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दिलचस्प खुलासा: ढैंचा घोटाले की पोल खोलने वाले को ठोकने गए, खुद ही ठुक गए

April 20, 2018
in पर्वतजन
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भूपेंद्र कुमार
पर्वतजन के गंभीर पाठकों के लिए हम आज एक दिलचस्प खुलासा लेकर आए हैं। ढैंचा बीज घोटाले के संदर्भ में रमेश चौहान नाम के व्यक्ति को मुख्य सूचना आयुक्त शत्रुघ्न सिंह ने सूचना दिलाने में मदद तो दी नहीं, उल्टे एक पूर्व कर्मचारी नेता की शिकायत का संज्ञान लेते हुए रमेश चौहान के खिलाफ ही एक जांच बैठा दी। और SSP द्वारा सबमिट जांच रिपोर्ट के आधार पर रमेश चौहान के खिलाफ गबन का दोषी बताते हुए ब्लैकमेलर तक ठहरा डाला।
 मुख्य सूचना आयुक्त के इस फरमान से हतप्रभ रमेश चौहान ने जब पलटवार के रूप में मानहानि का नोटिस भेज दिया तो अब एसएसपी और मुख्य सूचना आयुक्त के हाथ पांव ढीले हो गए हैं।
 उनसे जवाब देते नहीं बन रहा और अब उनके मातहत रमेश चौहान की खुशामद करते फिर रहे हैं।
 अब यह मुख्य सूचना आयुक्त ने अपने अधिकारों से सर्वथा बाहर जाते हुए, पद का दुरुपयोग करते हुए किसके इशारे पर अथवा किसे खुश करने के लिए एसएसपी को जांच के निर्देश दिए, यह तो वही जाने लेकिन ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं है कि मुख्य सूचना आयुक्त ने ऐसा मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए किया। एसएसपी ने भी मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश पर एलआईयू को जांच के आदेश दे दिए और जांच रिपोर्ट तत्काल मुख्य सूचना आयुक्त को सौंप दी।
 मजेदार बात यह है कि एलआईयू ने भी चौहान को पूछना तक उचित नहीं समझा और उन्हें गबनकर्ता और ब्लैकमेलर ठहरा दिया। मुख्य सूचना आयुक्त ने भी रमेश चौहान का बिना पक्ष लिए इसी रिपोर्ट के आधार पर उन पर प्रतिबंध लगा दिया। अब रमेश चौहान के पलटवार से पुलिस और राज्य सूचना आयोग दोनों बुरी तरह से बैकफुट पर हैं।
 मामला सिर्फ इतना सा था कि कृषि विभाग से कुछ सूचनाएं मांगने के लिए जद्दोजहद कर रहे रमेश चौहान पर राज्य सूचना आयोग ने भी प्रतिबंध लगा दिया था।
  राज्य कर्मचारी परिषद के प्रदेश अध्यक्ष और सेवानिवृत्त प्रह्लाद सिंह ने मुख्य सूचना आयुक्त को एक चिट्ठी लिखी कि रमेश चौहान सूचना अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं इसलिए उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाए।
 फिर क्या था मुख्य सूचना आयुक्त ने सूचना दिलाने का काम करने के बजाय रमेश चौहान के खिलाफ एक्शन ले लिया अब यही एक्शन पुलिस और सूचना आयोग के खिलाफ रिएक्शन कर रहा है।
 पर्वतजन ने इस पूरे मामले का विश्लेषण करने के बाद पाठकों के विमर्श के लिए कुछ सवाल छोड़े हैं।
 पहला सवाल यह है कि रमेश चौहान का पक्ष सुने बिना मुख्य सूचना आयुक्त ने सूचना दिलाने के बजाय उल्टे सूचना चाहने वाले के खिलाफ कार्यवाही क्यों की ?
 दूसरा सवाल यह है कि रमेश चौहान के खिलाफ प्रहलाद सिंह की शिकायत सूचना आयुक्त ने किस हैसियत से सुनी और किस हैसियत से उस पर आदेश किए ?

 तीसरा सवाल यह है कि यह शिकायत न तो सूचना आयोग के संबंधित दस्तावेजों में दर्ज है आखिर क्यों? और ना ही इस शिकायत को शिकायत सुने जाने के लिए तय प्रावधानों के तहत सुना गया।

चौथा सवाल यह है कि पुलिस ने रमेश चौहान के खिलाफ गोपनीय जांच में यह तो लिख दिया कि उन्हें गबन के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। किंतु इस बात का जिक्र क्यों नहीं किया कि उन्हें ट्रिब्यूनल ने बाइज्जत  बरी कर दिया था ?
पांचवा सवाल यह है कि गोपनीय जांच करने के दौरान रमेश चंद्र चौहान के बयान अथवा पक्ष एलआईयू ने क्यों नहीं लिया ?
 छठा सवाल यह है कि इन सब बातों के अलावा मुख्य सूचना आयुक्त ने सूचना उपलब्ध क्यों नहीं कराई ?
 सातवाँ  सवाल यह है कि मुख्य सूचना आयुक्त और पुलिस के ऊपर आखिर किसका दबाव था ?
 आठवां सवाल यह है कि शिकायत करने वाले प्रह्लाद सिंह खुद ही जब सेवानिवृत्त हो चुके हैं तो शासनादेशों के अनुसार वह कर्मचारी यूनियन के भी प्रदेश अध्यक्ष नहीं रह जाते और उनकी अध्यक्षता वाली यूनियन भी वैध नहीं रह जाती तो फिर यूनियन और अध्यक्ष की वैधानिकता का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया ? जबकि इन्हें मुख्य सूचना आयुक्त ने मुख्य सचिव रहते प्रह्लाद सिंह को रिटायरमेंट के बाद 1 साल सेवा विस्तार दिया था।
नंवा सवाल यह है कि अगर मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा कराई जा रही यह गोपनीय जांच वाकई निष्पक्ष और गोपनीय थी तो रमेश चंद्र के ओमवीर सरीखे विरोधियों को इस जांच के विषय में एक एक चीज पहले ही कैसे पता लग गई?
 दसवां सवाल यह है कि मुख्य सूचना आयुक्त ने 16 मार्च 2018 को रमेश चौहान के खिलाफ फैसला दिया। जबकि यह फैसला अखबारों में 15 दिन पहले ही कैसे छप गया? जाहिर है कि क्या ऐसा रमेशचंद्र की छवि खराब करने के लिए साजिशन किया गया?
 सरकार को बचाने के लिए मुख्य सूचना आयुक्त और पुलिस का दांव तो उल्टा पड़ ही गया है, अब रमेश चौहान ढैंचा घोटाले के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं। और अब वह खुद कोर्ट में इस घोटाले के खिलाफ याचिकाकर्ता बन रहे हैं।
 इससे सरकार की मुसीबत बढ़नी तय है। बहरहाल सिस्टम से लड़ते-लड़ते रमेश चौहान अब वह दीपक नहीं रह गया जो हवाओं से बुझ जाए। अब वह एक शोला बन गया है जो प्रतिकूल हवाओं से और धधकता है। देखना यह है कि इस शोले के प्रतिशोध की ज्वाला में जलने से एसएसपी और मुख्य सूचना आयुक्त अपना दामन किस तरह से बचाते हैं !
 आखिर कौन है रमेश चौहान !
सभी पाठक जानते होंगे कि ढैंचा बीज घोटाले को लेकर वर्तमान में एक जनहित याचिका की सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है और गाजियाबाद निवासी एक व्यक्ति ने यह याचिका कोर्ट में डाली थी।
 पाठक यह भी जानते होंगे कि त्रिपाठी जांच आयोग की रिपोर्ट पर जब पिछली कांग्रेस सरकार और वर्तमान भाजपा सरकार ने कोई भी एक्शन नहीं लिया तो कोर्ट के आदेश पर चतुर्थ तल पर बैठकर सरकार के  इशारे पर कुछ अफसरों ने मिलकर एक गोलमोल एक्शन टेकन रिपोर्ट तैयार करके सब को क्लीन चिट देते हुए इसका ठीकरा छह साल पहले कृषि विभाग के रिटायर हो चुके तत्कालीन निर्देशक के सर फोड़ कर अपना दामन छुड़ा लिया था।
 बहुत कम लोग इस बात को जानते होंगे कि सरकार की किरकिरी कराने वाली इस जनहित याचिका के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने वाला व्यक्ति कौन है !
 दरअसल वही व्यक्ति इस ढांचा बीज घोटाले के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला असली सूत्रधार है, और उस शख्स का नाम है रमेश चौहान।
 रमेश चौहान कृषि विभाग का पूर्व अधिकारी है, जिसे वर्ष 2007 से 12 तक की भाजपा सरकार में कृषि मंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बर्खास्त कर दिया था। रमेश चौहान की गलती इतनी थी कि वह कर्मचारी नेता थे और विभिन्न विभागीय मामलों को लेकर उनकी तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार डॉ हरेंद्र सिंह रावत से ठनी रहती थी। रमेश चौहान ने डॉ हरेंद्र सिंह रावत को सलाहकार बनाए जाने की वैधानिकता पर सवाल उठाए तो पलटवार के रूप में रमेशचंद्र चौहान पर कुछ अनियमितताओं के आरोप लगाकर बर्खास्त कर दिया गया।
 बर्खास्तगी के समय रमेश चौहान की सेवा मात्र 33 महीनों की ही शेष रह चुकी थी। रमेश चौहान बर्खास्तगी के खिलाफ हाईकोर्ट गए और बाइज्जत बरी हो गए लेकिन इस बीच वह रिटायर भी हो गए। पक्ष में फैसला आने के बाद रमेश चौहान को रुके हुए पेंशन भत्ते आदि तो सब बहाल हो गए लेकिन अब रमेश चौहान ने अपने खिलाफ षड्यंत्र करने वालों से निपटने को ही अपना जीवन जुनून बना लिया।
 इसी दौरान गाजियाबाद निवासी एक याचिकाकर्ता को उन्होंने ढैचा बीज घोटाले के खिलाफ सभी दस्तावेज़ जुटाकर उपलब्ध करा दिए। चौहान स्वयं कृषि अधिकारी रह चुके थे तो विभाग की नस नस से वाकिफ थे बस फिर यहीं से तत्कालीन कृषि मंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुसीबत बढ़ गई।
फिलहाल ताजा अपडेट यह है कि गाजियाबाद निवासी जयप्रकाश डबराल द्वारा दायर जनहित याचिका अब संयुक्त रुप से रमेश चौहान के नेतृत्व में डाले जाने की तैयारी है। जाहिर है कि अब तक ढैंचा बीज घोटाले में खुद को पाक-साफ करने की जद्दोजहद में जुटी सरकार की मुसीबत बढ़ना तय है। सचिवालय में दो अफसर भी एक दूसरे को इस मामले में फंसाने में लगे हुए हैं। इससे भविष्य में जल्दी ही कोई नया मोड़ देखने को मिल सकता है।

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