जगदम्बा कोठारी
उत्तराखंड के शिक्षित बेरोजगारों को एक बड़ा झटका लगा है। ‘समूह-ग’ के तहत न्याय विभाग मे लिपिक पद के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा मे अब बाहरी प्रदेश के व्यक्ति भी आवेदन कर सकेंगे।उत्तराखंड अधीनस्थ सिविल न्यायालय लिपिक वर्गीय अधिष्ठान नियमावली मे संशोधन कर सरकार ने अब दूसरे राज्यों के व्यक्तियों को भी यहां सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने का रास्ता खोल दिया है। पहले नियमावली के अनुसार प्रदेश मे भर्तियों के लिए राज्य के किसी भी एक जिले के सेवायोजन कार्यालय मे पंजीकरण होना अनिवार्य शर्त थी लेकिन सरकार ने नियमावली संशोधित कर इस शर्त को हटा दिया है जिसकी मार सीधे प्रदेश के 10 लाख के करीब पंजीकृत बेरोजगारों पर पड़ेगी क्योंकि अब प्रदेश मे होने वाली नयी भर्तियों मे देश के अन्य राज्यों से भी लोग आवेदन कर सकते हैं।
प्रदेश सरकार के इस कदम से स्थानीय बेरोजगारों मे गुस्सा है और बेरोजगार सरकार के इस फैसले की चौतरफा आलोचना कर रहे हैं।
लम्बे समय से सरकार की प्रदेश विरोधी नीतियां सामने देखने मे आ रही है।पहले त्रिवेंद्र सरकार ने NIT हाथ से निकलने दी, फिर सहकारिता परिक्षा का केंद्र प्रदेश से बाहर दिल्ली और जयपुुर बनाये गये, फिर रोजगार के नाम पर गंगा के उदगम स्थल देवप्रयाग मे शराब का बॉटलिंग प्लांट लगवाया और अब न्याय विभाग मे बाहरी प्रदेशों के बेरोजगारों को भी आवेदन करने की छूट दे दी है।
इससे पहले जल निगम मे अवर अभियंता भर्ती और अधिनस्थ चयन आयोग द्वारा चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए भी सरकार ने देशभर से आवेदन मांगे थे जबकि प्रदेश मे पहले से ही 10 लाख के करीब शिक्षित बेरोजगार पंजीकृत है। प्रदेश मे बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी है और त्रिवेंद्र सरकार बाहरी राज्यों के युवाओं को अवसर देकर स्थानीय बेरोजगारों का हक छीन रही है।
पिछले वर्ष से त्रिवेंद्र सरकार द्वारा निकाली जा रही विज्ञप्तियों पर कहीं पर भी ‘राज्य के किसी भी सेवायोजन कार्यालय मे पंजीकरण होना अनिवार्य’ नहीं लिखा गया है जिस कारण उस पद के लिए देश भर से कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है। स्थानीय बेरोजगारों मे प्रदेश सरकार के खिलाफ आक्रोश है। युवा सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार पर भड़ास निकाल रहे हैं।
वर्षों से लम्बित फॉरेस्ट गार्ड, आबकारी सिपाही, वीडिओ,पटवारी समेत हजारों पदों पर भर्ती शुरू नहीं की गयी है। कुछ माह पहले सरकार ने 1500 पदों पर विज्ञप्ति जारी करी भी थी लेकिन लोकसभा चुनाव और आगामी पंचायत चुनाव के चलते मामला लटक गया और इन 1500 पदों मे भी कला वर्ग के लिए एक भी पद नहीं रखा गया। वीडिओ जैसे पद के लिए भी विज्ञान विषय अनिवार्य रखा गया।
अब सवाल उठता है कि 1500 पदों मे भी कला वर्ग के लिए पद ही नहीं है तो सरकार को विद्यालयों से कला वर्ग को ही बंद कर देना चाहिए। इतना ही नहीं वर्ष 2015 के बाद से प्रदेश से प्रदेश मे पंजीकृत बेरोजगारों को बेरोजगार भत्ता भी सरकार नहीं दे सकी। कांग्रेस सरकार की इस योजना को भी त्रिवेंद्र सरकार ने बंद कर बेरोजगारों के जले पर नमक छिड़का है। बेरोजगारी सरकार के लिए बस चुनावी घोषणा का एक बिंदु तक सीमित रह गया है। अकेले रूद्रप्रयाग जैसे छोटे से जनपद मे पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 25 हजार के पार है तो वहीं दून और हरिद्वार जैसे महानगरों मे यह संख्या लाखों मे है और ऐसे मे त्रिवेंद्र सरकार है कि अपने प्रदेश की भर्तियों के लिए बाहरी प्रदेशों से आवेदन मांग रही है जिसको लेकर बेरोजगारों का सरकार के प्रति गुस्सा जायज है। यूकेडी ने तो इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। यूकेडी नेता मोहित डोभाल का आरोप है कि सरकार प्रदेश के बेरोजगारों की अनदेखी कर रही है, मुख्यमंत्री का सौतेला व्ययवहार प्रदेश का बेरोजगार बर्दाश्त नहीं करेगा। सरकार के इस फैसले का प्रदेश स्तर पर विरोध किया जाएगा।
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