देश के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जिनके पास कोई भी विभाग नहीं और जिनकी शिक्षा व्यवस्था की आज विश्व स्तर पर चर्चा होने लगी है, की देखादेखी उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने भी इस मुद्दे पर केजरीवाल बनने की सोची। केजरीवाल द्वारा दिल्ली में बनाए गए मॉडल स्कूलों से लेकर फीस एक्ट के माध्यम से सामान्य गरीब परिवार के बच्चों के लिए शिक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की इस स्तर पर वाहवाही हुई कि केंद्र सरकार ने डेढ़ रुपए प्रतिमाह मानदेय पर रखे उनके शिक्षा सलाहकार को बर्खास्त कर भड़ास निकाली, ताकि केजरीवाल मोदी से आगे की बड़ी सोच के नेता के रूप में प्रसिद्धि न पा लें।
भारतवर्ष के इतिहास में पहली बार निजी विद्यालय द्वारा ली गई अधिक फीस केजरीवाल सरकार ने अभिभावकों को वापस करवाई। केजरीवाल की नकल कर वाहवाही लूटने के लिए उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने इतनी घोषणाएं कर दी कि वे सब एक-एक कर कूड़े के ढेर में जाती दिखी। ट्रांसफर एक्ट लागू करने से पहले अरविंद पांडे ने कई दर्जन शिक्षकों को शिक्षक कार्य से बाहर दूसरे कामों में लगा दिया। शिक्षा मंत्री के फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्सएप को चलाने के लिए पांच सरकारी शिक्षक दिन-रात लगे हुए हैं।
अरविंद पांडे द्वारा फीस एक्ट की बात सरकार के सवा साल के कार्यकाल के बाद भी धरातल पर नहीं आई। अरविंद पांडे द्वारा एनसीईआरटी की पुस्तकों की अनिवार्यता को निजी विद्यालयों की एसोसिएशन द्वारा न्यायालय से तब खारिज हो गई, जब न्यायालय ने सभी प्रकाशनों की किताबों की छूट देकर सरकार के फरमान को किनारे कर दिया।
इस बीच ट्रांसफर एक्ट को धरातल पर लाने की बातें सामने आई तो पता चला कि अरविंद पांडे के सानिध्य में चल रहे शिक्षा विभाग में सुगम-दुर्गम के खेल भी शुरू हो गए हैं। सरकार द्वारा जारी सुगम-दुर्गम की परिभाषा की पोल तब खुली, जब एक शिक्षक को सुगम में 80 वर्ष 4 महीने और 4 दिन नौकरी करते दर्शाया गया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने स्वर्ग सिधार चुके शिक्षक प्रेम सिंह नगारी को एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति ही नहीं दी, बल्कि उन्हें हल्द्वानी के जीआईसी मोतीनगर से जीआईसी ज्वारनेड़ी अल्मोड़ा तबादला भी कर दिया। अब प्रेम सिंह नगारी को स्वर्ग से वापस आकर पहले एलटी से प्रवक्ता पद पर प्रमोशन लेकर अल्मोड़ा जाना होगा। यह दूसरी बात है कि स्वर्गीय प्रेम सिंह नगारी जनवरी 2018 में एक सड़क हादसे में हल्द्वानी में काल के गाल में समा गए।
जिस प्रदेश में मरे हुए लोगों के न सिर्फ प्रमोशन हो रहे हों, बल्कि ट्रांसफर भी हो रहे हैं, उस प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का क्या आलम हो सकता है, यह समझना बहुत कठिन नहीं है। इससे पहले शिक्षा सचिव डा. भूपेंद्र कौर औलख द्वारा एक और तुगलकी शासनादेश जारी किया गया। जिसमें प्रदेश के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को खाली पीरियड में बच्चों को पढ़ाने का आदेश दिया गया है। यह आदेश उस दौर में जारी हुआ, जबकि सैकड़ों विद्यालय एकल शिक्षा व्यवस्था पर चल रहे हैं। ऐसे में शिक्षा सचिव द्वारा शिक्षकों की व्यवस्था करने की बजाय खाली पीरियड का जो शिगूफा छेड़ा गया है, वह भी सरकार की मजाक उड़ाने के लिए पर्याप्त है।
बहुत दिन नहीं हुए, जब सरकार ने सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही का हुक्म भी जारी किया।
शिक्षकों को ड्रेस कोड का फरमान सुनाने वाले शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे कुछ दिन तो कुर्ता पजामा पहनकर घूमे, किंतु जब शिक्षकों ने अरविंद पांडे के डे्रस कोड के फरमान को मानने से इंकार कर दिया तो पांडे ने नीली जींस और सफेद टीशर्ट पहनकर आदेश जारी किया कि वे शिक्षकों के उस कार्यक्रम में कभी नहीं जाएंगे, जहां ड्रेस कोड नहीं होगा। कोटद्वार में शिक्षक संगठनों ने एक कार्यक्रम में अरविंद पांडे के इस फरमान के बाद उनको दरकिनार कर हरक सिंह रावत को मुख्य अतिथि बनाकर संदेश दे दिया कि वे पांडे की बात का कितना सम्मान करते हैं।
अरविंद पांडे के शिक्षा सुधार कार्यक्रमों की हालत यह है कि पांडे के शिक्षा मंत्री बनने के बाद सूबे के सैकड़ों स्कूलों पर ताले लग चुके हैं। वीवीआईपी विधानसभाओं और पर्वतीय क्षेत्र के विद्यालयों में अपने अनुसार मानक गढ़े जा रहे हैं। कहीं शिक्षक नहीं तो कहीं शिक्षा व्यवस्था चौपट है।
कुल मिलाकर अरविंद पांडे का अरविंद केजरीवाल बनने का शिगूफा मात्र शिगूफा ही बनकर रह गया।