उत्तराखंड में 500 करोड़ रुपए का सौर ऊर्जा घोटाला सरकार दावे बैठी है। अफसरों ने रूफटॉप सोलर पावर प्लांट की योजना में 500 करोड़ रुपए से भी अधिक का घोटाला किया है।
इसमें सब्सिडी, भारत सरकार के फंड और जनता के धन का भारी भरकम घोटाला शामिल है। इसमें सौर ऊर्जा के बड़े बड़े अफसर शामिल हैं। लेकिन डेढ़ साल बाद भी जीरो टोलरेंस की सरकार ने कार्यवाही करना तो दूर वह इस घोटाले की फाइल पर ही अंगद की तरह बैठ गई है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ऊर्जा मंत्री भी हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर प्रहार की केवल बात करते हैं, काम नहीं करते। आइए जानते हैं कैसे !
भारत सरकार के सौर ऊर्जा मंत्रालय ने रूफटॉप सोलर प्लांट के लिए भारी भरकम धनराशि कुछ गाइडलाइंस के साथ उत्तराखंड सरकार को जारी की थी।
यह सब्सिडी सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट को प्रोत्साहन देने के लिए जारी की गई थी। गाइडलाइन के अनुसार आवासीय भवनों और इसके परिसर में रूफटॉप सोलर पावर प्लांट के निर्माण के लिए 70% सब्सिडी वाली एक योजना स्वीकृत की थी। किंतु उरेडा के कुछ अफसरों ने यह पावर प्लांट योजना जनता के धन का दुरुपयोग करते हुए अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और परिवार के लोगों के नाम कृषि भूमि पर ही खफा दी।
जब इस मामले की शिकायत देहरादून निवासी सलीम अहमद ने प्रधानमंत्री कार्यालय मे की तो भारत सरकार की एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई गई और उसने धरातल पर सरसरी तौर पर इनमे से ग्यारह सोलर प्लांट का सत्यापन किया।
भारत सरकार की कमेटी ने सरसरी तौर पर केवल 11 पावर प्लांट का निरीक्षण किया और इसके आधार पर 3.85 मेगा वाट की सभी 11 योजनाओं में से ही 19 करोड रुपए की सब्सिडी वापस लिए जाने के निर्देश दिए। जबकि हकीकत में अन्य पावर प्लांट भी ऐसे ही थे और इस तरह से वापस लिए जाने वाली कुल सब्सिडी 118 करोड पर बनती है।
भारत सरकार के निर्देशों के बावजूद उरेडा ने सब्सिडी वापस लेने के लिए कोई भी एक्शन नहीं लिया। क्योंकि यह पावर प्लांट उरेडा के ही अफसरों के रिश्तेदारों और नजदीकी लोगों के थे। उत्तराखंड सरकार के जांच अधिकारी ने भी इस घोटाले में उरेडा को डिफॉल्टर पाया था।
ऊर्जा सचिव ने स्पष्ट रूप से उरेडा के निदेशक को 6 जून 2018 को आदेश दिया था कि इस मामले में तत्काल कार्यवाही की जाए। जब जीरो टोलरेंस की सरकार के ऊर्जा सचिव ने भी कार्यवाही करने के आदेश दिए तो इसके बावजूद भी कार्यवाही क्यों नहीं की गई ! आखिर मुख्यमंत्री कार्यालय क्यों घोटालेबाजों को बचाने में लगा हुआ है !
उत्तराखंड सरकार आरोपित अफसरों को पूरा संरक्षण दे रही है और इस मामले को जानबूझकर टाल रही है तथा पूरे मैटर को ही डंप कर रही है। जबकि सरकार को इस मामले में इतने बड़े घोटाले को लेकर एफ आई आर तो दर्ज करानी ही चाहिए थी। इस घोटाले में उरेडा के निदेशक एके त्यागी मुख्य परियोजना, अधिकारी सी पी अग्रवाल और सहायक परियोजना अधिकारी सीधे-सीधे शामिल हैं।
जनता के धन के इतने बड़े दुरुपयोग के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। जब इस मामले में कुछ लोग सब्सिडी के लिए हाई कोर्ट गए तो गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने साफ-साफ कह दिया कि उरेडा डिफॉल्टर है।
आइए इस मामले को थोड़ा विस्तार से जानते हैं कि यह घोटाला कैसे अंजाम दिया गया।
पहला तथ्य यह है कि
सौर ऊर्जा विभाग ने अखबारों में एक इस योजना का एक विज्ञापन “पहले आओ पहले पाओ” के आधार पर प्रकाशित कराया। अब आप देखिए किस जिस दिन यह विज्ञापन अखबार में छपा उसी दिन सारे आवेदन डिमांड ड्राफ्ट, खसरा खतौनी के पेपर, हैसियत के पेपर, इनकम के दस्तावेज, जमीन के कागजों सहित सभी कागज पत्रों के साथ विभाग में जमा कर दिए गए। यहां तक कि उधम सिंह नगर और नैनीताल तक के आवेदन भी उसी दिन आ गए। आखिर यह कैसे संभव है !! यह इसलिए हुआ क्योंकि इस योजना को पहले ही ऊर्जा विभाग के अफसरों ने अपने करीबी और रिश्तेदारों को पहले से ही लीक कर दिया था। इससे वाकई जिस आम जनता के लिए क्या योजना थी वह योग्य लाभार्थी इस योजना से लाभ लेने से रह गए।
दूसरा तथ्य यह है कि ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार की गाइडलाइन के विपरीत जाते हुए यह योजना कृषि भूमि पर लगा दी गई। जबकि यह योजना केवल और केवल आवासीय भवनों की छत पर लगाए जाने के लिए बनाई गई थी। किंतु इसके बावजूद हंड्रेड परसेंट सब्सिडी रिलीज कर दी गई। इसमें एक और तथ्य यह है कि पहले चरण में केवल 30% सब्सिडी सेंटर से रिलीज की गई थी लेकिन उरेडा ने अपने नजदीकियों को पूरी की पूरी सब्सिडी जारी कर दी, जिससे कुछ लाभार्थी सब्सिडी पाने से रह गए और उन्हें कुछ नहीं मिला।
तीसरा तथ्य यह है कि लगभग सभी सोलर प्लांट 10 से 30 दिन के भीतर लगाए हुए दिखा दिए गए, ताकि यह कंपनियां पावर परचेज एग्रीमेंट के अनुसार मोटा लाभ कमा सकें।
दरअसल उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने 31 मार्च 2016 तक बिजली खरीद की दरें 6.80 प्रति यूनिट रखी थी जबकि 31 मार्च 2016 के बाद यह दरें 4.90 रुपए प्रति यूनिट हो गई।
दरअसल इस एग्रीमेंट के अनुसार 31 मार्च 2016 से पहले ही सोलर पावर प्लांट को बना हुआ दिखा कर उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन के साथ 6.80 प्रति यूनिट की दर से 25 साल का करार कर दिया गया। जबकि 31 मार्च 2016 के बाद इंस्टॉल किए जाने वाले प्लांट के लिए यह खरीद मात्र 4.90 रुपए प्रति यूनिट तय की गई थी।
इसका मतलब यह है कि अगले 25 साल तक उत्तराखंड पावर कारपोरेशन को इस एग्रीमेंट के अनुसार बढ़े हुए रेट पर बिजली खरीदनी पड़ेगी।
यह लगभग 300 से 400 करोड़ रुपए का सीधा सीधा नुकसान है लेकिन इस मामले में अभी तक की कोई एक्शन नहीं लिया गया है।
चौथा तथ्य यह है कि सभी सोलर पावर प्लांट कृषि भूमि पर बनाए गए, जबकि इन्हें आवासीय भवनों पर बनाना था। किंतु कोई कार्यवाही करने के बजाय उल्टा इन पावर प्रोजेक्ट लगी हुई जमीनों का लैंड यूज चेंज करने के लिए ही शासन से पत्र जारी कर दिया गया। यह पूर्व उर्जा सचिव उमाकांत पंवार का कारनामा था।
पांचवां तथ्य यह है कि इस घोटाले में भारत सरकार का फंड का दुरुपयोग हुआ। 118 करोड रुपए सब्सिडी घोटाला है और 300 से 400 करोड़ रुपए उच्च दरों पर बिजली खरीद का घोटाला है, लेकिन जीरो टोलरेंस की जुबान पर इस मामले में ताला है।
आखिर जीरो टोलरेंस की सरकार को दिक्कत क्या है ! सारे कागज सामने हैं, पूरा घोटाला सामने है, ऊर्जा सचिव कार्यवाही को कह चुके हैं, भारत सरकार कार्यवाही को कह चुकी है तो फिर सीएम और ऊर्जा मंत्रालय थामे बैठे त्रिवेंद्र सिंह रावत का इन घोटालेबाजों को बचाने में क्या लाभ है !! क्या जीरो टोलरेंस की यही परिभाषा है !
पर्वतजन अपने प्रिय पाठकों से यह अनुरोध करता है कि यदि आप इस घोटाले पर कोई कार्यवाही कराना चाहते हैं तो इस खबर को इतना शेयर कीजिए कि इस मामले में सीबीआई से जांच शुरू हो जाए या फिर एक कायदे की एफआइआर तो हो ही जाए !!