कमल जगाती, नैनीताल
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने पुलिस कर्मियों के मौलिक अधिकारों को लेकर स्वतः संज्ञान जनहित याचिका को सुनने के लिए स्वीकार करते हुए राज्य सरकार से चार हफ्ते में सभी बिंदुओं पर जवाब देने को कहा है।
उत्तराखण्ड में पुलिस अधिकारियों और कर्मियों की आकस्मिक मौत के मामले में एक तत्काल फंड बनाकर उन्हें जरूरत के समय मदद करने को भी कहा है।
बीती 28 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट के एडिशनल रजिस्ट्रार ने मनीष कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य के मामले में उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड के रजिस्ट्रार जर्नल को पत्र लिख मुख्य न्यायाधीश के सम्मुख जरूरी निर्देशों के लिए रखने को कहा है । इसमें संविधान के 14 और 21वें आर्टिकल में पुलिस वालों के मौलिक अधिकारों को देने को कहा गया है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने 11 मार्च 2019 को देश के सभी उच्च न्यायालय और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि सभी राज्यों ने पुलिस कमीशन बनाकर पुलिस कार्यवाही के आरोपों की जांच करने पर विचार करना चाहिए। न्यायालय ने पुलिस कर्मियों की समस्या और पुलिस वालों के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए। पुलिस वालों और सरकारी सम्पत्ति को उपद्रवी भीड़ द्वारा नुकसान पहुँचाने के खिलाफ सरकार द्वारा दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार करना चाहिए। सरकार को पुलिस और राज्य सशस्त्र बालों के रिक्त पदों में नियुक्ति करनी चाहिए, तांकि वर्तमान कर्मचारियों पर अतिरिक्त दबाव ना पड़े। पीठ ने राज्य सरकार से कहा की वो समय समय पर ट्रेनिंग और उच्चीकरण के साथ पुलिस की ड्यूटी समय सीमा को भी तय करे । केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा गया है कि आक्रामक अनियंत्रित भीड़ तंत्र के दौरान पुलिस कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग के लिए प्रभावी दिशानिर्देश जारी किए जाएं । सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को ये भी निर्देश दिए हैं कि वो पुलिस द्वारा, संवैधानिक और विधिक दायित्वों के निर्वहन हेतु, किये गए कृत्यों के खिलाफ अवधारणा बनाने से बचें।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति एन.एस.धनिक की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को राज्य सरकार के सम्मुख रखते हुए प्रदेश पुलिस के कल्याण के लिए किए जा रहे कार्यों को चार सप्ताह में न्यायालय को बताने को कहा है।