जिन कंधों पर उत्तराखंड के दुग्ध व्यवसाय का जिम्मा है, वही विभाग को अपनी चरागाह बना बैठे हैं
उत्तराखंड में दुग्ध उत्पादन दिनोंदिन कम होता जा रहा है, किंतु दुग्ध उत्पादन विभाग के अधिकारी कर्मचारी इस पर ध्यान न देकर विभाग को महज ऐशगाह की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इस बार देहरादून का दुग्ध उत्पादक संघ सवालों के घेरे में है। दुग्ध उत्पादक संघ रायपुर पर आरोप लगे हैं कि इसके अधिकारी कर्मचारी दुग्ध उत्पादकों के कल्याण के लिए स्वीकृत धन को अपने निजी उपयोग में लाकर वारे-न्यारे कर रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने घोषणा की थी कि दुग्ध उत्पादकों को दो से चार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी, किंतु देहरादून का दुग्ध उत्पादक संघ इस प्रोत्साहन राशि को दुग्ध उत्पादकों को न देकर ठेकेदारों को दे रहा है।
उदाहरण के तौर पर कामधेनु एवं दुर्गा डेरी के ठेकेदारों को यह प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। जिससे दुग्ध संघ को लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है।
देहरादून के सामाजिक कार्यकर्ता तथा राज्य आंदोलनकारी सतीशचंद्र जोशी ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की है। जोशी का आरोप है कि दुग्ध संघ के अध्यक्ष विजयचंद रमोला तथा प्रधान प्रबंधक एसएस पाल मिलकर इस तरह के घोटाले को अंजाम दे रहे हैं।
यही नहीं दुग्ध संघ के अध्यक्ष विजय रमोला न सिर्फ दुग्ध संघ के वाहन तथा ड्राइवर का गलत इस्तेमाल करते हैं, बल्कि अपने निजी प्रयोग में भी लाते हैं।
जोशी ने आरोप लगाया कि अध्यक्ष विजयचंद रमोला के बड़े भाई शंकरचंद रमोला कांग्रेस के प्रदेश सचिव हैं तथा उनके द्वारा सहसपुर में दुग्ध संघ के वाहन संख्या यूके०७वी-०१६८ द्वारा चुनाव के दौरान प्रचार-प्रसार किया गया। दुग्ध संघ के निर्माण कार्यों में भी बिना टेंडर के काम कराने के गंभीर आरोप भी अध्यक्ष तथा प्रधान प्रबंधक पर लगाए गए हैं।
दुग्ध संघ में चहेतों को बिना विज्ञप्ति के नियुक्ति देकर व्यक्तिगत लाभ पहुंचाया गया है। नरेंद्र सिंह सजवाण नाम के कंप्यूटर ऑपरेटर को तो बिना अनुभव तथा बिना टंकण ज्ञान के पदोन्नति दे दी गई। जिस अधिकारी ने इनको पदोन्नति आदेश दिए, उस पत्रावली में साफ-साफ लिखा है कि ये भविष्य में कंप्यूटर चलाना सीख लेंगे।
यही नहीं दुग्ध संघ के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पुनर्नियुक्तियां देकर बेरोजगार युवाओं का हक भी मारा गया है।
दुग्ध संघ के संयुक्त निदेशक जयदीप अरोड़ा पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उन पर आरोप है कि उत्तर प्रदेश के समय में इनकी नियुक्ति की गई थी। तब से लेकर अब तक वह देहरादून में ही डटे हैं।
गौरतलब है कि डेरी विकास विभाग का कार्यालय श्रीनगर गढ़वाल में स्थापित है तथा जयदीप अरोड़ा २०-२५ वर्षों से देहरादून में ही कैंप कार्यालय बनाकर बैठे हैं तथा इन्होंने दुग्ध संघ देहरादून से ३-४ कर्मचारी अपने घर में कार्य के लिए तैनात कर रखे हैं। जिससे हर माह दुग्ध संघ को हजारों रुपए का नुकसान हो रहा है।
इनके भ्रष्टाचार के कारण ही गढ़वाल मंडल के कई दुग्ध संघ बंद हो गए हैं तथा कई बंद होने की कगार पर हैं।
यही नहीं अरोड़ा के सबसे चहेते नीरज कुमार ही डेरी विकास विभाग के फील्ड कर्मचारी हैं, किंतु वह भी १७-१८ वर्ष से देहरादून में ही तैनात हैं तथा इनके फील्ड कार्य न लिए जाने के बाद भी १२०० रुपए फील्ड भत्ता नियमों के विरुद्ध दिया जा रहा है।
सतीशचंद जोशी का यह भी आरोप है कि उत्तराखंड के दुग्ध उत्पादक संघों का दूध तो मेरठ आदि शहरों में भेज दिया जाता है, किंतु देहरादून के लिए सहारनपुर अथवा प्राइवेट डेयरियों का दूध खरीदा जा रहा है। इस दूध में भी खासी मिलावट की जाती है।
डेरी विकास मंत्री धन सिंह रावत का गृह क्षेत्र श्रीनगर में ही है तथा डेरी विकास विभाग का कार्यालय भी श्रीनगर में ही है, किंतु आज श्रीनगर का दुग्ध उत्पादन केंद्र बंदी की कगार पर है और वहां के तमाम कर्मचारी देहरादून में कैंप कार्यालय बनाकर बैठे हैं।