20 मई 2018 को पौड़ी के विधायक मुकेश कोली की गाड़ी पर विधायक लिखी नाम पट्टिका को चुनाव आयोग की टीम ने थराली में यह कहते हुए हटाया कि थराली में आचार संहिता लगी है और कोई भी व्यक्ति इस प्रकार आचार संहिता वाले क्षेत्र में नहीं घूम सकता।
विधायक मुकेश कोली के वाहन से विधायक का बोर्ड हटाते वक्त पुलिस ने न तो उक्त वाहन का सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने पर चालान किया, न ही वाहन पर लगे सेफ गार्ड को उतारा। ये वही उत्तराखंड पुलिस है, जिसने एक मई 2018 से लेकर 15 मई 2018 तक 4805 वाहनों के बोर्ड व पट्टिका में चालान किए, बल्कि इसी प्रकार नियमों का उल्लंघन करने वाले 100 वाहनों को सीज भी किया। पुलिस के आंकड़ों के अनुसार इन 15 दिनों में 3207 दुपहिया, 2518 चौपहिया वाहन के चालान किए गए।
पुलिस की इस उत्साहजनक कार्यवाही का जरूर आम लोगों ने स्वागत किया, किंतु उत्तराखंड की पुलिस के कदम तब ठिठक गए, जब उत्तराखंड सरकार में बड़े पदों पर बैठे नौकरशाहों, विधायकों, प्रैस के लोगों और न्यायपालिका से जुड़े जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ कार्रवाई से पुलिस ने किनारा कर लिया।
उत्तराखंड के सचिवालय में कार्यवाही के इन 15 दिनों के भीतर सैकड़ों वाहन उसी प्रकार की नाम पट्टिका और सेफ गार्ड लगाए आते-जाते रहे। उसके बाद भी आ-जा रहे हैं, किंतु इनके खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत नहीं जुटाई जा रही है।
पर्वतजन पत्रिका व न्यूज पोर्टल द्वारा इस संदर्भ में कई बार खबरें प्रकाशित की गई, किंतु सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों ने कार्यवाही करने की बजाय दूसरा रास्ता ही निकाल दिया। पर्वतजन ने मुख्यमंत्री की प्रचार युनिट में लगी उस टैक्सी गाड़ी पर खबर की थी, जिस पर टैक्सी नंबर होने के बावजूद वह पीली पट्टी में नहीं लिखा गया था। साथ ही पदनाम पट्टिका भी लिखी गई थी। अब मुख्यमंत्री प्रचार युनिट का वाहन बदल दिया गया है। एंबेसडर की जगह बुलेरो गाड़ी लगा दी गई है और उस गाड़ी पर फिर कानून की धज्जियां उड़ाते हुए मुख्यमंत्री प्रचार युनिट का बोर्ड और सेफ गार्ड लगा दिया गया है। इस बोर्ड के पीछे गाड़ी का नंबर भी नहीं दिखाई दे रहा है। यदि इसी प्रकार का कोई वाहन ऐसा बोर्ड और लगाकर सचिवालय में घुस जाए और किसी वारदात को अंजाम दे दे तो उत्तराखंड के गृह विभाग से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय के पास इसका कोई उपचार नहीं है।
उत्तराखंड के सभी विधायकों के वाहनों पर आज भी पदनाम पट्टिका और अधिकांश वाहनों के सामने सेफगार्ड लगे हुए हैं। सत्तापक्ष हो गया विपक्ष, सभी विधायकों ने अपने-अपने दल के झंडे भी अपने वाहनों पर लगा रखे हैं। ये सभी वाहन सचिवालय विधानसभा से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय और मुख्यमंत्री निवास में बहुत आसानी से घूमते हुए दिखाई दे सकते हैं, किंतु इनके खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत संभवत: उत्तराखंड पुलिस के पास नहीं है।
पुलिस द्वारा जब यह अभियान चलाया गया तो मसूरी में ईटीवी के संवाददाता सुनील सिलवाल ने, जिनके वाहन पर प्रैस व ईटीवी का लोगो लगा था, के चालान का विरोध नहीं किया, बल्कि चुपचाप से अपना चालान करवाया। इसी प्रकार आज तक के पत्रकार ओंकार बहुगुणा का चालान हुआ तो उन्होंने भी कानून का सम्मान करने की बात कहकर न सिर्फ चालान होने दिया, बल्कि अपने वाहन पर लगा स्टीकर भी हटवा दिया। इस कार्यवाही के बाद देहरादून के कुछ पत्रकार संगठन अपर पुलिस महानिदेशक अपराध एवं कानून व्यवस्था अशोक कुमार से मिले और उन्होंने पत्रकारों के खिलाफ इस कार्यवाही को उत्पीडऩात्मक बताया।
इसके बाद इस तरह के संगठन के लोगों ने यह भी प्रचारित किया कि श्री अशोक कुमार ने पत्रकारों के खिलाफ इस अभियान को रोकने का आदेश दिया है। हालांकि मोटरयान अधिनियम में स्पष्ट रूप से सबके लिए नियम स्पष्ट हैं। इसमें कहीं भी नहीं लिखा गया है कि कोई मान्यता प्राप्त या गैर मान्यता प्राप्त के लिए अलग नियम हैं। इसके बावजूद ऊंची पहुंच और बड़े पद का रुतबा दिखाकर सैकड़ों लोग प्रदेशभर में नियम-कानूनों का उल्लंघन कर घूम रहे हैं। पुलिस भी खुद स्वीकार कर रही है कि अब भी काफी लोग मोटरयान अधिनियम के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।