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वैज्ञानिकों ने बताई ग्लेशियरों का समग्र वैज्ञानिक अध्ययन करने की जरूरत

May 16, 2018
in पर्वतजन
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जल संरक्षण व जलस्रोतों के पुनर्जीवीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाए, खेती में कम पानी की तकनीक को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता

जल संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। पानी के दुरुपयोग को रोकना होगा और किसानों के हित में कम पानी के उपयोग की तकनीक विकसित करनी होगी। इसके लिए इजराइल का उदाहरण दिया गया। उत्तरी भारत का गंगा का मैदान सबसे सघन व उपजाऊ क्षेत्र है। इसमें उत्तराखण्ड से प्रवाहित होने वाली गंगा व अन्य नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन नदियों के जलस्तर को बनाए रखने के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
ग्लेशियरों का समग्र वैज्ञानिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है। ग्लेशियरों के पिघलने का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग को माना जाता है। इस बात का भी अध्ययन किया जाना चाहिए कि प्रति वर्ष हिमालय के जंगलों में लगने वाली आग का ग्लेशियरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
उत्तराखण्ड भूकम्प के लिहाज से अति संवेदनशील क्षेत्र है। इसलिए यहां निर्माण की ऐसी तकनीकें विकसित की जाएं, जिन पर भूकम्प का न्यूनतम प्रभाव हो। वर्ष 2015 में नेपाल के भूकम्प के बाद उत्तराखण्ड में भूकम्प के 52 छोटे झटके आ चुके हैं। हालांकि रिक्टर पैमाने पर इनकी तीव्रता बहुत कम रही, परंतु हिमालयी क्षेत्र इस दृष्टि से अति संवेदनशील होने के कारण इन्हें गम्भीरता से लेना होगा। यह वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना चाहिए कि क्या इन भूकम्पीय झटकों का पहाड़ों व चट्टानों की संरचना पर कोई प्रभाव पड़ रहा है।

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बुधवार को राज्यपाल केके पॉल ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जिओलोजी में ‘अर्थ सिस्टम साईंस विद स्पेशल रेफरेंस टू हिमालया: एडवांसमेंट एंड चैलेंजेजÓÓ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारम्भ किया। इस मौके पर राज्यपाल ने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने सूखते जलस्रोतों के पुनर्जीवीकरण के लिए वैज्ञानिक अध्ययन पर बल देते हुए कहा कि खेती के लिए कम पानी की तकनीक को बढ़ावा देना होगा। ग्लेशियरों पर वनाग्नि के प्रभाव का अध्ययन किया जाए।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं रैमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि विज्ञान का प्रयोग सामान्यजन के हित में होना चाहिए। विज्ञान, स्थायी विकास को प्रेरित करे। ऐसा तभी हो सकता है, जबकि वैज्ञानिक खोजें प्रकृति व मानवता के उत्थान के लिए हो।
इस अवसर पर वाडिया इंस्टीट्यूट की निदेशक मीरा तिवारी, सेमीनार के संयोजक राजेश शर्मा एवं प्रदीप श्रीवास्तव आदि उपस्थित थे।

 


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