जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार ने समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं और अपने चुनावी दृष्टिपत्र के वायदों को ध्यान में रखते हुये नये वित्तीय वर्ष के लिये अपने संकल्पों के पिटारे के रूप में भारी भरकम बजट तो पेश कर दिया मगर उससे भी भारी सवाल यह खड़ा हो गया कि आखिर वित्तीय संसाधनों के अभाव में सरकार उन संकल्पों और वायदों को निभायेगी तो कैसे? अनुमानित राजस्व हासिल न हो पाने के कारण सरकार कर्ज जैसे श्रोतों से वेतन जैसे अपने आवश्यक खर्चों को तो पूरा कर लेती है लेकिन वित्तीय अकाल का सीधा असर सरकार की विकास और जनकल्याण की योजनाओं पर पड़ता है। वर्ष 2017-18 में ही सरकार 14 सौ करोड़ से अधिक की घोषित योजनाओं और बजट के वायदों को पूरा नहीं कर पायी।
भराड़ीसैण में पेश बजट पर एक सरसरी नजर डालें तो उसमें कुल अनुमानित आय या राजस्व में 32.96 प्रतिशत हिस्सा अपने कर राजस्व का माना गया है। जबकि पिछले वर्ष के बजट में अपने करों से 34.36 प्रतिशत राजस्व अनुमानित था। इसी प्रकार करेत्तर राजस्व से 7.64 प्र.श. केन्द्रीय करों से 18.26 प्र.श. केन्द्रीय सहायता से 19.98 प्र.श. लोक लेखा शुद्ध से 0.44 प्र.श. ऋणों एवं अग्रिम वसूली से 0.07 प्र.श और लोक ऋणों से 20.95 प्र.श. हासिल होने का अनुमान लगाया गया है। पिछले बजट में केन्द्रीय सहायता 20.52 प्र.श. अनुमानित थी जो इस बार घट इसलिये गयी क्योंकि पिछली बार केन्द्र सरकार से अपेक्षित सहायता नहीं मिल पायी। अपने संसाधनों के अभाव में इस बार सरकार का कर्ज का और अधिक बोझ उठाने का इरादा इस बजट में नजर आ रहा है। बजट अनुमान के अनुसार कुल राजस्व में कर्जों से अर्जित रकम का हिस्सा 20.95 प्रतिशत होगा जो कि गत बजट में 19.97 प्रतिशत था। राज्य के खचों पर भी नजर डालें तापे नये साल में कुल बजट का 31.55 प्र.श वेतन, भत्ते, मजदूरी और अधिष्ठान व्यय पर खर्च होगा। इसी प्रकार अब तक लिये गये कर्ज के ब्याज के रूप् में ही बजट का 10.67 प्र.श. और पेंशन आदि पर 12.29 प्र.श. खर्च होगा। बजट में निर्माण कार्यों के लिये 12.73 प्रतिशत की राशि रखी गयी है। वह भी तब खर्च होगी जब कि सरकार की जेब में वेतन, भत्ते, पेंशन, पेट्रोल, मंत्रियों के फिजूल खर्चे आदि से कुछ बचेगा। पिछले बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिये यह राशि 13.23 प्रतिशत थी।
जाहिर है कि बजट में साल दर साल राज्य के विकास और राज्यवासियों का हिस्सा घटता जा रहा है और सरकार तथा उसकी मशीनरी और सत्ताधारियों का हिस्सा बढ़ता जा रहा है।
वर्तमान सरकार ने गत वर्ष 39957.77 करोड़ का जो बजट बजट पेश किया था उसमें से केवल लगभग 38046 करोड़ ही खर्च हो पाये। योजनाओं का पूरा बजट तभी खर्च होता जबकि सरकार के पास उतनी बड़ी रकम होती। जब आप पिछले साल विभिन्न श्रोतों से भारी कर्ज लेने के बाद भी 38हजार करोड़ की ही रकम जुटा पाये और उसके बाद भी ठेकेदारों का भुगतान और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं आदि के कार्मिकों को वेतन नहीं दे पाये तो इस साल की 45202.94 करोड़ रु0 की रकम कैसे जुटा पायेंगे ? यह सवाल प्रकाश पन्त जैसे संवेदनशील वित्तमंत्री को अवश्य ही परेशान कर रहा होगा।
नये बजट की राशि में भारी वृद्धि का एक कारण जनता की वाहवाही लूटने और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रतीष्ठा बचाये रखने का भी हो सकता है। लेकिन इसका मुख्य कारण सातवें वेतन आयोग से बढ़े हुये लगभग 4100 करोड़ का वित्तीय बोझ ही है। वित्त मंत्री ने पिछले साल के 39957.77 करोड़़ के मुकाबले इस साल के बजट में 5627.3 की वृद्धि कर उसे 45585.09 करोड़ तक तो पहुंचा दिया। मगर इतनी बड़ी रकम आयेगी कहां से, यह सवाल भी खड़ा कर दिया है। नये बजट की अनुमानित 45202.94 करोड़ की प्राप्तियों में राज्य के करों से 14963.62 करोड़, राज्य के ही करेत्तर राजस्व से 3470.51 करोड़ और केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से के अनुमानित 8291.23 करोड़ को मिला कर कुल 26725.36 करोड़ की रकम बनती है। इस अनुमानित रकम को ही सरकार अपनी जेब में मान सकती है। जबकि बजट में राज्य सरकार के प्रतिबद्ध खर्चे (कमिटेड एक्सपेसेज) 27206.00 करोड़ रुपये तक जा रहे हैं। इनमें कर्ज की किश्त अदायगी के रूप में 3182 करोड़, ब्याज के 4906 करोड़, राज्य कर्मियों के वेतन के 12602.37 करोड़ और मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों और गैर शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के वेतन आदि के 1163.01 करोड़ शामिल हैं। इस आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया वाले वजट में खर्चे पूरे करने के लिये 9510.10 करोड़ की उधारी को शामिल करने के बाद कुल प्राप्तियां 36235.46 करोड़ की बनती हैं जो कि कुल बजट राशि से काफी पीछे नजर आ रही हैं। इसमें वित्तमंत्री ने केन्द्र सरकार से हर साल मिलने वाली सहायता/ अनुदान की अनुमानित राशि को मिला कर 45202.94 करोड़ की रकम का काल्पनिक जुगाड़ कर रखा है, जो कि फिर भी कम पड़ रहा है। यह केवल प्रकाश पन्त या त्रिवेन्द्र सरकार की कहानी नहीं है। पिछली कांग्रेेस की सरकारें भी ऐसा ही आंकड़ों का मायाजाल डाल कर जनता पर भारी कर्ज का जंजाल थोपती रही हैं। इसीलिये आज इस नवोदित राज्य को पांच हजार करोड़ से थोड़ा कम केवल ब्याज के रूप में चुकाने पड़ रहे हैं। इतनी बड़ी रकम अगर राज्य के विकास पर और जनता की तकलीफों को कम करने पर खर्च की जाती तो यह राज्य आज देश का सबसे खुशहाल राज्य होता। कहते हैं कि ‘‘ताते पांव पसारिये जा ती लम्बी खाट’’ उत्तराखण्ड की सभी सरकारों के पांव सदैव खाट से बाहर रहे हैं। वाहवाही लूटने के लिये बड़ी मेट्रो रेल जैसी 28हजार करोड़ लागत की घोषणाएं कर दी जाती हैं। लाखों लोगों को पटाने के लिये पंेशन दे दी जाती है और केन्द्र सरकार वेतन आयोग की सिफारिशों बाद में लागू करता है जबकि उत्तराखण्ड की सरकारें उसे पहले लागू कर देती हैं। छटे वेतन आयोग में भी भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने ऐसा ही किया और सातवें वेतन आयोग के मामले में भी हरीश रावत ने उतनी ही उतावली की मगर इस उतावली से कुछ हासिल तो हुआ नहीं उल्टे सरकार भी गयी और वे स्वयं भी चुनाव हार गये। जबकि त्रिपुरा में मजदूरों की वामपंथी सरकार ने अभी अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने के लिये पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशें तक लागू नहीं कीं और बावजूद इसके वहां वामपंथियों की सत्ता 25 सालों तक टिकी रही।
हर एक सरकार को अपने संसाधानों से बेहतर वसूली की उम्मीद रहती है लेकिन अक्सर लक्ष्य के सापेक्ष राजस्व आ नहीं पाता है। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी राष्ट्रपति शासन समेत कई कारणों से लक्ष्य से लगभग 4396 करोड़ कम राजस्व प्राप्त हुआ था। इस बार भी उत्तराखण्ड के विकास की गाड़ी पर डबल इंजन लगने की बात तो होती रही लेकिन इतने बड़े इंजन का लाभ चालू वर्ष के बजट में तो कहीं नजर नहीं आ रहा है। बजट के साथ दिये गये विवरण के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में केन्द्र से केन्द्रीय करों में राज्यांश से 1206.26 करोड़ और केन्द्र सरकार से सहायता अनुदान के मद में 2164.03 करोड़ की राशि कम मिली। आशा के अनुरूप सहायता न मिलने से राज्य का बजट गड़बड़ाना स्वाभाविक ही था। कुल मिला कर केन्द्र सरकार से राज्य को इस साल अपेक्षा से 3370.29 करोड रुपये का सहयोग कम मिला है। राज्य के करों से भी मौजूदा सरकार को लगभग 330 करोड़ रुपये अनुमान से कम मिले हैं। केन्द्र के 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट जब आयी थी तो भाजपाई इतरा रहे थे। कांग्रेसियों ने जब राज्य के साथ नाइंसाफी की बात उठायी तो भाजपा सरकार के मंत्री और नेता इसे मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार बता रहे थे। इस बार भराड़ीसैण में राज्य सरकार ने राज्य का जो आर्थिक सर्वे पेश किया उसमें भाजपा सरकार भी 14वें वित्त आयोग की मार की पीड़ा छिपा नहीं सकी।
आर्थिक तंगी के चलते त्रिवेन्द्र सरकार को चालू वित्तीय वर्ष में कई सेवाओं में अपने संकल्पों में कटौती करनी पड़ी या अपने संकल्पों को पूरा नहीं कर पायी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सरकार को इस साल सामाजिक सेवाओं में इस साल 13798.80 करोड़ खर्च करने थे और उन संकल्पों और सेवाओं की घोषणा सरकार गत बजट में कर चुकी थी। लेकिन धनाभाव के कारण सरकार को 1412.05 करोड़ के सामाजिक कार्यों में कटौती करनी पड़ी। इसी प्रकार तंगी का असर सामान्य सेवाओं और आर्थिक सेवाओं पर भी पड़ा। सामान्य सेवाओं पर घोषित लक्ष्य से 124 करोउ़ और आर्थिक सेवाओं पर 33.89 करोड़ कम खर्च करने पड़े।सरकार को जरूरतमंदों को 1736.94 करोड़ के अनुदान देने थे लेकिन वह केवल 1538.23 करोड़ के अनुदान ही दे पायी। हो सकता है कि अगले साल लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये केन्द्र सरकार सचमुच उत्तराखण्ड के लिये डबल इंजन साबित हो। यही कामना उत्तराखण्डवासियों की है अन्यथा अगले वर्ष के बजट में कर्ज का बोझ और अधिक बढ़ जायेगा।
उत्तराखण्ड सरकार के बजट में इस साल कुछ अच्छी पहले अवश्य हुयी हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता। पहली पहल तो भराड़ीसैण में बजट सत्र आयोजित करने की रही। दूसरी पहल बजट से पहले आर्थिक सर्वे पेश करने की थी और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण पहल मुख्यमंत्री द्वारा जनता के बीच जा कर बजट के बारे में लोगों की अपेक्षाएं जानने की रही। बजट में जन अपेक्षाएं झलक भी रही हैं। लेकिन राज्य की माली हालत आज इतनी पतली है कि उन अपेक्षाओं पर सरकार का खरा उतरना नामुमकिन तो नहीं मगर बेहद मुश्किल अवश्य लग रहा है। यही नहीं इस बजट का जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना त्रिवेन्द्र सरकार के सबसे काबिल मंत्री प्रकाश पन्त के लिये भी एक अग्नि परीक्षा ही है। राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पन्त ने बजट में अपना वित्तीय कौशल तो दिखा दिया मगर उससे बड़ी चुनौती बजट के रूप में इस संकल्प पत्र को धरातल पर उतारने की है।