गढ़वाल मंडल विकास निगम में अनियमितताओं के कारण 23 कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। अभी औरों का भी नंबर है। अचानक से 23 कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने का फरमान सुनते ही कर्मचारी यूनियन सकते में आ गई और धरना प्रदर्शन पर उतारू हो गई। हालांकि यूनियन ने प्रबंध निदेशक को एक मांग पत्र देते हुए 28 तारीख तक अपना धरना टाल दिया था और अब यूनियन में भ्रष्ट और लापरवाह कर्मचारियों की पैरवी करने से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।
लंबे समय से शासन स्तर पर सभी विभागों की शिकायतों के उपरांत यह देखा जा रहा था कि अलग-अलग विभागों में कुछ कर्मचारी विभागों के लिए अभिशाप साबित हो रहे थे। न तो वह कोई कार्य ही करते थे और न ही उनका अनुशासन सही था। उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन न करना और अपने से सीनियर-जूनियर के मुंह लगना इन लोगों के लिए आम बात हो गई थी।
अधिकतर समय नशे की हालत में कार्यालय में रहना और बिना किसी सूचना के चले जाना कुछ कर्मचारियों की आदतों में शुमार हो गया था, जिसका असर कार्यालय के कामकाज और अन्य कर्मचारियों के व्यवहार पर भी पड़ रहा था। इन तमाम शिकायतों के मध्यनजर शासन स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक मीटिंग कर शासन ने दिनांक 6 जुलाई 2017 को कार्मिक विभाग द्वारा शासनादेश निर्गत किया गया, जिसके अनुसार 50 वर्ष की आयु से अधिक के आयु वर्ग के कर्मचारियों को स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक आयोजित कर कार्यों की समीक्षा के आधार पर आवश्यक सेवानिवृत्ति का प्रावधान किया गया।
इस नियम के अनुसार प्रत्येक विभाग को अपने यहां एक स्क्रीनिंग कमेटी गठित करनी है और प्रत्येक वर्ष स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक आयोजित कर विभागीय कर्मचारियों कि स्क्रीनिंग किया जाना सुनिश्चित किया जाना होता है।
इसी के क्रम में गढ़वाल मंडल विकास निगम की प्रबंध निदेशक ज्योति नीरज खैरवाल ने निगम को फायदे में लाने के लिए लगातार उठाए जा रहे सुधारवादी कदमों में यह भी एक शामिल है कि उनके द्वारा विभाग में 11/ 4/ 2018 को एक्शन कमेठी का गठन किया गया। जिसमें प्रबंध निदेशक अध्यक्ष, महाप्रबंधक प्रशासन सदस्य, तथा महाप्रबंधक वित्त भी सदस्य हैं।
इस तीन सदस्य कमेटी द्वारा दिनांक 8 जून 2018 को स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक आहूत की गई। बैठक में तीनों सदस्यों ने प्रतिभाग किया, जिसके अनुसार जी एम वी एन में वर्षों से कार्य से विरत चल रहे तथा कार्य को ठीक प्रकार से अन्जाम न देने वाले कर्मचारियों को आवश्यक सेवानिवृत्ति दी गई। प्रथम स्क्रीनिंग में 23 कर्मचारियों को चयनित किया गया है, जिसमें विपणन अनुभाग से 5, उद्योग विभाग से 5, पर्यटन अनुभाग से 12 लोगों का चयन किया गया। इन चयनित लोगों में अधिकतर वह लोग हैं, जो या तो अपने कार्य पर नहीं है या विभाग द्वारा इन कर्मचारियों के विरुद्ध कई बार अनुशासनात्मक कार्यवाही अमल में लायी जा चुकी है।
इनको घर न भेजें तो कहां भेजें
चंबा गैस सर्विस के प्रबंधक चंद्रवीर सिंह भंडारी, जमुना गैस सर्विस के चौकीदार धर्म सिंह राणा, पेट्रोल पंप पीपलकोटी के सहायक ग्रेड-3 हरिलाल, उद्योग अनुभाग के हेल्पर दर्शन लाल, लेखा लिपिक रमेश चंद्र, पर्यटन अनुभाग के मुकेश भट्ट, प्रबंधक दिलीप सिंह सहायक प्रबंधक विमल पांडे पर यह आरोप सिद्ध पाए गए कि यह लोग अक्सर बिना बताए ड्यूटी से गायब रहते हैं और तमाम चेतावनियों के बाद भी उनके व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया है। यही नहीं इनमें से अधिकांश अत्यधिक शराब पीने तथा सहकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करने के चलते कई दफा चेतावनियां भी पा चुके हैं। लेकिन इनके व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया।
सफाई नायक मामचंद क्लीनर शिव सिंह, गंभीर चंद रमोला जैसे कई लोगों को कई दफा प्रतिकूल प्रविष्टियां भी दी गई लेकिन इनके शराब के सेवन और अन्य व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। जिसके कारण आखिरकार इन्हे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का फैसला लिया गया।
जाहिर है कि निगम की स्थापना जनता की सेवा के लिए की गई है न कि शराबी और कभी न सुधरने की कसम खा चुके चंद कर्मचारियों के लिए।
ऐसा नहीं है कि यह सब कर्मचारी चंद महीनों में चिन्हित किए गए हैं। इन्हें पिछले कई सालों से प्रतिकूल प्रविष्टियां और चेतावनियां मिलती रही हैं। इनमें से एक प्रबंधक दिलीप सिंह तो मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण राष्ट्रपति राज्यपाल से लेकर तमाम उच्चाधिकारियों को अपने पद से उच्च पद की मुहर का प्रयोग कर पत्राचार करते रहते हैं। जिसके कारण निगम की छवि खराब होती है। वह पिछले 3 माह से भी अधिक बिना अवकाश स्वीकृति के अनुपस्थित चल रहे हैं। अब भला कोई बताए कि ऐसे कर्मचारियों को निगम में रखने का क्या औचित्य हो सकता है ! ऐसे ही एक और प्रबंधक मुकेश भट्ट तो प्राय: शराब का सेवन के अभ्यस्त हैं। वह 14 मई 2017 से 3 सितंबर 2017 तक नशा मुक्ति केंद्र में भी भर्ती रहे लेकिन कोई सुधार उनके आचरण में नहीं आया। ऐसे में इस तरह के कर्मचारियों के कारण निगम की छवि तो खराब होती ही है, निगम पर ताले पड़ने की नौबत भी आ गई है। यमकेश्वर के प्रबंधक विमल पांडे को शराब के सेवन और अभद्रता के चलते वर्ष 2009-10 और वर्ष 2011-12 लगातार चरित्र पंजिका में कार्यों के प्रति लापरवाही और प्रतिकूल प्रविष्टि दी गई। यहां तक कि क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने पर्यटन मंत्री उत्तराखंड शासन को प्रेषित पत्रों में कई बार शिकायत की है कि श्री पांडे प्रायः शराब के नशे में रहते हैं और उनके कारण कोई भी व्यक्ति पर्यटक आवास गृह में ठहरना नहीं चाहता।
लेखा लिपिक रमेशचंद्र तो 17 मार्च 2013 से 27 जून 2017 तक कुल 1128 दिन बिना किसी सूचना के और अनुमति के कार्य से अनुपस्थित रहे। इसके लिए उन्हें कई बार कठोर चेतावनियां और कारण बताओ नोटिस भी दिए गए। उन पर वित्तीय गबन की जांच भी चल रही है। ऐसे अधिकारियों का निगम की सेवा में रहना पर्यटन विकास पर एक बदनुमा दाग भी है।
आवश्यक सेवानिवृत्ति के लिये अधिकतर वह कर्मचारी हैं, जो अपने कार्य के समय शराब के नशे में रहते थे। जिनमें से कुछ को समय-समय पर इसके लिये दण्डित भी किया जा चुका है। कुछ मानसिक रूप से कार्य करने की हालत में नहीं है।
कुछ लोग निगम के इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं परन्तु यह कदम निगम के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि कुछ कर्मचारी रात-दिन एक करके निगम हित में अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहे हैं और दूसरी ओर वह लोग हैं जो बिना किसी कार्य के वेतन ले रहे हैं।
काम न करने वाले कर्मचारियों के कारण ही काम करने वालों को वेतन नहीं मिल पा रहा है। गढ़वाल मंडल विकास निगम कर्मचारी यूनियन के महासचिव आशीष उनियाल कहते हैं कि उनकी यूनियन भ्रष्ट और लापरवाह कर्मचारियों की तरफदारी बिल्कुल नहीं करेगी किंतु इसमें इतना जरूर है कि जिन कर्मचारियों द्वारा निगम हित में कार्य करते हुए अपने हाथ पैर गंवा दिये, आज काम नहीं कर पा रहे हैं इस प्रकार के कर्मचारियों के विषय में सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाना चाहिए। परन्तु जिन कर्मचारियों को बार-बार मौका मिलने पर भी नहीं सुधरते और कई बार नशामुक्ति केंद्र से हो के आ चुके हैं, इस प्रकार के कर्मचारी सहानुभूति के पात्र तो बिलकुल नहीं हो सकते। यूनियन महासचिव श्री उनियाल कहते हैं कि न तो इस प्रकार के लोग विभाग के हित में है और न ही अपने परिवार के हित में है। इस प्रकार के कर्मचारियों के सेवा निवृत्ति पर विरोध करना निगम हित में नहीं होगा।