पूरे उत्तराखंड को अवैध होर्डिंगों से पाटकर अपनी उपलब्धियों का बखान करने वाली भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार निकाय चुनाव को लेकर गंभीर नहीं है।
उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर लगातार हीलाहवाली करती आ रही डबल इंजन सरकार को 4 अप्रैल 2018 को तब तगड़ा झटका लगा, जब राज्य चुनाव आयुक्त रिटायर्ड आईएएस सुबर्धन ने प्रैस कांफ्रेंस की। चुनाव आयोग इससे पहले हाईकोर्ट में समय से निकाय चुनाव कराने और डबल इंजन सरकार द्वारा जानबूझकर चुनाव में देरी का आरोप लगा चुका है।
चुनाव आयुक्त सुबर्धन का कहना है कि चुनाव आयोग समय से निकाय चुनाव कराने के लिए तैयार है, किंतु राज्य सरकार ने जानबूझकर कभी निकायों के सीमा विस्तार, कभी परिसीमन तो कभी जनसुनवाई के मुद्दे पर चुनाव आयोग का समय जाया किया। चुनाव आयुक्त ने कहा है कि 9 अप्रैल को शासन ने चुनाव की अधिसूचना की तैयारी की बात कही थी, किंतु अब लगातार राज्य सरकार असहयोग कर रही है।
सुबर्धन का कहना है कि निकाय चुनाव के लिए जुलाई 2017 से मुख्यमंत्री से समय मांगा जा रहा है, लेकिन आज तक समय नहीं मिला। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक से कई बार बात हुई है। उनसे कहा कि परिसीमन प्रक्रिया से चुनाव प्रभावित होंगे, लेकिन मदन कौशिक ने भी नहीं सुनी। आज स्थिति यह है कि न तो परिसीमन पूरा हुआ, न आरक्षण तय हुआ। सुबर्धन के अनुसार 9 मार्च को निकाय चुनाव पर एक कार्यक्रम सरकार को भेजा गया था। जिसमें सरकार को 2 अप्रैल को अपना काम पूरा करने के लिए कहा गया था, किंतु सरकार ने अब 9 अप्रैल की नई तिथि दी है। चुनाव आयुक्त सुबर्धन का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि राज्य सरकार 9 अप्रैल तक अपना काम पूरा कर पाएगी, इसलिए आयोग को हाईकोर्ट जाना पड़ा। सुबर्धन के अनुसार उन्होंने वीवीपीटी मशीन खरीदने के लिए 17 करोड़ रुपए की मांग की थी, किंतु सरकार ने 17 पैसे भी नहीं दिए। सरकार की मंशा से ऐसा लगता है कि वो चुनाव करवाना ही नहीं चाहती, किंतु लोकतंत्र में चुनाव जरूरी है और आयोग को 4 मई से पहले चुनाव संपन्न करवाने हैं।
देखना है कि चुनाव आयुक्त सुबर्धन की फटकार के बाद डबल इंजन सरकार का अगला रुख क्या होता है।