देहरादून में सुभारती विश्वविद्यालय के अधिग्रहण के बाद से रोज नया हंगामा सामने आ रहा है। सवाल उठता है कि आखिर इस विश्वविद्यालय को शासन में किसका संरक्षण प्राप्त है !!
देखिए आईएएस पांडियन की कार्रवाई
स्टाफ को उत्तराखंड सरकार रखने की बात कर रही थी उसी ने सरकार मुर्दाबाद के नारे लगाए। पिछले 6 माह का वेतन दिलाने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार ने 7 तारीख को ही इसका अधिग्रहण किया है।
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किसके संरक्षण में हो रहा है निर्माण कार्य
सुभारती सील है व राज्य सरकार के नियंत्रण में तो यह निर्माण कार्य कौन करवा रहा है ? कैसे व किसके आदेश से हो रहा यह निर्माण कार्य ? नक्शा भी पास नही है।
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सुभारती अभिभावक संघ ने उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि उत्तराखंड सरकार फर्जी MBBS चलाने ,फर्जी यूनिवर्सिटी चलाने तथा सरकार ,कैबिनेट ,व कोर्ट को गुमराह करने के ,700 पैरामेडिकल के छात्रों के 3 साल बर्बाद करने लिए सुभारती प्रबंधन के डॉ अतुल भटनागर,यशवर्द्धन रस्तोगी ,अविनाश श्रीवास्तव के खिलाफ धोखाधड़ी ,फर्जीवाड़े आदि का मुकदमा तत्काल दर्ज कर इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजे।”यदि सरकार यह नही करती है तो अभिभावक व छात्र को कठोर निर्णय लेना होगा।”
देखिए आइएएस ओमप्रकाश ने सुभारती को कैसे बचाया !!
आपको बता दें कि सुभारती सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करके MBBS की अनुमति लाया पर बाद में पता चला कि इसके मानक पूर्ण नही हैं तथा यह विवादित है, जिस कारण MCI ने इसको मान्यता नही दी। साथ ही रास बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी देहरादून में कोर्ट के स्टे के दौरान कैबिनेट व विधान सभा से तथ्यों को छुपाकर पारित करवा ली, जिसे उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी है। तथा विवादों के चलते इसको किसी पैरामेडिकल कौंसिल ने अनुमति नही दी और छात्रों का भविष्य बर्बाद हो गया।
सवाल यह है कि इतना सब घोटाला होते हुए सुभारती को कौन बचाता रहा ? यह सरकार में बैठे आला अफसर के सिवा और कोई नही हो सकता।
भष्ट्राचार पर और कांग्रेस शासन काल से वर्षो से मलाईदार सीटों पर जमे कुछ भ्रष्ट अफसरों के काले कारनामे ऐसे भी हैं। जो सेटिंग से अपने पुराने आकाओं के दम पर जमे बैठे हैं। उनपर जांच बैठना और उनका हटना लगभग अब तय होना चाहिए।
किसके दबाव में हुआ भू उपयोग परिवर्तन
इसी क्रम में एक मामला ऐसा भी प्रकाश में आया जिसमे वर्ष 2012 में न्यायालय द्वारा निरस्त हो चुकी रजिस्ट्रियों की एसडीएम विकास नगर ने 2014 में 143 यानी भू उपयोग परिवर्तन कर दिया और ऊपर से स्वामित्व के अन्य विवाद भी अन्य न्यायालयों में लंबित हैं। जिस पर हाल ही अप्रैल माह में माननीय उत्तराखंड हाई कोर्ट के जस्टिस लोकपाल सिंह ने WPMS 2401/2017 के निर्णय दिनांक 16.04.2018 में तल्ख टिप्पणी की थी इन अफसरों में एसडीएम विकासनगर, देहरादून जितेंद्र सिंह व अपर आयुक्त गढ़वाल हरक सिंह रावत है व इसकी प्रति मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह को भी पंहुची थी।
कोर्ट के आदेश ,डॉ सयाना का पत्र और ड़ी सेंथिल पांडियन का पत्र तीनो मे निरस्त हो चुके विक्रय पत्रों पर जमीन की 143 यानी भू उपयोग परिवर्तन का विवरण है।
ये भी एक NH घोटाला टाइप ही है कि जिस जमीन की रजिस्ट्री कोर्ट ने निरस्त कर दी हो उसकी 143 कर दी जाए।
कैसी हुई सुभारती की फीस तय
सामान्यतः नियम यह है कि MBBS कॉलेज की फीस रिटायर्ड जज की अध्यक्षता की कमिटी तय करती है पर यहाँ तो बड़ा कारनामा हुआ ।
खुद ही हरीश रावत की सरकार के चिकित्सा शिक्षा मंत्री रहते दिनेश धने ने 13,90,000 फीस तय कर दी थी और सुभारती ने कई छात्रों से यह फीस ली और 5 साल का एग्रीमेंट भी जबरन साइन करवाया। जो छात्र नही दे सकते थे वो नैनीताल हाई कोर्ट गए तब उन्हें कॉलेज ने अंदर घुसने दिया । एक तो फर्जी वाड़ा ऊपर से ठगी भी।
दिनेश धने को यह फीस तय करने का कोई अधिकार नही था फिर कैसे यह लेटर जारी कर दिया !!
अब देखना यह है कि जीरो टॉलरेंस सरकार व एसआईटी इस पर क्या कदम उठाती है ! क्योंकि हाईकोर्ट ने स्पष्ट लिखा है कि जिस प्रकार के क्रिया कलाप इन्होंने किये हैं, उनसे समाज और जनता का भरोसा न्यायपालिका से उठ रहा है।
आखिर फिर सवाल यह खड़ा होता है कि सुभारती को शासन में बैठा कौन आका इतने बड़े घोटालों के बाद भी बचा रहा है कि आज सुभारती स्टाफ ने उत्तराखंड सरकार मुर्दाबाद के नारे लगा दिये !
आखिर यह शासन मे बैठे किस आका के फोन करने पर हुआ। आखिर विकासनगर के एसडीएम को किसने फोन करके यह कारनामा अंजाम देने का दबाव डाला ! क्या जीरो टोलरेंस की सरकार इसका खुलासा करेगी !!
यदि समय रहते सरकार ने इस आका के खिलाफ कार्यवाही नहीं की तो सरकार की जीरो टोलरेंस वाली छवि को नुकसान पहुंचना जारी रहेगा।