यह किस्सा टिहरी से कांग्रेस के विधायक जी से जुड़ा हुआ है। कार्यकर्ताओं के बीच यह आम शिकायत है कि विधायक जी अपने कार्यकर्ताओं के लिए कुछ नहीं करते एक दिन विधायक जी अपने सबसे खास कार्यकर्ता को लेकर सचिवालय में किसी काम से आए। काम कराते-कराते तीन बज गए। ऐसे में विधायक जी को अपने खास कार्यकर्ता पर दया आ गई और उसे पूछ डाला कि अरे भाई तूने कुछ खाना-पीना खाया कि नहीं। कार्यकर्ता ने सूखी जुबान और उड़ती हुई रंगत से ना में मुंडी हिला दी। मन मसोस कर विधायक जी अपनी पिछली जेब में थोड़ी देर तक हाथ डालकर घुमाते रहे। संभवत: विधायक जी की जेब में कई तरह के नोट रहे होंगे। इसलिए विधायक जी कार्यकर्ता को बातों में उलझा कर उंगलियों से 10 के नोट टटोलते रहे और फिर बड़ी स्टाइल से 10 के दो नोट निकालते हुए कार्यकर्ता को थमाते हुए बोले कि जा चुपके से सचिवालय की कैंटीन में हाफ प्लेट दाल चावल खाकर आ जाओ, लेकिन सौंफ मत खाना। कार्यकर्ता को समझ में नहीं आया कि विधायक जी सौंफ खाने के लिए यों मना कर रहे हैं। खाना खाने के बाद मुंह में सौंफ चबाते हुए बाहर आया। विधायक जी किसी सचिव के साथ किसी कमरे में व्यस्त थे, अत: कार्यकर्ता ड्राइवर के साथ गप्पे लड़ाने के लिए विधायक जी की गाड़ी में ही आकर बैठ गया। कार्यकर्ता ने हाय हैलो करने के लिए मुंह खोला ही था कि ड्राइवर बोल पड़ा, अरे भाई तुमने खाना खा लिया! अब जाकर कार्यकर्ता को समझ में आया कि विधायक जी ने सौंफ खाने के लिए यों मना किया था, लेकिन या करें! अब राज खुल ही गया था तो कार्यकर्ता को बोलना पड़ा कि हां भाई विधायक जी ने 20 दिए थे, इसलिए हाफ प्लेट चावल खाकर आ रहा हूं। ड्राइवर बेचारा मायूस होकर बोला- ‘कोई बात नहीं भाई जीÓ, यह विधायक जी की कोई आज की बात थोड़ी है।
विधायक जी को लोग पीठ पीछे खतरनाक जानवर के नाम से बुलाते हैं, लेकिन विधायक जी खुद को उस जानवर के नाम से नहीं, बल्कि दूसरे जानवर के नाम से बुलाया जाना शायद ज्यादा पसंद करते हैं तो किस्सा यूं है कि एक बड़े इंजीनियर ने अपने एक सबसे विश्वासपात्र कर्मचारी को नोटों का एक बड़ा बंडल देकर कहा कि जाओ यह बंडल सचिवालय में फलाने जी को दे आओ। बड़े इंजीनियर साहब ने फलाने जी का मोबाइल नंबर भी कर्मचारी को दे दिया। कर्मचारी ने फलाने जी का नंबर मोबाइल में पूरा नाम लिखने के बजाय सरनेम से सेव कर लिया। बैग में नोटों का बंडल दबाए कर्मचारी सचिवालय में पहुंचा और फलाने जी को फोन करके बुलाया और नोटों का बंडल फलाने जी को पकड़ा दिया। यह नोटों का बंडल इंजीनियर साहब ने कोई बड़ी योजना पास कराने के लिए भेजा था। जब कर्मचारी ने बड़े इंजीनियर साहब को नोटों का बंडल डिलीवर करने की जानकारी दे दी, तब बड़े साहब ने फलाने जी को फोन लगाया और कहा कि साहब या आपको सामान मिल गया। साहब पहले समझे नहीं। जब बात समझ में आई तो साहब बिदक गए और बोले कैसा सामान, किसका सामान, कौन लाया सामान! मुझे कोई सामान नहीं मिला। अब इंजीनियर साहब की पैरों तले जमीन खिसक गई। रकम भी कोई छोटी मोटी नहीं थी। तत्काल कर्मचारी को बुलाया और हड़कान लगाते हुए पूछा कि अबे बेवकूफ किसको दे आया। कर्मचारी दोनों हाथ कुो की दुम की तरह टांगों के बीच में दबाते हुए बैकफुट पर आते हुए बोला कि साहब आपने जो नंबर दिया था, उसी नंबर पर मैंने फोन किया। मैं उनको पहचानता नहीं था। जो आदमी मेरे पास आया, मैंने उसे बंडल थमा दिया। हकलाते हुए इंजीनियर ने कर्मचारी का मोबाइल छीन लिया तो देखा कि मोबाइल में फलाने जी के नाम से दो नंबर सेव थे। इंजीनियर साहब ने फलाने जी के नंबर पर फोन किया तो पता चला कि फलाने जी तो विधायक हैं। इंजीनियर गिड़गिड़ाते हुए बोला, सर वह पैसे आपके लिए नहीं भेजे थे। दरअसल वह आपके नाम से कोई और माननीय हैं। यह पैसे उन्हें एक काम कराने के लिए देने थे। यह सुनते ही विधायक जी बोले, अरे भाई हम तो मगरमच्छ हैं, पैसे तो वापस अब मिलते नहीं, तुम काम बताओ तुम्हारा काम तो हम भी करा सकते हैं। खैर विधायक जी बहुगुणा गुट के अवसान के बाद हरीश रावत गुट में शामिल हो चुके थे और उनकी चलती भी ठीक थी, इसलिए उन्होंने काम तो करा दिया, लेकिन नाम पुराने वाले जानवर के नाम से दाखिल खारिज होकर नए जानवर के नाम से दर्ज हो गया है। द्य