मुख्यमंत्री से विचलन के माध्यम से कई मसलों पर मंजूरी लेने के बाद इन्हें राजभवन के संज्ञान में लाने से बच रहे हैं उच्चाधिकारी। भ्रष्टाचार के लिए चर्चित विभाग अपना रहे हैं यह तरीका
पर्वतजन ब्यूरो
राज्य बनने के पश्चात विभिन्न सरकारों ने हजारों ऐसे नीतिगत निर्णय लिए हैं, जिनकी कैबिनेट मंजूरी आवश्यक थी, किंतु इनकी भनक कैबिनेट मंत्रियों को तो दूर, राज्य के सर्वोच्च मुखिया राज्यपाल को भी नहीं लग पाती। विचलन के द्वारा लिए गए निर्णयों पर कार्यवाही करने तथा उनका रखरखाव करने वाले गोपन विभाग में भी इसका कोई रिकार्ड नहीं है कि अब तक कुल कितने फैसले विभिन्न सरकारों ने विचलन के माध्यम से लिए हैं।
सरकार आए दिन कोई न कोई नीति नीतिपरक निर्णय लेती रहती है। इनमें से कई मामलों में कैबिनेट की सहमति आवश्यक होती है, किंतु कई फैसलों को विचलन के माध्यम से लिया जाना जरूरी हो जाता है।
उत्तर प्रदेश कार्य नियमावली १९७५ के ११वें बिंदु में यह व्यवस्था दी गई है कि मुख्यमंत्री किसी मामले में विचलन के माध्यम से निर्णय ले सकते हैं। विचलन अमूमन तब किया जाता है, जब किसी मामले में कैबिनेट के सदस्यों की मंजूरी आवश्यक हो, किंतु वे उपलब्ध न हो अथवा निर्णय तत्काल लिया जाना अपरिहार्य हो जाए।
कायदा यह है कि जिन मामलों में विचलन के माध्यम से निर्णय लिया जाता है, वे भी गोपन विभाग के द्वारा राज्यपाल को भेजे जाते हैं। इसके बाद राज्यपाल की औपचारिक स्वीकृति प्राप्त होती है और उक्त निर्णय विधिमान्य हो जाता है।
हाल ही में यह तथ्य पर्वतजन की तहकीकात में सामने आया है कि कई विभागों के कई मामलों में विचलन के माध्यम से निर्णय होने के बाद ये मामले राजभवन के संज्ञान में नहीं लाए जाते और न ही इन्हें गोपन विभाग में अग्रेत्तर कार्यवाही के लिए भेजा जाता है। विभिन्न विभाग कई महत्वपूर्ण मसलों पर विचलन के माध्यम से मुख्यमंत्री से स्वीकृति कराकर सीधे अपने आप ही अनुपालन शुरू कर देते हैं।
पर्वतजन पत्रिका ने पिछले दिनों उत्तराखंड शासन के गोपन विभाग से सूचना के अधिकार में वर्ष २०१२ से लेकर अब तक विचलन के माध्यम से लिए गए विभिन्न निर्णयों की जानकारी मांगी थी। गोपन विभाग मात्र २५ आदेशों की ही कॉपी उपलब्ध करा सका। ये भी अत्यन्त साधारण किस्म के आदेश थे। जैसे कि विधानसभा सत्र आहूत करने अथवा सत्रावसान करने की स्वीकृति संबंधी अथवा कोई विभागीय सेवा नियमावली से संबंधित सामान्य संशोधन।
आरटीआई में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि कई विभाग विचलन के माध्यम से स्वीकृत कराए गए फैसलों को जानबूझकर राजभवन तक पहुंचने ही नहीं देते और न ही इसकी भनक गोपन विभाग तक लगने देते हैं।
खनन, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई, पेयजल जैसे कई विभाग चुपचाप विचलन के माध्यम से अपने कार्य करा ले जाते हैं। भ्रष्टाचार के लिए अक्सर चर्चित रहने वाले इन विभागों के अफसरों को संभवत: यह लगता है कि विचलन के माध्यम से कराए गए फैसलों की जानकारी राजभवन तक पहुंचने से राज्यपाल इन फैसलों पर आपत्ति खड़ी कर सकते हैं।
विचलन के माध्यम से ली जाने वाली इन मंजूरियों में भ्रष्टाचार की आशंका व्यापक स्तर पर रहती है। संभवत: इसीलिए ऐसे निर्णय कैबिनेट के माध्यम से न कराकर विचलन का सहारा लिया जाता है। संभवत: सरकार को भी इस बात का इल्म रहता है कि कैबिनेट के किसी सहयोगी द्वारा यदि आपत्ति जताई गई तो ये मंजूरियां खटाई में पड़ सकती हैं।
विचलन के माध्यम से विभिन्न स्वीकृतियां लेकर विभाग राजभवन के कानों तक इसलिए भी बात नहीं जाने देते कि ऐसा करने पर इस तरह के गोपनीय फैसले मीडिया में भी चर्चा का विषय बनकर सरकार की फजीहत करा सकते हैं।
आरटीआई में प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार विचलन के माध्यम से स्वीकृत कराए गए सिर्फ उन्हीं मामलों की जानकारी गोपन विभाग को दी जाती है, जो किसी सेवा नियमावली से संबंधित हो अथवा बेहद साधारण किस्म के हों, किंतु विचलन के माध्यम से पहले से स्थापित नियमों को शिथिलीकरण करने अथवा छूट या माफी देने से संबंधित निर्णयों को ये विभाग गोपन विभाग तक पहुंचाने में कन्नी काट जाते हैं।
कोई भी नीतिगत निर्णय चाहे विचलन के माध्यम से ही क्यों न लिया गया हो, किंतु राज्यपाल की अंतिम स्वीकृति के बाद ही यह विधिमान्य कहलाया जाता है। ऐसे में यदि घर के मुखिया को ही इस बात की भनक न हो कि परिवार में उसके अन्य सदस्य क्या-क्या गुल खिला रहे हैं अथवा किस तरह के निर्णय ले रहे हैं तो यह वाकई चिंता का विषय बन जाता है।
मुख्यमंत्री के स्तर से एक बार विचलन के माध्यम से स्वीकृति ले लेने के बाद राजभवन तक को अंधेरे में रखने की यह चालाकी आने वाले समय में कई अफसरों पर गाज बनकर गिर सकती है।
विचलन के माध्यम से निर्णय होने के बाद ये मामले राजभवन के संज्ञान में नहीं लाए जाते और न ही इन्हें गोपन विभाग में अग्रेत्तर कार्यवाही के लिए भेजा जाता है। विभिन्न विभाग कई महत्वपूर्ण मसलों पर विचलन के माध्यम से मुख्यमंत्री से स्वीकृति कराकर सीधे अपने आप ही अनुपालन शुरू कर देते हैं।