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बॉर्डर से लौटकर खेती कर धरती माँ की सेवा में जुटा सैनिक

May 22, 2018
in पर्वतजन
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उधमिता बिकास से बढ़ी उम्मीद, उत्तराखंड के पहाड़ो की किस्मत बदल सकता है अखरोट

गिरीश गैरोला

आधुनिक तकनीकी के  साथ पारंपरिक गेहूं और धान की खेती के बदले पहाड़ो की छोटी और ढलानदार जोत उद्यान के लिए ज्यादा मुफीद है और आने वाले समय में उद्यान ही उत्तराखंड के पहाड़ों की किस्मत बदलने कारगर सिद्ध होने वाला मंत्र होगा। पूर्व सैनिक कुशला नंद बहुगुणा ने धरती का सीना चीर कर बहाए हुए पसीने से एक बार फर सूखे पड़े पहाड़ों पर हरियाली तैयार कर भारत सरकार के वर्ष 2022 तक किसान की आमदनी दोगुना करने के जुमले को सच साबित कर दिखाया है।

16 वर्ष तक बॉर्डर पर बतौर सैनिक देश सेवा में बिताने के बाद भी एक सैनिक का माटी से प्रेम कम नही हुआ और उसने पलायन के  बाद खाली पड़े पहाड़ो में नई तकनीकी के उपयोग से पहाड़ों की किस्मत बदलने की ठान ली। उद्यान विभाग ने भी उसके इस प्रयोजन में भरपूर सहयोग दिया परिणाम सूखे पड़े पहाड़ी गाव में अब  बगीचे पनपने लगे है जिसके बाद अन्य शिक्षित बेरोजगार भी इसमें किस्मत आजमाने का मन बनाने लगे है।

धौंत्री गाव के पूर्व फौजी कुशला नंद बहुगुण सचमुच बहु प्रतिभा के धनी है। जिन्होंने नर्सरी विकास के साथ पहाड़ी ढलान पर खाली पड़े खेतो में अब आड़ू सेब अखरोट का बगीचा तैयार कर लिया है और अब शब्जी उत्पादन में उतर कर इलाके में उधमिता विकास कर अन्य लोगों को भी रोजगर देने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

उत्तरकाशी जिले के सहायक जिला उद्यान अधिकारी नंद किशोर सिंह ने बताया कि नए और कम खेती वाले किसान भी अब छोटी नर्सरी तैयार कर अपनी आजीविका बढ़ा सकते है। इसलिए सरकार ने पूर्व में 0.4 हेक्टर के मानक को कम करते हुए अब महज 5 नाली कर दिया है। उन्होंने बताया कि पढ़े लिखे बेरोजगारों को रोजगार के साथ दो फायदे होंगे एक तो उद्यमिता विकास से अन्य लोगो के लिए रोजगार यही पर पैदा होगा वही पर्यवरण संतुलन में भी उनकी भागीदारी हो सकेगी। उन्होंने बताया कि बेरोजगारो को उद्यान के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए  कई सरकारी  योजनाएं संचालित हैं, जिसमे नर्सरी स्थापना के लिए 50% अनुदान और बगीचा स्थापित करने को 75%अनुदान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के पहाड़ों में उद्यान का ही भविष्य है, जो यहां की आर्थिकी में चमत्कारिक  बदलाव ला सकता है। इतना ही नहीं होल्टीकल्चर के साथ पर्यटन को जोड़कर विकास की एक नई इबादत लिखी जा सकती है।

सरकारी आंकड़ों पर नजर डाले तो अकेले उत्तरकाशी जनपद में 9 नर्सरीयो को नेशनल होलडी कल्चर बोर्ड से मान्यता मिल चुकी है, जबकि जिले में अन्य 26 नर्सरी राज्य से पंजीकृत हो चुकी है। जिनसे 6.5लाख सेब , 1.5 से 2 लाख आड़ू और 1.5लाख नाशपाती की फल पौध तैयार हो रही है। आड़ू और अखरोट पर कुछ नया प्रयोग करने की जरूरत है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिग के चलते स्नो लाइन अप हो गयी है। सेब के बगीचों में अब काम बर्फवारी से उनकी चिलिंग जरूरत पूरी नहीं हो रही है। इसलिए आने वेक समय मे अखरोट उत्तराखंड के पहाड़ी इलाको की दशा और दिशा बदलने में महत्वपूर्ण कारक साबित होने वाला है।

प्रगतिशील किसान कुशला नंद बहुगुणा ने बताया कि केमिकल की जानकारी रखने योग्य हाई स्कूल तक पढ़ा लिखा बेरोजगार भी दो वर्ष की ट्रेनिंग लेकर उद्यान और नर्सरी के फील्ड में उतर कर अपनी किस्मत बदल सकता है। विभाग भी एक्पोजर के लिए एक जिले से दूसरे प्रदेश और जिलों में किसानों को ले जाने का कार्य करती है, ताकि किसान वहाँ से कुछ सीख सके। उन्होंने बताया कि जिन स्थानों पर सेब पैदा नहीं होता वहां आड़ू की नेक्टिन वैराइटी को लगाया जा सकता है जो बाजार में 80 रु प्रति किलो की दर से बिकता है।इसके  अलावा उत्तराखंड सरकार भी अखरोट उत्पादन के लिए  प्रोत्साहन दे रही है। विभाग के सहयोग से विकसित उनकी नर्सरी में अखरोट की लारा, चाँडर और फ़्रेंगविट वैराइटी मौजूद है जिसे गारंटी के साथ 5 वर्षो में फल देने वाला बताया गया है।

सहायक उद्यान अधिकारी एन के सिंह ने बताया कि उत्तरकाशी केदारनाथ मार्ग पर धौंत्री के जिस जिस स्थान पर काश्तकार कुशला नंद ने नर्सरी स्थापित की है उस स्थान पर पारंपरिक खेती करने वाले अन्य किसान की तुलना में नर्सरी में 20 गुना अधिक फायदा प्राप्त होता है। जिसके लिए कास्तकारों को टपक विधि से सिंचाई के  साथ खाद तैयार करने के लिए अनुदान के साथ तस्कनीकी प्राशिक्षण भी दिया जाता है।


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