जगदम्बा कोठारी/ रूद्रप्रयाग
आज 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर सरकार जहां बड़े बड़े कार्यक्रमों मे लाखों खर्च कर बेटियों को बचाने के नाम पर वाहवाही लूट अपनी पीठ स्वयं थपथपा रही है, वहीं रूद्रप्रयाग जनपद की दो दलित और अनाथ बच्चियां ‘बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’ के नारे की पोल खोलने के लिए काफी हैं।
जनपद के विकास खंड के त्यूंखर गांव मे दो दलित और सगी बहनें 5 वर्षीय बसु और 2 वर्षीय निशा के सर से माता-पिता का साया उठ जाने के बाद से वह दर दर ठोकरें खाने को मजबूर हैं।
गांव के प्रेमू लाल की सालभर पहले मौत हो गयी थी और वह अपने पीछे पत्नी सुनीता देवी और दो छोटी बच्चियां बसु और निशा को छोड़ गये। पति की मौत के बाद सुनीता की भी मानसिक स्थिति सही नहीं थी। कुछ माह तक सुनीता देवी जैसे तैसे अपनी बच्चियों का पालन पोषण करती रही लेकिन गरीबी और अस्वस्थता के कारण समय पर उचित इलाज न मिलने के चलते इसी माह 14 जनवरी को सुनीता की भी आकस्मिक मौत हो गयी। तब से यह दोनों अनाथ बच्चियां दर दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं।
कड़ाके की इस ठंड मे यह दोनों बच्चियां गांव भर मे नंगे पैर घूमकर अपने लिए दो वक्त के खाने का जुगाड़ करती हैं, हांलाकि गांव के कुछ लोग इनके खाने और रहने का इंतजाम कर देते हैं लेकिन इसे सरकार की बेरूखी ही कहा जायेगा कि अभी तक इन दलित बच्चियों के लिए प्रशासन की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गयी है।
ज्येष्ठ प्रमुख जखोली चैन सिंह पंवार ने कहा कि प्रशासन को इन अनाथ और दलित बच्चियों की जानकारी होने बाद भी इनके भविष्य के लिए कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राम रातन पंवार ने सरकार से इन बच्चियों के लालन पालन की शीघ्र व्यवस्था करने की मांग की है, वहीं बाल संरक्षण आयोग के सदस्य वाचस्पति सेमवाल ने कहा कि इन दोनों बच्चियों के भरण पोषण और देखभाल के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा जा चुका है।