कुलदीप एस राणा
उत्तराखंड सरकार उत्तरप्रदेश की तर्ज पर भले ए ही सुस्त अफसरों को रिटायर,करने की बात कह रही है लेकिन सरकार उन ओवर स्मार्ट अफसरों का क्या करेगी जो अपनी ड्यूटी करने के बजाय सचिवालय और सत्ता के गलियारों मे डोलते रहते हैं , भले ही जनता उनके कार्यालय के चक्कर लगाते रहें।
डाॅ. शैलेन्द्र पांडेय होम्योपैथिक निदेशालय में रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त हैं। होम्योपैथिक से सम्बंधित लोग रजिस्ट्रेशन हेतु निदेशालय में इंतजार करते रहते हैं, लेकिन पांडेय शासन में अधिकारियों के कक्ष में एसी की ठंडी ठंडी हवाओं का आनंद लेते देखे जा सकते है। इसके लिए डॉ. पांडेय को सचिवालय प्रवेश पास भी निर्गत किया गया है , पर्वतजन को खोजबीन करने पर पता चला कि बिना डॉ. पांडेय के प्रवेश पास हेतु आयुष अनुभाग से न तो फ़ाइल चली न नाम भेजा गया।
सवाल पैदा होता है कि ऐसी क्या मजबूरी या जरूरत थी जो बिना नियम अनुपालन के सचिव को डॉ. शैलेन्द्र पाण्डेय का प्रवेश पास बनाना पड़ा ।
डॉ शैलेन्द्र पांडेय के पास न सिर्फ रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी है साथ ही उन्हें चिकित्सालय में मरीजों का भी उपचार करना होता है, जिसके लिए वह सरकार से हर माह एनपीए के रूप में मोटी धनराशि प्राप्त करते हैं।
डॉ पांडेय के बारे थोड़ा और पड़ताल करने पर पता चला कि उत्तराखंड राजभवन में तैनाती के शुरुआती दिनों में ही राज्यपाल के सम्मुख प्रोटोकाल का उल्लंघन करने के कारण इनको राजभवन से हटाया भी जा चुका है।
रजिस्ट्रार के पद पर डॉ शैलेन्द्र पांडेय की नियुक्ति भी सवाल के घेरे में है।
1- क्या ऐसा चिकित्सक जिसकी नियुक्ति विभाग में परिवीक्षा काल में हो उसे बिना अनुभव के किस नियम के आधार पर रजिस्ट्रार नियुक्त किया जा सकता है?
2-क्या रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्ति से पूर्व डॉ शैलेंद्र की पात्रता देखी गयी है?
3-क्या दुर्गम-सुगम स्थानांतरण अधिनियम के अंतर्गत नई नियुक्ति में अनिवार्य दुर्गम सेवा नियम डॉ शैलेन्द्र पांडेय पर भी लागू किया गया ! क्योंकि नियुक्ति के कुछ समय बाद ही उन्हें रजिस्ट्रार बना देहरादून स्थित निदेशालय में बैठा दिया गया ।
4-वहीं एक ऐसा कार्मिक जिसे राजभवन द्वारा प्रोटोकाल की अवहेलना के कारण हटाया गया हो, उसे शासन द्वारा रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त करना क्या तत्कालीन अधिकारियों की मंशा व कार्यशैली पर सवाल खड़े नही करता !