पर्वतजन
  • Home
  • उत्तराखंड
  • सरकारी नौकरी
  • सरकारी योजनाएं
  • इनश्योरेंस
  • निवेश
  • ऋृण
  • आधार कार्ड
  • हेल्थ
  • मौसम
No Result
View All Result
  • Home
  • उत्तराखंड
  • सरकारी नौकरी
  • सरकारी योजनाएं
  • इनश्योरेंस
  • निवेश
  • ऋृण
  • आधार कार्ड
  • हेल्थ
  • मौसम
No Result
View All Result
पर्वतजन
No Result
View All Result
Home पर्वतजन

…तो बच निकला डी. लाल!

November 7, 2016
in पर्वतजन
ShareShareShare
Advertisement
ADVERTISEMENT

रिश्वत लेते हुए विजिलेंस टीम द्वारा धरे गए उप श्रमायुक्त डी. लाल को सचिवालय के शीर्ष अधिकारियों ने अपनी बाबूगिरी का कमाल दिखाते हुए बचा लिया

पर्वतजन ब्यूरो

रिश्वत लेते धरे गए तो
रिश्वत देकर छूट जाइए
वाकई किसी कवि ने बहुत ठीक कहा है, जिसकी चलती है, उसकी क्या गलती है। श्रम विभाग के उप श्रमायुक्त डी लाल को सतर्कता अधिष्ठान द्वारा १६ नवंबर २०१० को टै्रप किया गया था। जब विजिलेंस ने डी. लाल के खिलाफ अभियोजन चलाने के लिए शासन से स्वीकृति दिए जाने की अनुमति मांगी तो शासन ने मनमाने तर्क देते हुए इंकार कर दिया।
कमांडर सिंह नयाल इंटीग्रेटेड कारपोरेट सोल्यूशंस कंपनी में काम करता था। सिडकुल के अंतर्गत पंतनगर स्थित इस कंपनी में नयाल प्रबंधक के पद पर कार्यरत था। नयाल सौ श्रमिकों को काम पर लगाने का लाइसेंस बनाने हेतु उप श्रमायुक्त कार्यालय गया। उप श्रमायुक्त डी. लाल ने संपूर्ण औपचारिकताएं पूर्ण करने के एवज में नयाल से २० हजार रुपए रिश्वत की मांग की। जिसमें १५ हजार रिश्वत देना तय हुआ।
कमांडर सिंह नयाल ने यह बात अपने मकान मालिक नागेंद्र भट्ट से की। नागेंद्र भट्ट सतर्कता अधिष्ठान में ही कार्यरत है। संभवत: उन्होंने ही इसकी शिकायत विजिलेंस से करने की सलाह दी।
सतर्कता के प्रभारी पुलिस अधीक्षक ने शिकायत पर जांच की और तथ्य सही पाए जाने पर आरोपी डी. लाल की आम छवि रिश्वतखोर होने की पाए जाने पर कार्यवाही शुरू कर दी। डी. लाल राजपत्रित पद पर नियुक्त था, इसलिए शासन से अनुमति लेने के बाद टै्रप टीम का गठन किया गया।
१६ नवंबर २००९ को टै्रप टीम ने स्वतंत्र साक्षियों के समक्ष डी. लाल को कार्यालय में कमांडर नयाल से १५ हजार की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया। डी. लाल बाकायदा जेल चला गया। विभाग से निलंबित हो गया, लेकिन संभवत: डी. लाल को अपने हुनर पर भरोसा था। डी. लाल ने न्यायालय में अपील की और १० दिसंबर २००९ में उसे जमानत दे दी गई। इसमें डी. लाल ने न्यायालय से कहा कि उसे षडयंत्र के तहत फंसाया गया।
जमानत मिलने के बाद शासन से अभियोग चलाए जाने की अनुमति को लेकर असली खेल शुरू हुआ। समय के साथ डी. लाल के समर्थन में कंपनी की ओर से एक पत्र जारी हुआ कि कमांडर सिंह नयाल को १३ अक्टूबर २००९ को कंपनी से निकाल दिया गया था, जबकि अभियुक्त डी. लाल को १६ नवंबर २००९ को ट्रैप किया गया। इस पत्र ने न्यायालय को डी. लाल की जमानत दिलाने में मदद की और न्यायालय ने अभियुक्त को ३० हजार रुपए का निजी मुचलका तथा इतनी ही धनराशि की दो प्रतिभूतियां जमा करने पर जमानत दे दी।
सवाल उठता है कि यदि वाकई कंपनी ने कमांडर को निकाला था तो उसकी द्वेष भावना कंपनी के प्रति होनी चाहिए थी। श्रम विभाग के डी. लाल के प्रति द्वेष भावना से फंसाने के पीछे कोई भी उद्देश्य नहीं बनता था, किंतु शासन के अधिकारियों ने इस दिशा में जरा भी सोचना उचित नहीं समझा और मामले को संदिग्ध बताते हुए डी. लाल के खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। शासन से अनुमति न मिलने पर सतर्कता विभाग को बैकफुट पर आना पड़ा और डी. लाल शान के साथ नौकरी करते हुए रिटायर भी हो गया।
शासन ने इस बात को भी कुतर्क के तौर पर इस्तेमाल किया कि कमांडर नयाल सतर्कता अधिष्ठान के कर्मचारी का किरायेदार है, इसलिए सतर्कता की रिपोर्ट संदिग्ध है।
शासन में भ्रष्ट अधिकारियों के इस तरह के कई मामले कार्यवाही के लिए आते हैं और शासन के अधिकारी कार्यवाही के लिए अनुमति देने के बजाय ेभ्रष्टाचार को शह दे रहे हैं।
डी. लाल के खिलाफ यदि मुकदमा चलाने की अनुमति सतर्कता विभाग को दे दी जाती तो न्यायालय में तमाम सबूतों और गवाहों की उपस्थिति में न्यायालय में खुद ही गलत-सही का फैसला हो सकता था, किंतु शासन अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करते हुए डी. लाल जैसे भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देता रहता है।
जाहिर है कि यह संरक्षण चांदी के जूतों के बल पर ही दिया जाता है, किंतु इससे एक नई परिपाटी तैयार हो गई है और ट्रैप में फंसने वाले भ्रष्ट अफसर डी. लाल जैसे मामलों को नजीर की तरह पेश करते हुए अपने लिए शासन में राहत मांगते फिरते हैं। ट्रैप में फंसे हुए लगभग आधा दर्जन ऐसे ही भ्रष्ट अफसर डी. लाल के केस को नजीर के तौर पर पेश कर रहे हैं और वर्तमान में सतर्कता से बचने के लिए शासन के चक्कर काट रहे हैं। यह परंपरा उत्तराखंड के भविष्य के लिए सही नहीं है।

डी. लाल के खिलाफ यदि मुकदमा चलाने की अनुमति सतर्कता विभाग को दे दी जाती तो न्यायालय में तमाम सबूतों और गवाहों की उपस्थिति में न्यायालय में खुद ही गलत-सही का फैसला हो सकता था, किंतु शासन अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करते हुए डी. लाल जैसे भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देता रहता है।


Previous Post

पालिकाओं पर फंसा पेंच!

Next Post

भ्रष्टों में शुमार 'उत्तम कुमार'

Next Post

भ्रष्टों में शुमार 'उत्तम कुमार'

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *






पर्वतजन पिछले २3 सालों से उत्तराखंड के हर एक बड़े मुद्दे को खबरों के माध्यम से आप तक पहुँचाता आ रहा हैं |  पर्वतजन हर रोज ब्रेकिंग खबरों को सबसे पहले आप तक पहुंचाता हैं | पर्वतजन वो दिखाता हैं जो दूसरे छुपाना चाहते हैं | अपना प्यार और साथ बनाये रखिए |
  • ब्रेकिंग : त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी, दो चरणों में होंगे मतदान
  • डीएम सख्त – बैंक पस्त:  विधवा फरियादी की चौखट पर जाकर  डीसीबी ने लौटाये सम्पति के कागज। दिया नो ड्यूज सर्टीफिकेट
  • No update
  • बड़ी खबर: राज्य आंदोलनकारियों को श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय देगा शिक्षा और चिकित्सा में राहत
  • हादसा: दीवार गिरने से एक ही परिवार के चार लोगों की दर्दनाक मौत..
  • Highcourt
  • इनश्योरेंस
  • उत्तराखंड
  • ऋृण
  • निवेश
  • पर्वतजन
  • मौसम
  • वेल्थ
  • सरकारी नौकरी
  • हेल्थ
June 2025
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
« May    

© 2022 - all right reserved for Parvatjan designed by Ashwani Rajput.

No Result
View All Result
  • Home
  • उत्तराखंड
  • सरकारी नौकरी
  • सरकारी योजनाएं
  • इनश्योरेंस
  • निवेश
  • ऋृण
  • आधार कार्ड
  • हेल्थ
  • मौसम

© 2022 - all right reserved for Parvatjan designed by Ashwani Rajput.

error: Content is protected !!