कल 23 जुलाई को देहरादून एअर पोर्ट से दून तक दो हजार समर्थकों के साथ हरीश रावत का शक्ति प्रदर्शन और फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह से मिलना यूं ही नही था। यह हरीश रावत के बढे कद के बाद नई कहानी की शुरुआत है। राजनीति के माहिर खिलाड़ी बहुत ठंडा करके खाते हैं।
नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश द्वारा हरीश रावत पर किए गए हमलों का जवाब देने के लिए हरीश रावत के समर्थकों ने उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक जो प्लेटफार्म तैयार किया है, वह इंदिरा हृदयेश के लिए कष्टकारी साबित हो सकता है। हरीश रावत के विरुद्ध इंदिरा हृदयेश के ये हमले तब तेज हुए, जब इंदिरा हृदयेश ने अपने पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के उद्देश्य से युवा पीढ़ी को कमान सौंपने की बात की दरअसल हरीश रावत के नैनीताल लोकसभा सीट से ताल ठोकने की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी इंदिरा प्रदेश के इस बयान पर हरीश रावत ने पलटवार करते हुए कहा कि “चैरिटी बिगिंस फ्रॉम होम” इसलिए इंदिरा हृदयेश को खुद से शुरुआत करनी चाहिए। हरीश रावत ने इंदिरा हृदयेश को खुद से ही इस्तीफा देकर युवा पीढ़ी को आगे लाने और उन्हें नेतृत्व सौंपने की वकालत की।
हरीश रावत द्वारा दिए गए इस वक्तव्य पर इंदिरा हृदयेश इस कदर बौखला गई कि उन्होंने हरीश रावत के विधानसभा चुनाव हारने पर जोरदार तंज कसा और कहा कि हरीश रावत को उत्तराखंड की जनता ने दो विधानसभा चुनाव हराकर घर बैठने का फरमान सुना दिया है। लिहाजा उन्हें उस पर गौर करना चाहिए। इंदिरा हृदयेश यहीं नहीं रुकी। उन्होंने घोषणाभरे लहजे में ऐलान किया कि कांग्रेस प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह के उत्तराखंड दौरे पर उत्तराखंड के कुछ कांग्रेसियों की बोलती बंद की जाएगी और कुछ को बाहर का रास्ता भी दिखाया जाएगा।
इंदिरा हृदयेश की इस धमकी पर कांग्रेस के भीतर घमासान मच गया कि आखिरकार हरीश रावत की हार पर इंदिरा इस प्रकार क्यों बिफर गई। इस बीच अनुग्रह नारायण सिंह के देहरादून आने से पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने हरीश रावत को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव व कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाने के साथ-साथ असम का भी प्रभारी बना दिया। राहुल गांधी के इस कदम से जहां हरीश रावत को संजीवनी मिली, वहीं इंदिरा हृदयेश के लिए हरीश रावत का यह प्रमोशन गले की फांस बन गया है। कल तक जो लोग इंदिरा हृदयेश की हां में हां मिला रहे थे, वे अब पूरी तरह से बैकफुट पर हैं। हरीश रावत अब कांग्रेस में उस मुकाम पर हैं कि इंदिरा हृदयेश जैसे बयान कोई भी उनके खिलाफ शायद ही दे। हरीश रावत उत्तराखंड ही नहीं, देश के तमाम चुनावों में न सिर्फ टिकट बांटने वाले लोगों की पांत में शुमार हो चुके हैं, बल्कि उन्हें कई लोगों के पर कतरने की भी शक्ति अब मिल चुकी है।
हरीश रावत समर्थकों ने इस बीच पार्टी के भीतर मांग शुरू कर दी है कि हरीश रावत जैसे पुराने नेता के खिलाफ बयानबाजी करने वाली इंदिरा हृदयेश को क्यों न बाहर का रास्ता दिखाया जाए। वैसे भी इंदिरा हृदयेश से अब हल्द्वानी से बाहर पैदल चलना भारी हो रहा है। हरीश रावत समर्थकों का कहना है कि गैरसैंण सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, इंदिरा हृदयेश का तब मजाक उड़ा चुके हैं, जब उन्होंने गैरसैंण में ठंड होने की बात कही थी तो त्रिवेंद्र रावत ने कहा था कि बूढ़ी कांग्रेस को गैरसैंण में ठंड लग रही है।
कांग्रेस के एक बड़े वर्ग में इस बात को लेकर बहस तेज हो रही है कि क्यों न विषम परिस्थितियों में कांग्रेस सरकार को बचाने वाले और तब भाजपा के सरकार गिराओ अभियान को ध्वस्त करने वाले गोविंद सिंह कुंजवाल को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाए, जिन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए सरकार नहीं गिरने दी।
इन लोगों का तर्क है कि इंदिरा हृदयेश अपना आखिरी चुनाव लड़ चुकी है और वह अब डबल इंजन सरकार से लडऩे में भी अक्षम है। इसलिए समय रहते उन्हें विश्राम मोड में भेजकर कमजोर हो रही कांग्रेस को मजबूती प्रदान की जा सके, ताकि पार्टी के खिलाफ बयान देने वाले लोग भी दुरुस्त रहें। इन लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस नेता शशि थरूर को भी अनावश्यक बयानबाजी पर फटकार लगाई है। क्यों न राहुल गांधी की बात को आगे बढ़ाते हुए समय पर इंदिरा हृदयेश को घर भेज दिया जाए।