कर दी। पिछले दिनों परिवहन निगम में ६०० ड्राइवरों तथा कंडक्टरों को आउटसोर्स के माध्यम से भर्ती किए जाने का प्रस्ताव मुख्य सचिव के सामने आया तो मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह इस बात पर अड़ गए कि जब निगम में पद रिक्त हैं तो इन पर सीधी भर्ती होनी चाहिए।
मुख्य सचिव ने संविदा के माध्यम से भर्ती करवाने के औचित्य पर सवाल उठाए। परिवहन निगम की बोर्ड बैठक का यह प्रस्ताव मुख्य सचिव के आपत्ति जताने पर निरस्त हो गया।
चहेतों के लिए बैकडोर
वर्तमान में पूरे राज्य के सरकारी विभागों में लगभग ३० हजार युवक-युवतियां आउटसोर्स के माध्यम से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें से लगभग २० हजार कर्मचारी अकेले उपनल से नियुक्त हैं। इसके अलावा होमगार्ड और पीआरडी तथा युवा कल्याण विभाग भी आउटसोर्सिंग एजेंसी के रूप में काम करता है। इनके माध्यम से भी हजारों युवा सरकारी विभागों में कार्यरत हैं।
आउटसोर्स से काम करने वाले कर्मचारियों से जमकर काम लिया जाता है, लेकिन इनका वेतन समान पद और समान काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों के मुकाबले एक चौथाई से भी कम है। इन्हें पीएफ तथा मेडिकल के साथ ही अन्य भत्ते और अवकाश की सुविधाएं भी नहीं मिलतीं। विभिन्न विभागों में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब आउटसोर्स कर्मचारियों को विभाग में ही पहले संविदा पर ले लिया गया और फिर नियमित कर दिया गया। इन्हीं उदाहरणों को उम्मीद के रूप में पालकर आउटसोर्स कर्मचारी अपना शोषण कराने को मजबूर हैं।

योग्य उम्मीदवार हताश
सरकारी महकमों में लंबे समय से पद रिक्त होने के बावजूद आउटसोर्स से भर्ती की जा रही है। अच्छा पढ़ा-लिखा और योग्य उम्मीदवार इस उम्मीद में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियां करता है कि भविष्य में वैकेंसी निकलने पर उसे नौकरी मिलेगी। वह इसी उम्मीद में ८-१० हजार की आउटसोर्स नौकरी के लिए आवेदन नहीं करता। हालात यह है कि आउटसोर्स के कारण योग्य बेरोजगारों के लिए सरकारी नौकरी के दरवाजे लगभग बंद होते जा रहे हैं।
आउटसोर्स भर्तियों में इनके कोटे का ध्यान नहीं रखा जाता। सरकारी विभाग के बाकायदा एक शासनादेश में इस बात की व्यवस्था है कि आउटसोर्स से की जाने वाली भर्तियों में आरक्षण लागू करने की बाध्यता नहीं है।
नियमितीकरण की उम्मीद
आउटसोर्स से तैनात उपनल के कर्मचारी बाकायदा यूनियन बनाकर लंबे समय से नियमितीकरण की मांग कर रहे हैं। आउटसोर्स पर भर्ती लगभग ६ हजार अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर सरकार को झुकना पड़ा था। सरकार ने पहले अतिथि शिक्षकों को थोड़े समय के लिए ब्लॉक कैडर पर नियुक्त किया था, किंतु बाद में इन्हें प्रदेश के किसी भी विद्यालय के लिए योग्य मानकर बाकायदा शासनादेश जारी कर पुनर्नियुक्ति दे दी थी। हालांकि हाईकोर्ट में दायर एक याचिका पर फैसला देते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एक एकल पीठ ने इस पर रोक लगा दी।
अतिथि शिक्षकों का बवाल थमा भी नहीं था कि मनरेगा कर्मचारी भी स्थायी नियुक्ति की मांग को लेकर आंदोलनरत हो चुके हैं। ६ जून को लगभग २७६ मनरेगा कर्मचारी स्थायी नियुक्ति की मांग को लेकर सचिवालय कूच करते हुए गिरफ्तार किए गए थे। चुनावी वर्ष में इन्हें उम्मीद है कि उनके हित में कुछ न कुछ फैसला जरूर होगा।
खाली पदों के सापेक्ष सीधी भर्ती न कर राज्य सरकार को पिछले वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा लगभग १० हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। हिमाचल प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती बाकायदा विज्ञप्ति और परीक्षा के माध्यम से कराकर केंद्र सरकार से १० हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त मदद हासिल की थी, किंतु उत्तराखंड सरकार चहेतों को चिपकाने के चक्कर में बैकडोर से भर्ती करने के कारण यह अतिरिक्त मदद गंवा बैठी।


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