अक्सर होता यह है कि थाने कोतवालियों में पीड़ित लोगों के शिकायती प्रार्थना पत्रों पर एफआईआर दर्ज करना तो दूर, शिकायती पत्रों की प्राप्ति रसीद भी नहीं दी जाती है। इस संबंध में आरटीआई एक्टिविस्ट भूपेंद्र कुमार ने वर्श 2010 को उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेष पोखरियाल निषंक को कार्यवाही के लिए अनुरोध किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री के निर्देषों पर पुलिस मुख्यालय ने समस्त जिलों के पुलिस अधीक्षकों को दिषा-निर्देष जारी किए थे कि थाने-चैकियों में पीड़ित जनों की शिकायतों को प्राप्त करके यदि पीड़ित पक्ष को प्राप्ति रसीद नहीं दी गई तो संबंधित अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी विभागीय कार्यवाही की जाएगी। साथ ही संबंधित थाना चैकी प्रभारी की लापरवाही के संबंध में उत्तरदायित्व भी निर्धारित किया जाएगा। उस दौरान तो पुलिस अधिकारियों की गोश्ठियां कराकर इस संबंध में निर्देशित भी कर दिया गया था, किंतु समय बीतने के साथ-साथ लाचार पीड़ितों के शिकायती पत्र स्वीकार करना तो दूर, अधिकारी कर्मचारी सरकारी विभागों के शिकायती पत्रों की रसीद देने से भी कतराने लगे हैं। यदि आपको भी कभी शिकायती पत्रों की रसीद दिए जाने के लिए कोई थाना चैकी ना-नुकुर करे तो आप भी पर्वतजन पोर्टल पर दिए गए इस पत्र को संबंधित अधिकारी कर्मचारी को दिखाकर उसे रसीद देने के लिए बाध्य कर सकते हैं। आपके सुलभ संदर्भ के लिए उक्त पत्र भी पोर्टल पर उपलब्ध है।