भूपेंद्र कुमार
“अगर राज्य मे भाजपा के कार्यकर्ताओं का भी एक छोटा सा काम नही हो पा रहा है तो काम किसके हो हो रहे हैं फिर !”
यही हूबहू व्यथित शब्द थे एक भाजपा कार्यकर्ता के साथ आए परिजन के जो अपने बुखार से तप रहे बीमार बच्चे को भी दून अस्पताल की इमरजेन्सी में भी भर्ती नही करा पा रहे थे। आइए आपको बताते हैं मसला क्या था।
दस मार्च को बीजेपी के एक कार्यकर्ता कुशल मौर्य अपने बच्चे को बुखार आने की वजह से कोरोनेशन हॉस्पिटल लेकर गए। कुछ और कार्यकर्ता और परिजन भी उनके साथ थे।
अस्पताल मे गैरजिम्मेदारी का ये आलम था कि इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर ने बच्चे को एडमिट करने से मना कर दिया।
अस्पताल मे मौके पर मौजूद अधिकारी ने कहा कि यहां पर बच्चों का कोई डॉक्टर नहीं है, और जो डॉक्टर है वह कल नहीं आएंगे।
फिर श्री मौर्य उस बच्चे को लेकर दून चिकित्सालय पहुंचे। यहां भी इमरजेंसी में एक व्यक्ति दारु पी कर बैठा हुआ था। उसके द्वारा एक दवाई दी गई और दूसरी लिख दी कि आप एक दवाई बाहर से ले लेना। जब उनसे बच्चे को भर्ती करने की बात कही गई तो वह गुस्सा करने लगे।
जब उन्हे बताया गया कि पहले बच्चे को दून अस्पताल के ही एक बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर केएस रावत को दिखाया गया था,और उन्होंने ही तबियत मे फर्क न पडने पर एडमिट करने की सलाह दी थी। लेकिन वहाँ पर मौजूद व्यक्ति उच्चाधिकारी से राय लेने के बजाय एडमिट न करने पर अड़ा रहा।
इस पर वहां बहस की नौबत आ गई। मामला बढा तो फिर वहां पर डॉक्टर आ गए। उन्होंने बच्चे को देखा।इतने मे वह व्यक्ति वहां से भाग गया। जब डॉक्टर से पूछा गया कि यह व्यक्ति कौन था तो उन्होंने जानकारी होने से ही मना कर दिया।
हम सोचे कि देहरादून में भी एक बुखार से बच्चे को भर्ती करने के लिए व्यवस्था नहीं है तो राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल होगा।
इस घटना से क्षुब्ध होकर श्री मौर्य के साथ आए अजय बहुगुणा ने सीएम से इसकी शिकायत की और बताया कि इस बात को अवश्य संज्ञान में लें और यह घटना पहली बार नहीं तीन चार बार उनके ही साथ घट चुकी है।