मुख्यमंत्री के जनता दरबार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दो टूक जवाब देने वाली अध्यापिका उत्तरा बहुगुणा को निलंबित करके उप शिक्षा अधिकारी कार्यालय नौगांव में संबद्ध कर दिया गया है। प्रारंभिक जिला शिक्षा अधिकारी केएस चौहान ने उनके निलंबन आदेश में लिखा है कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री के जनता दरबार में बिना विभागीय अधिकारी के प्रतिभाग किया है और वहां पर अभद्रता की गई है, जो कर्मचारी आचार सेवा नियमावली का उल्लंघन है।
इस रिपोर्ट में हम पूरी तस्दीक के बाद यह समझने का प्रयास करेंगे कि वाकई यह मामला क्या था और उत्तरा पंत बहुगुणा के लिए जो नियम हैं, वह मुख्यमंत्री की पत्नी तथा अध्यापिका सुनीता रावत के लिए क्यों नहीं हैं?
मुख्यमंत्री की पत्नी की तैनाती (आरटीआइ)
कल देहरादून में मुख्यमंत्री के जनता दरबार में अध्यापिका उत्तरा पंत और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच हुए गर्मागर्म संवाद और अध्यापिका के निलंबन आदेशों के बाद यह पूरा प्रकरण देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पूरे घटनाक्रम के प्रमुख गवाह मीडिया के भी लगभग दो धड़ों में बंटने के कारण इस घटनाक्रम के वीडियो का वह भाग रणनीति के तहत प्रसारित किया गया, जिसमें केवल महिला गुस्से में बोलती दिखाई दे रही है। यह वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद लोग मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को नसीहत देने वाले अंदाज में गरियाने लगे। इस बीच इस वार्तालाप का पूरा वीडियो सामने आया तो सभी लोगों ने एकतरफा मुख्यमंत्री को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया। लगभग दो दिन तक पूरे सोशल मीडिया और प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक मीडिया में यही किस्सा ट्रेंड करता रहा।
लोगों का कहने का लब्बोलुआब बस यही था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पद की गरिमा गिराते हुए जनता दरबार में आई एक विधवा महिला टीचर की बातें संवेदनापूर्वक सुनने-समझने के बजाय उन्हें सीधे सस्पेंड करने और गिरफ्तार करने के आदेश दे डाले। लोगों का कहना था कि यदि ट्रांसफर एक्ट ही दुरुस्त होता और उनके अधिकारियों ने ही उनकी बात ठीक से सुन ली होती तो शिक्षिका को जनता दरबार तक आने की नौबत ही क्यों आती।
सीएम और शिक्षिका की संपूर्ण बातचीत से समझा जा सकता है कि शिक्षिका पहले ‘सर’ जैसे विनम्र शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपनी समस्या रख रही थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने खुद ही शिक्षिका को चुप रखते हुए डपटते हुए और फिर उकसाते हुए सस्पेंड करने तथा कस्टडी में लेने की बात कही। इतना कहना था कि सुरक्षाकर्मियों ने शिक्षिका के साथ बल प्रयोग करते हुए खदेडऩा शुरू कर दिया। बस फिर क्या था, अपनी जायज मांग का इस तरह अनादर देखकर महिला विफर पड़ी। इसके बाद महिला ने एक मुख्यमंत्री के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया, वह भले ही उचित नहीं थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने जिन शब्दों से शुरुआत की थी, उसका यही परिणाम होना था।
मुख्यमंत्री ने यह नहीं सोचा कि 57 वर्ष की एक विधवा टीचर को आखिर अपने अधिकारियों को छोड़कर सीधे जनता दरबार में क्यों आना पड़ा ! और उसमें आखिर इतनी हिम्मत आई कहां से कि वह मुख्यमंत्री से सीधे इस तरह से मुखातिब हो बैठी !
मुख्यमंत्री जी ने भले ही न सोचा हो, लेकिन पर्वतजन ने इस ज्वालामुखी विस्फोट की तह तक जाकर उन कारणों की पड़ताल की तो पता चला कि यह अध्यापिका पिछले 25 साल से सिस्टम से लड़ रही थी, लेकिन कोई पहुंच न होने के कारण इसका अधिकारियों और जिम्मेदार मंत्रियों तक ने उपहास उड़ाने में कसर नहीं छोड़ी।
उत्तरा पंत बहुगुणा की पहली नियुक्ति 1993 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय भदरासू मोरी उत्तरकाशी के दुर्गम विद्यालय में हुई थी। अगले साल उन्हें उत्तरकाशी में ही चिन्यालीसौड़ के धुनियारा प्राथमिक विद्यालय में तैनात कर दिया गया, जो सड़क से 5-6 किमी. की खड़ी चढ़ाई पर स्थापित है। वर्ष 1994 से सात-आठ साल तक वह जगडग़ांव दुगुलागाड में तैनात रही तथा वर्ष 2003 से 2015 तक यहां तैनात रहने के बाद उन्हें उत्तरकाशी के नौगांव में जेस्टवाड़ी प्राथमिक विद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2015 में पति की मृत्यु होने के बाद अध्यापिका लगातार बच्चों के साथ देहरादून ट्रांसफर के लिए प्रयास कर रही थी, किंतु तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत से लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत तक ने उनकी कुछ नहीं सुनी।
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अध्यापिका कुछ दिन पहले भी त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिली थी और उन्होंने महिला को ट्रांसफर करने का आश्वासन भी दिया था, किंतु जब ट्रांसफर नहीं हुआ तो महिला जनता दरबार में जा पहुंची थी, किंतु मुख्यमंत्री ने उन्हें सस्पेंड करने और कस्टडी में लेने जैसे आदेश देकर पूरे ट्रांसफर एक्ट से लेकर सरकार और मुख्यमंत्री की गरिमा तक पर एक बहस शुरू करा दी है।
लोग पूछने लगे हैं कि मुख्यमंत्री ने जिस तरह के मानक और सवाल इस विधवा अध्यापिका के लिए व्यवहृत किए थे, क्या इसी तरह से वह अपनी पत्नी तथा शिक्षिका से भी करते !
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पर्वतजन ने जब मुख्यमंत्री की पत्नी पर उठ रहे व्यापक सवालों की पड़ताल की तो और भी अधिक चौंकाने वाली कहानी सामने आई। पर्वतजन के पास आरटीआइ मे उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता रावत अपनी प्रथम नियुक्ति से लेकर अब तक सुगम में ही तैनात हैं।
सुनीता रावत की प्रथम नियुक्ति 24 मार्च 1992 को प्राथमिक विद्यालय कफल्डी स्वीत पौड़ी गढ़वाल में हुई थी। यह एक सुगम विद्यालय है। 16/7/1992 से वह चार साल प्राथमिक विद्यालय मैंदोली पौड़ी गढ़वाल में रही और फिर 27/8/1996 को उनका ट्रांसफर प्राथमिक विद्यालय अजबपुर कलां में हुआ तो फिर कभी उन्होंने यहां से बाहर का मुंह नहीं देखा। 24/5/2008 को उनकी पदोन्नति पूर्व माध्यमिक विद्यालय अजबपुर कलां में ही हुई और तब से वह यहीं तैनात हैं।
सूचना के अधिकार में लोक सूचना अधिकारी तथा उप शिक्षा अधिकारी मोनिका बम ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि सुनीता रावत की नियुक्ति पत्र के अलावा अन्य प्रमाण पत्र उनके पास उपलब्ध नहीं हैं।
यह विद्यालय रायपुर ब्लॉक के देहरादून में स्थित है। यदि इन दोनों अध्यापिकाओं की तुलना की जाए तो एक अध्यापिका 1993 से उत्तरकाशी के दुर्गम में है और वर्ष 2015 में विधवा हो गई थी, जबकि दूसरी अध्यापिका 1992 में अपनी तैनाती के बाद से लगातार सुगम में है और 1996 से देहरादून में एक ही जगह पर तैनात है।
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आखिर दोनों अध्यापिकाएं जब प्राथमिक स्कूलों की अध्यापिकाएं हैं तो दोनों के लिए दो अलग-अलग नियम क्यों हैं?
जाहिर है कि इसका जवाब संभवत: मुख्यमंत्री के पास भी नहीं है, किंतु रिटायरमेंट के नजदीक एक विधवा अध्यापिका के दुख और आक्रोश के प्रति सहानुभूति और समानुभूति के दो शब्दों के बजाय यदि मुख्यमंत्री सत्ता के अहंकार में इस तरह से भड़केंगे तो जनता दरबार का औचित्य ही क्या रह जाएगा?
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बहरहाल जिस तरह से मुख्यमंत्री इस विधवा अध्यापिका पर “बरसे” हैं, उससे पिछले दिनों प्रधानमंत्री द्वारा देहरादून में योग महोत्सव से संचित “राजनीतिक पुण्य” धुल गया है। देखना यह है कि इस “बरसात” के बाद उत्तराखंड में भाजपा का राजनीतिक भूस्खलन होता है अथवा डैमेज कंट्रोल के द्वारा इस बरसात से प्राप्त सबक को भविष्य के संसाधन के रूप में काम में लाया जाता है।