आज के जमाने में जहां 60 की उम्र पार होने पर जहां आम जन – मानस अपनें हाथ – पांव चलाना छोड़ देता है व कई खतरनाक बीमारियो की जकड़ में आ जाता है, वहीं दूसरी ओर 82 साल की उम्र में भी छवीलाल अपनी फिटनेस और मैंटेनेंस बराबर बनाए हुए हैं और आज भी चमोली जनपद के विकासखंड घाट में सिलाई मशीन का काम वही लगन और मेहनत से करते है , जो कि उन्होंने अपनी 22 साल की उम्र से शुरू किया था। आज उम्र 80 के पार होने के वह स्वयं सिलाई मशीन की सुई में धागा तक ड़ाल लेते हैं।
छवीलाल चमोली जनपद के दूरस्थ विकासखंड घाट में स्थित कुमजुग गांव के रहनें वाले हैं और चार साल पहले एक भयानक सड़क दुर्घटना के शिकार हुए थे जिससे उनके सिर पर गंभीर चोटें भी लगी थी। इस दुर्घटना के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि शायद ही अब वे सिलाई का काम कर पाएंगे परन्तु अपने काम करने की लगन व मेंहनत के चलते उन्होंने अपनी चोट के उभरकर काम शुरू कर दिया। वे आज भी उत्तराखंडी परिधान वास्कट, घाघरा ( उत्तराखंड के आराध्य देवता गौरिया देवता का पहनावा) पूर्ण कला का निखार देते हैं।
उम्र के अंतिम पड़ाव में ये सब काम क्यों पूछने पर वे बताते हैं कि वे घर से पूर्ण सम्पन्न हैं उनके लड़के की सिलाई की दुकान हैं । और वह भी अपनी कला में भी निपूर्ण हैं,उनका उनका पोता भारतीय सेना में देश की रक्षा कर रहे हैं।
वह आगे बताते हैं कि ये काम मेरा शौक है, और देवताओं के परिधान सिलना मेरी कला रही है ,और मुझे इस काम में दिलचस्पी भी है।उनका कहना है कि बदलते जमाने के इस दौर में कोई भी दर्जी अब देवी देवताओं के परिधानों को नही सिलता, लोग अपनी पुरानी संस्कृति को भूल रहे है,अपने आराध्य देवी देवताओं के परिधानों को सिलने वाले दर्जी कम ही जीवित बचे हुए है,मेरे बेटे ने कई बार मेरी उम्र को देखते हुए मुझे दर्जी का काम करने को मना किया, लेकिन जब तक मे जीवित हूँ। अपना पैतृक काम करता रहूंगा।