राजकीय सहायता प्राप्त विद्यालय किस तरह से पहले योग्य बेरोजगारों से वर्षों तक फ्री में पढवाते हैं और बाद में राजकीय मान्यता मिलने के बाद उसे लात मारकर अपने चहेतों को तमाम फर्जी प्रमाण पत्रों के द्वारा विद्यालय में नियुक्त कर देते हैं, टिहरी का एक और उदाहरण इसकी पोल खोल देता है। पर्वतजन ने पहले भी ऐसे ही एक उदाहरण का खुलासा किया था।
जनता जूनियर हाई स्कूल बोल्याधार , हिंदाव , भिलंगना , टिहरी गढ़वाल में अखिलेश बडोनी को दिनाँक 21 जनवरी 2014 को सहायक अध्यापक गणित / विज्ञान के पद पर शिक्षण हेतु विद्यालय के प्रबंधक तथा प्रभारी प्रधानाध्यापक द्वारा नियुक्त किया गया।
तत्पश्चात 20 फरवरी 2014 को विद्यालय को वित्तीय शासनादेश हुआ। शासनादेश के उपरांत विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक तथा प्रबंधक द्वारा विद्यालय छोड़ने के लिए लगातार बडोनी के ऊपर दवाब बनाया गया, किन्तु बडोनी वर्ष 2015 तक काम करते रहे। अंत में विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक बडोनी पर आर्थिक दबाव डालने लगा जिससे वह विद्यालय छोड़ने को मजबूर हो गये। तदुपरांत विद्यालय द्वारा विजयपाल सिंह को वर्ष 2016-17 में विद्यालय में गणित / विज्ञान के पद पर रखा गया,वह भी सिर्फ कागजों पर नाम चलाकर नौकरी पाने के लिए।
तत्पश्चात विद्यालय द्वारा 19 नवम्बर 2013 को फर्जी विज्ञापन दिखाकर तथा फर्जी साक्षात्कार की सीट बनाकर जिसमे विजयपाल सिंह रावत को चयनित दिखाकर पत्रावली बनायी, जिसमे किन्ही तत्कालीन समय के प्रधानाचार्यो के हस्ताक्षर करवाए गए।तत्पश्चात पत्रावली अनुमोदन हेतु मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय तथा जिला शिक्षा अधिकारी अपर (बेसिक) को भेज दी गयी।
इस फर्जीवाड़े की सूचना मिलने पर बडोनी ने सूचना के अधिकार से विद्यालय से अपने कार्यालय की उपस्थिति पंजिका तथा डायस डेटा मांगने पर प्रार्थी को विजयपाल सिंह जी के हित में नई उपस्थिति पंजिका दे दी गयी तथा डायस डेटा भी दिया गया, जिसमे श्री बडोनी का नाम स्पष्ट है। क्योंकि इसको बदलना संभव नहीं है, तथा बडोनी यह डेटा विभाग से भी ले चुके थे। फिर बडोनी ने इसकी शिकायत जिला अधिकारी टिहरी गढ़वाल को दी तथा दो बार की जांच की गयी।
पहले खंड शिक्षा अधिकारी भिलंगना , तत्पश्चात तहसीलदार (घनसाली) , किन्तु दोनों ही मामले को दबाने में लगे रहे,तथा तहसीलदार द्वारा तो बडोनी को समझौता कर मामला दबाने का प्रयास किया गया।
इस मामले को खराब होता देख विद्यालय तथा विभागीय उच्च अधिकारियों ने मिलकर विजयपाल सिंह को उच्च न्यायालय में विभाग के खिलाफ अपील करने का सुझाव दिया गया तथा अपील की गयी। तत्पश्चात बडोनी द्वारा भी न्यायालय में अपनी बात रखी गयी। पूर्व की भांति सहायक अध्यापक हिंदी के पद पर भी विभागीय अधिकारी (मुख्य शिक्षा अधिकारी व विधि अधिकारी खान). इसी तरीके से 2006 के विज्ञापन पर स्वयं विभाग के खिलाफ भेजकर माननीय न्यायालय को गुमराह कर नौकरी दे चुके हैं।
बडोनी के पास तत्कालीन समय का अनुभव प्रमाण पत्र प्रभारी प्रधानाध्यापक द्वारा प्रमाणित तथा तत्कालीन उप शिक्षा अधिकारी द्वारा प्रमाणित है तथा साथ ही अपने समय का डायस डेटा जो सरकार को भेजा जाता है। लेकिन उच्चाधिकारी सभी खामोश हैं, क्योंकि इस तरह के फर्जीवाड़े मे वे भी लिप्त हैं।
पर्वतजन ने इस विषय पर जब मुख्य शिक्षा अधिकारी टिहरी श्री गौड़ का पक्ष जानना चाहा तो उन्होने दो बार यह कह कर फोन रख दिया कि जो भी पूछना है आरटीआइ मे पूछो। वहीं जब इस मामले में जांच अधिकारी रहे बीइओ एस के अंथवाल से बात की तो उन्होंने प्रबंध समिति का पक्ष लेते हुए कहा कि प्रबंध समिति ने बडोनी को केवल कामचलाऊ व्यवस्था के तहत रखा था।
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