आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस था। सचिवालय में अफसर आउटसोर्सिंग से सचिवालय में कार्यरत एक युवती को कई दिनों से महिलाओं की आजादी से लेकर फेमनिज्म के नए किस्से सुना रहा था। आखिरकार वह युवती को यह झांसा देने में कामयाब रहा कि आउटसोर्सिंग से १०-१२ हजार की नौकरी में कोई सशक्तिकरण नहीं होनेवाला, इसलिए ‘कामयाबी की सीढ़ी’ पर चढऩा पड़ेगा।
अफसर ने युवती को इस बात के लिए …. कर लिया कि औरों की तरह कंप्यूटर, लैपटॉप लेकर बैठी रहोगी तो रोजाना पांच-छह घंटे बैठे रहने पर भी कोई उद्धार नहीं होने वाला। इसके बजाय अगर अफसर के ‘लैप टॉपÓ पर बैठोगी तो छह-सात मिनट में ही नैय्या पार लग जाएगी।
सुनने में यह भी आया कि अफसर वित्त संबंधी कामकाज देखता है और उसने युवती के दिमाग में दो बातें बिठाई। एक तो उसने कहा कि युवती दैनिक वेतनभोगी है और सचिवालय में बायोमैट्रिक सिस्टम लगने के बाद शनिवार-इतवार की छुट्टी होने पर इन दिनों का वेतन युवती को नहीं मिल पाएगा।
दूसरा उसने कहा कि नई सरकार आने पर पुराने आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों को हटा देगी। इसलिए वह परमानेंट टाइप की नौकरी का प्रबंध कर सकता है। युवती को अपना भविष्य अफसर के हाथों में ही सुरक्षित लगा। पानी में रहकर मगर और ऑफिस में अफसर से बैर ठीक नहीं रहता। अफसर युवती से काफी इज्जत देकर बात करता।
अफसर ने अपनी गाड़ी पार्क करते हुए भली-भांति देख लिया था कि बेसमेंट की पार्किंग में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं। मौका देखकर अफसर ने युवती के साथ बेसमेंट की पार्किंग में महिला सशक्तिकरण मना डाला, लेकिन बुरा हो एक और सचिवालय कर्मी का, जो ऐन उसी समय पार्किंग में खड़ी अपनी गाड़ी निकालने पहुंच गया। अफसर और युवती किसी तरह गिरते-पड़ते भाग खड़े हुए। अब सचिवालय में भले ही चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था हो, लेकिन क्या करें एक-एक इंच की चौबीस घंटे निगरानी थोड़े ही हो सकती है। कैमरे भी कहां-कहां लगाए जाएं। सशक्तिकरण के परवानों को कौन रोक सका है भला।