राजेश शर्मा,भूपेंद्र कुमार
उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय में आई जी कार्मिक के पद पर तैनात जीएस मर्तोलिया ने रिटायर होने से पहले दरोगाओं के प्रमोशन में एक ऐसा खेल कर दिया, जिसकी सर्वत्र आलोचना हो रही है और यह मामला शासन तथा कोर्ट के पाले में जाने के बाद बड़ी किरकिरी करा सकता है।
आरटीआई एक्टिविस्ट तथा पर्वतजन संवाददाता भूपेंद्र कुमार ने भी इस प्रमोशन घोटाले की शिकायत राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक से कर दी है। ये प्रमोशन पुलिस मुख्यालय की गले की हड्डी बनता जा रहा है।
शासन का निर्णय
और तो और सरकार के मंत्री, विधायकों ने भी इन प्रमोशन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मंत्री विधायकों ने भी आपत्ति जाहिर करते हुए पुलिस मुख्यालय और शासन से इसका औचित्य पूछ लिया है।
आईजी मर्तोलिया ने बदला कैबिनेट आदेश
गौरतलब है कि 24 जनवरी को यह नियमावली लागू हुई और इसका फायदा 30 जनवरी को 14 चहेतों को तो दे दिया गया, बाकी के लिए 14 फरवरी को एक आदेश निकालकर कह दिया गया कि यह नियमावली वर्ष 2019 के बाद भर्ती होने वाले कार्मिकों पर लागू होगी। इनमे से दो तो एक दिन बाद ही 31 जनवरी को रिटायर हो गये।
बस इसी चक्कर में सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया। आखिर जब चहेतों के लिए नियमावली लागू की गई तो बाकी उप निरीक्षकों के लिए इस नियमावली को दरकिनार क्यों कर दिया गया ! यही सवाल आई जी कार्मिक जीएस मर्तोलिया के गले की हड्डी बन सकता है।
14चहेतों के प्रमोशन के बाद बदला नियम
उत्तराखण्ड पुलिस मुख्यालय द्वारा उपनिरीक्षक से निरीक्षक के पद पर पदोन्नति हेतु नियमावली को नजरअंदाज कर अपने हिसाब से पदोन्नति करने के आदेश को लेकर अब भाजपा के मंत्री व विधायकों ने ही मुख्यालय को कटघरे में खडा कर दिया है
विधायक ने किया विरोध
उनका साफ कहना है कि उत्तराखण्ड पुलिस द्वारा उपनिरीक्षक से निरीक्षक के पद पर पदोन्नति पर शासन द्वारा जारी किये गये आदेशों का पालन कराया जाये। पुलिस मुख्यालय के आदेश के खिलाफ जिस तरह से सरकार के मंत्री व विधायकों ने प्रमुख सचिव गृह को पत्र लिखा है उससे साफ आभास हो रहा है कि अब दरोगाओं की पदोन्नति का मामला राजनीतिक रंग ले रहा है और पुलिस मुख्यालय के लिए सरकारी नियमावली के खिलाफ जाकर पदोन्नति करना आसान नहीं रह गया है?
विधायक गणेश जोशी ने किया विरोध
उल्लेखनीय है कि सरकार ने दरोगाओं से इंस्पेक्टर की पदोन्नति को लेकर नियमावली बनाई थी जिसे कैबिनेट में पास किया गया था।
अधिकांश दरोगाओं को आभास था कि सरकारी नियमावली के तहत ही पदोन्नति की जायेगी लेकिन पुलिस मुख्यालय ने सरकारी नियमावली के आधार पर पदोन्नति न कर अपने हिसाब से पदोन्नति करने का हुकम जारी किया था।
पुलिस मुख्यालय के इस हुकम से उन दरोगाओं के पैरों तले जमीन खिसक गई थी जो सपना पाले हुये थे कि नियमावली के आधार पर पदोन्नति में उनके कंधे पर भी निरीक्षक का तमगा लग जायेगा।
पुलिस मुख्यालय के आदेश से काफी संख्या में दरोगा नाराज दिखाई दिये और नाम न छापने की शर्त पर कुछ दरोगा साफ हुंकार लगाते रहे कि अगर पुलिस मुख्यालय ने सरकारी नियमावली के खिलाफ पदोन्नति की तो वह उच्च न्यायालय की शरण में चले जायेंगे।
हालांकि 2002 बैच के ही काफी दरोगा पुलिस मुख्यालय के आदेश को सही बता रहे हैं और वह सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग का भी जिक्र कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी कर्मचारी को संवर्ग में अपनी ज्येष्ठता, अपनी नियुक्ति की तिथि को प्रवृत्त नियमों के अनुसार, अवधारित कराने का अधिकार प्राप्त होता है। कर्मचारीगण की ज्येष्ठता बार-बार जब कभी ज्येष्ठता निर्धारण का मानदण्ड परिवर्तित होवे, पुन: निर्धारित नहीं की जायेगी। ज्येष्ठता में मनमाना परिवर्तन करने से संविधान के अनुछेद-16 एवं सरकारी सेवक के सिविल अधिकार का अतिक्रमण होता है।
वहीं अब सरकार के ही एक मंत्री व कुछ विधायक उन दरोगाओं के साथ खड़े हुये दिखाई दे रहे हैं जो पुलिस मुख्यालय के ताजे हुकम का पर्दे के पीछे रहकर विरोध कर रहे हैं। सरकार के कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने सचिव गृह को पत्र लिखा है कि पुलिस विभागान्तर्गत उपनिरीक्षक, निरीक्षक के पदों पर पदोन्नति, चयन हेतु उत्तराखण्ड पुलिस उपनिरीक्षक और निरीक्षक (नागरिक पुलिस/अभिसूचना) सेवा नियमावली 2018 प्रख्यापित हो चुकी है एवं तदोपरांत वर्ष 2019 में उसका संशोधन भी हो चुका है तो सम्बन्धित पदों पर विभागीय पदोन्नति की प्रक्रिया शासन द्वारा प्रख्यापित नियमावली के अनुसार होनी चाहिए।
उन्होंने गृह सचिव को लिखा कि वह चाहते हैं कि प्रश्नगत प्रकरण का परीक्षण कराते हुए अर्ह कार्मिकों के हित में नियमानुसार पदोन्नति की कार्यवाही सुनिश्चित कराई जाये। उधर भाजपा विधायक गणेश जोशी व उमेश शर्मा काऊ ने भी प्रमुख सचिव गृह को पत्र लिखकर नियमावली के आधार पर पदोन्नति किये जाने की पैरवी कर पुलिस मुख्यालय को कहीं न कहीं कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है ?