नीरज उत्तराखंडी
पुरोला। जनपद उत्तरकाशी के विकास खण्ड पुरोला के सीमांत क्षेत्र सर बडियार में शिक्षा व्यवस्था ढांचागत सुविधाओं और प्रयाप्त अध्यापकों के अभाव में बदहाली के दौर से गुजर रही है। विद्यालय भवन जीर्ण-शीर्ण हालत में है। फर्श गडढों में तब्दील हो गया है। छत से सूर्य की किरणें झाकती है। दरवाजे तथा खिड़कियों से लकडी गायब है।
इन बदहाल और टूटे फूटे भवनों तथा बल्लियों के सहारे टिके छत के नीचे छात्रों को बैठाना मौत को दावत देना जैसा कार्य है। इसी डर से छात्र- छात्राओं को बाहर बरामदे में बैठकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बरसात में विद्यालयों की छते जनप्रतिनिधियों तथा विभाग की बेरुखी के चलते बरसाती आंसू टपकती है। ऐसा ही कुछ हाल है सर और डिगाडी गांव में स्थित विद्यालय भवनों का है।
सर गांव में कहने को तो प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय खोले गये हैं, लेकिन आलम यह है कि जूनियर हाई स्कूल का भवन विगत 10 वर्षों से निर्माणाधीन और विवादित अब खंडहर में तब्दील हो गया है। न तो विभाग ने भवन को पूरा कराया और न ही जिम्मेदार ठेकेदार के विरुद्ध कोई कार्यवाही की है, जबकि इसका भुगतान की कर लिया गया है।
वही प्राथमिक विद्यालय का भवन भी जीर्ण-शीर्ण हालत में है। ढांचा गत सुविधाओं के अभाव में जूनियर तथा बेसिक स्कूल की कक्षाएं एक साथ प्राथमिक विद्यालय भवन के बरामदे में संचालित की जाती है। वर्तमान समय में यहाँ राजकीय प्राथमिक विद्यालय में 27 तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय में 19 छात्र छात्राएँ अध्ययनरत हैं, जो भवनों के अभाव में खुले आकाश तले पढने को मजबूर है। यहां 4 अध्यापक तैनात हैं। दो बेसिक में तथा दो जूनियर में।जूनियर में यहाँ एक अध्यापक ऐसे भी है जो विगत 14वर्ष से यहाँ तैनात है। उनकी दुर्गम क्षेत्र में 20साल की सेवा देने के बाद भी उनके तबादले की कोई सुध नहीं ली जा रही है।
बहरहाल सीमांत गांव के वासियों की पीड़ा यह है कि जिसे भी वे जनप्रतिनिधि चुनते हैंं, वे गांव से पलायन करके सुविधा जनक स्थानों पुरोला विकास नगर या देहरादून चले जाते और अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में भर्ती करते हैं। जन प्रतिनिधि जन सेवा की बजाय ठेकेदारी या स्वार्थ सेवा में मस्त हैैं। यहां की गरीब पहुंच हीन और आर्थिक रूप से बदहाल परिवार के बच्चे ही इन स्कूलों में सुविधाओं के अभाव में पढने को मजबूर हैं।
यही हाल डिगाडी प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय का है। यहां बेसिक स्कूल में 18 बच्चों को पढाने के लिए 2अध्यापक तथा जूनियर में 8बच्चों की शिक्षा के लिए 1अध्यापक तैनात हैं। भले ही इन स्कूलों में शिक्षा विभाग के मानकों के अनुरूप यहाँ स्टाफ की तैनाती की गई हो लेकिन व्यवहारिक मुश्किलें यह है कि एक अध्यापक तीन कक्षाएं तथा अलग अलग विषय कैसे पढा सकता है। ऊपर से कार्यालय के अतिरिक्त कार्य को भी निपटाना होता है। ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सीमांत शिक्षा व्यवस्था की दौर से गुजर रही है। पेयजल के अभाव में विद्यालय में बनें शौचालय शोपीस बन कर रह गये हैं।