उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार भले ही प्रचंड बहुमत वाली हो, किंतु एक साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले एक बार फिर दिल्ली में बैठे उस हाईकमान, जो कि पूरे देश में ध्रुवीकरण की राजनीति से सत्ता हासिल करने की नीति पर काम कर रहा है, की उंगलियों पर नाचता नजर आ रहा है। दिल्ली से ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर नई तैनातियों की लिस्टिंग के बीच 60 लाख रुपए का नया मामला उस प्रदेश के लिए वास्तव में बड़ा है, जहां पिछले छह महीने में वेतन देने के लिए सरकार ने बैंक से लोन लिया है।
दिल्ली के प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की एक सिरीज, जो कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर लिखी गई है, को इस वर्ष दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में बेचने के लिए रखा गया। इस पुस्तक के बारे में बताया गया कि ये राष्ट्रवाद को समझाने वाली है। भारतीय जनता पार्टी के विचारक रहे दीनदयाल उपध्याय के बारे में छपी पुस्तकें जब विश्व पुस्तक मेले के बाद बाजार में नहीं बिकी तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इन किताबों के सेट खरीदने के आदेेश दिए, ताकि ये पब्लिक लाइब्रेरी, स्कूलों और कालेजों में बेचे जा सके। 15 पुस्तकों के इस सेट में एक सेट की कीमत 6 हजार रुपए बताई गई। अमित शाह के आदेश के तुरंत बाद एक दिन के भीतर प्रभात प्रकाशन को एक हजार से अधिक पुस्तकों की खरीद की बुकिंग मिल गई।
उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार ने 15000 पुस्तकें सूचना विभाग के माध्यम से 60 लाख रुपए का भुगतान कर खरीदी हैं। सूचना विभाग के उपनिदेशक आशीष त्रिपाठी का कहना है कि महानिदेशक सूचना द्वारा दिए गए आदेश का पालन करते हुए उन्होंने इस प्रक्रिया को अंजाम दिया। अब इन 15000 पुस्तकों को सभी 13 जिलों में सूचना विभाग के माध्यम से विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों व पब्लिक लाइब्रेरी में भेजा जा रहा है।
देखना है कि 60 लाख रुपए की इन पुस्तकों से उत्तराखंड का क्या भला होता है या फिर यह निर्णय सिर्फ दिल्ली में बैठे हाईकमान के तुष्टिकरण का बनकर रह जाता है!