गजेंद्र रावत//
उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार को अपने कब्जे में दिखाने या अपने अनुसार चलाने की होड़ में लगे कुछ लोग अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए गले की फांस बनते दिखने लगे हैं। 15 मार्च 2017 को तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को खासी परेशानी झेलनी पड़ी, जब चुनाव के दौरान उनके द्वारा बनाए गए चुनाव संचालक सुनील उनियाल गामा ने सोशल मीडिया में त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने की खबर सोशल मीडिया में शेयर कर दी।
हुआ यूं कि भाजपा हाईकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली बुलाया था। इसी बात पर सुनील उनियाल ने यह घोषणा कर त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर पर ढोल-बाजे भी बजवा दिए। जैसे ही यह खबर प्रसारित हुई, तुरंत त्रिवेंद्र सिंह रावत के अलावा मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल लोगों ने भाजपा हाईकमान के सामने विषय रख दिया कि जो व्यक्ति मुख्यमंत्री बनने से पहले इस प्रकार का आचरण कर रहा हो, ऐसे व्यक्ति से भविष्य में क्या उम्मीद की जा सकती है? गामा पहलवान की इस पहलवानी के कारण एक दिन लेट घोषणा हो पाई। दिल्ली से लौटकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गामा पहलवान को जमकर फटकार लगाई, बाद में त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने पर सुनील उनियाल गामा अपने आप को मुख्यमंत्री के सबसे नजदीक दिखाने में लग गए और अब उनके समर्थकों द्वारा यह प्रचार किया जा रहा है कि देहरादून के मेयर का अगला टिकट उनका फाइनल हो चुका है।
सरकारी कार्यक्रमों में त्रिवेंद्र सिंह रावत के बगल में फोटो खिंचवाने वाले सुनील उनियाल गामा ने पिछले दिनों त्रिवेंद्र सिंह रावत की तब किरकिरी करवाई, जब कारगिल शहीद दिवस पर उन्होंने चमड़े के सैंडिल पहनकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। गामा ने यह भी नहीं देखा कि उनसे पहले श्रद्धासुमन अर्पित करने वाले सूबे के मुखिया नंगे पैर श्रद्धा के साथ शहीद स्थल पर जाकर श्रद्धांजलि दे रहे थे। एक मुख्यमंत्री के बगल में खड़ा होकर फोटो खिंचवाने की होड़ ने सुनील उनियाल गामा इस कदर होश खो बैठे कि उन्हें शहीदों के प्रति इतना भी ज्ञान नहीं रहा। मुख्यमंत्री के साथ मंचों पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर दीनदयाल उपाध्याय और नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह के बारे में बड़े-बड़े भाषण देने वाले सुनील उनियाल शहीदों के प्रति इतना सामान्य शिष्टाचार भी नहीं रख पाए।
इतिहास गवाह है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों को बर्बाद करने में ऐसे ही पहलवानों का हाथ रहा। आज तक जितने भी मुख्यमंत्री उत्तराखंड में अलोकप्रिय हुए, उसके मूल में इसी तरह के छुटभैये थे, जिन्होंने मुख्यमंत्री के चेहरे की आड़ में अपना चेहरा चमकाने की कोशिशें की।
देखना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने चारों ओर घूम रहे ऐसे पहलवानों से अपने और अपने प्रदेश को बचा पाते हैं या फिर पूर्व मुख्यमंत्रियों की भांति उसी गति को बढ़ते हैं!