शासन के निर्देशों पर कार्यवाही करने के उलट सिंचाई विभाग के मुखिया ने दोषी ठेकेदारों को दिया इनाम कब या हुआ
2011 में सिंचाई विभाग के यांत्रिक उपकरण एवं भंडार खंड में हुआ करोड़ों का घोटाला
2011 दिसंबर में शासन ने किया घोटालेबाज अफसरों को निलंबित, जांच के आदेश
2012 में सभी संलिप्त अधिकारियों को किया बहाल, जांच रिपोर्ट पहुंची शासन
2014 में शासन ने गंभीरता को देखते हुए संलिप्त सभी ठेकेदारों को लैकलिस्ट एवं अधिकारियों पर कार्यवाही के साथ वसूली के आदेश दिए
2016 में सिंचाई विभाग ने सभी ठेकेदारों को किया लैकलिस्ट, वसूली के हुए आदेश
2016 जुलाई को चीफ सिंचाई ने किए लैकलिस्ट ठेकेदारों के लाइसेंस रिन्यूवल
सूचना विभाग की बनाई थी फर्जी मोहर
सिंचाई विभाग के यांत्रिक उपकरण भंडार खंड ने तो सूचना विभाग को भी नहीं बख्शा। अधिकारियों ने फर्जीवाड़े के लिए जिला सूचना अधिकारी उाराखंड की फर्जी मोहर बनाकर टेंडरों को प्रकाशित होना बताया, जबकि उाराखंड में इस पद का कोई भी अधिकारी नहीं होता है। जब मामले का खुलासा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत हुआ तो सूचना आयोग ने इसकी जांच वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून से करवाई। जांच रिपोर्ट में संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखा गया, लेकिन सिंचाई विभाग के आला अफसरों ने न तो आज तक फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई की, न ही उस रिपोर्ट की तरफ झांकने की जहमत उठाई।
शासन ने जिन ठेकेदारों को लैक लिस्ट किया, सिंचाई विभाग के चीफ ने उन्हीं को जीवनदान दे दिया। सिचाई विभाग के यांत्रिक उपकरण खंड, देहरादून में वर्ष 2011 में करोड़ों का फर्जीवाड़ा हुआ था। जांच के बाद रिकवरी के साथ सभी ठेकेदारों को लैक लिस्ट किये जाने के आदेश हुए, लेकिन सिंचाई विभाग का चीफ बनने के बाद राजेन्द्र चालीस गांवकर ने इन्हें इनाम दे दिया। यह सब जानने के बाद कि शासन ने इन ठेकेदारों को लैक लिस्ट करने के साथ ही रिकवरी के आदेश दिए हंै। उन सभी ठेकेदारों को पुन: 2019 तक के लिए ठेकेदारी लाइसेंस बहाल कर दिए।
चीफ के ऐसे निर्णय से अब अधिकारियों को जवाब देते नहीं बन रहा है। शासन से बड़े हो गए सिंचाई चीफ। जी हां, यह हम नहीं कह रहे हैं, सिंचाई विभाग के चीफ के एक आदेश के बाद यह सच उजागर हो चुका है। उाराखंड शासन ने 2014 में एक निर्देश चीफ सिंचाई को दिया था। जिसमें कहा गया कि यांत्रिक उपकरण भंडार खंड में हुए करोड़ों के फर्जीवाड़े के मुख्य आरोपी अधिकारियों एवं ठेकेदारों से वसूली की जाय। साथ ही जिन ठेकेदारों ने इसको अंजाम दिया, उनको लैक लिस्टेड किया जाये, लेकिन सिंचाई विभाग के चीफ उन आदेशों को नहीं मानते। न ही विभाग में हुए करोड़ों के घोटाले, फर्जीवाड़े को मानते हैं, तभी तो जिन अधिकारियों से वसूली के निर्देश शासन द्वारा दिए गए थे, आज तक एक से भी वसूली नहीं करवाई गई है। यही नहीं, जिन ठेकेदारों को लैक लिस्टेड करने के आदेश दिए गए थे, उनके लाइसेंस को रिन्यू भी कर दिया गया है।
वर्ष 2011 में यांत्रिक उपकरण एवं भंडार खंड देहरादून डिवीजन द्वारा हर्रावाला गोदाम जो कि विभाग के अंडर में था ही नहीं, उस पर फर्जी तरीके से एक दर्जन अनुबंध बनाकर 50 लाख के कार्य किया जाना बताकर सरकारी धन को ठिकाने लगाने का कार्य सिंचाई अधिकारियों की मिलीभगत से किया गया था।
यही नहीं, यमुना कालोनी के गोदामों में भी 40 लाख का इसी प्रकार का घपला किया था। इतना ही नहीं, डिवीजन द्वारा सूचना विभाग की फर्जी मोहर बनाकर करोड़ों के टेंडर उस दौरान प्रकाशित होना बताया गया। तब इसकी जांच शासन द्वारा करवाई गई। 2000 पेज की इस जांच रिपोर्ट में यह मामला पूरी तरह से फर्जी के साथ सरकारी धन के गबन का पाया गया, लेकिन किसी भी अधिकारी एवं ठेकेदार पर कार्रवाई नहीं हुई।
शासन ने इसको गंभीरता से लेते हुए 28 अगस्त 2014 को संबंधित यांत्रिक उपकरण एवं भंडार खंड देहरादून में बरती गई अनियमितताओं से सरकार को हुई क्षति पर तत्काल सभी संलिप्त ठेकेदारों से वसूली एवं लैक लिस्ट करने के निर्देश दिए गए थे। जिन ठेकेदारों को लैक लिस्टेड किया गया, उनको मुख्य अभियंता सिंचाई द्वारा लाइसेंस नवीनीकरण कर जीवनदान दे दिया गया। जब इस संबंध में विभागाध्यक्ष से पूछा गया तो वे जवाब देने से बचते रहे। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है।
अगर इस प्रकार किया गया है तो उसको दिखवाया जाएगा, परंतु चीफ कितनी भी दलीलें देते रहे, उनके हस्ताक्षर से जो जुलाई माह में हुआ, वह गंभीर ही नहीं, शासन के आदेशों का उल्लंघन भी है।
चीफ की इस कार्यशैली से सवाल तो खड़े होंगे ही। या जो करोड़ों का घोटाला हुआ, उसकी भरपाई हो गई? जिनको जांच में दोषी माना गया, उन पर कार्रवाई की गई? सवाल यह भी है कि जब कार्रवाई होनी ही नहीं थी तो फिर शासन द्वारा जांच यों करवाई गई? या मुख्य अभियंता शासन से बड़े हो गए? या इसे मुख्य अभियंता घोटाला नहीं मानते! इनका जवाब तो आज नहीं तो कल देना ही होगा।
सिंचाई विभाग के इस डिवीजन के अभियंताओं एवं ठेकेदारों ने अधिकारियों के साथ मिलकर करोड़ो का घोटाला किया, इन पर जो कार्रवाई होनी चाहिए, थी वो हुई नहीं, बल्कि बचाने का पूरा प्रयास किया गया। इससे सरकार पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। एक तरफ भ्रष्टाचार मुत सरकार की बात होती है, दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दिया जा रहा है।