हेमकांत नौटियाल , उत्तरकाशी
उत्तरकाशी भटवाडी प्रखंड के मल्ला गांव में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में प्रधान और क्षेत्र पंचायत पद के लिए जिला प्रशासन की ओर से ऐसा अरक्षण तय किया गया जिसको देखकर लगता है कि कहीं न कहीं गोलमाल है। बताते चलें कि उत्तरकाशी विकासखंड भटवाडी के मल्ला गांव में 2011 की जनगणना में मनवीय भूल के कारण 114 अनुसूचित जनजाति के लोग दर्शाये गये हैं, जो कि गलत है।
वास्तव में मल्ला ग्राम सभा में एक भी परिवार अनुसूचित जनजाति का नहीं है। सिर्फ 2 महिलाएं अनुसूचित जनजाति की हैं और इनका भी किसी दस्तावेज में कोई रिकार्ड नहीं है।
पिछले 2014 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में 2011 की जनगणना के 114 अनुसूचित जनजाति लोगों के अनुसार मल्ला गांव में प्रधान पद अनुसूचित जनजाति और क्षेत्र पंचायत समान्य पुरुष था।
प्रधान पद पर मल्ला गांव के ग्रामीणों ने तत्कालीन जिलाधिकारी के पास आपति दर्ज की थी। ग्रामीणों के द्वारा कहा गया था कि जब मल्ला गावं में एक भी परिवार अनुसूचित जाति का नहीं है तो कैसे अनुसूचित जनजाति को आरक्षण दिया जा सकता है।
उस समय तत्कालीन जिलाधिकारी श्रीधरबाबू अद्दांकी के द्वारा इस पर मजिस्टेृटी जांच की गई और पाया गया कि वास्तव में मल्ला गांव में एक भी परिवार अनुसूचित जनजाति का नहीं है।
2011 की जनगणना में मानवीय भूल के कारण 114 अनुसूचित जनजाति के लोग दिखाये गये है और फिर सीट को बदलकर प्रधान सामान्य पुरूष और क्षेत्र पंचायत महिला सामान्य की गई।
इस समय 2019 पंचायत चुनाव में फिर से 2011 की जनगणना के अनुसार मल्ला गांव में 114 अनुसूचित जनजाति के लोग दर्शायें गये हैं।
जिला प्रशासन ने एक बार फिर मानवीय भूल में सुधार नहीं किया और मल्ला गांव में प्रधान पद और क्षेत्र पंचायत सदस्य पद अनुसूचित जनजाति महिला कर दिया।
इस पर मल्ला गांव के ग्रामीणों ने 28 अगस्त 2019 को आपति दर्ज की, जिसमें कहा गया कि मल्ला में जब एक भी परिवार अनुसूचित जनजाति का नहीं है तो फिर से कैसे अनुसूचित जनजाति को अरक्षण दिया गया ! लेकिन ग्रामीणों के द्वारा आपति दर्ज करने के बाद भी आपत्ति का कोई निस्तारण नहीं किया गया और सीट यथावत रखी गई।
इस पर फिर से मल्ला गांव के लगभग 50 से ज्यादा ग्रामीणों ने मुख्य विकास अधिकारी के कार्यालय में इस आरक्षण का विरोध किया। ज्यादा विरोध देख मुख्य विकास अधिकारी ने खंड विकास अधिकारी को जांच के आदेश दिये।
खंड विकास अधिकारी भटवाडी की जांच रिपोर्ट में भी लिखा हुआ है कि वास्तव में मल्ला गांव में एक भी परिवार अनुसूचित जनजाति का नहीं है।
114 अनुसूचित जनजाति के लोग जो सरकारी आंकडो में दिखाये गये हैं, वह गलत है। सिर्फ महिलाएं अनुसूचित जनजाति की ग्रामीणों द्वारा बताई गई, उनको भी ग्राम पंचायत के भाग-2 रजिस्टर में अनुसूचित जनजाति नहीं दिखाया गया है।
यानि कि खंड विकास अधिकारी भटवाडी की जांच रिपोर्ट भी साफ बताती है कि मल्ला गांव में एक भी परिवार अनुसूचित जनजाति का नहीं है और जिला प्रशासन ने 2011 की जनगणना की मानवीय भूल को न सुधारते हुए फिर से वही गलती कर दी, जो 2014 के पंचायत चुनाव में हुई थी।
बड़ी बात यह है कि ग्रामीणों के द्वारा आपति दर्ज करने के बाद सुधार नहीं किया गया।
इससे साफ जाहिर होता है कि पंचायत राज विभाग के अधिकारी कर्मचारी और जिला प्रशासन दोनों की मिलीभगत से मल्ला गांव में अरक्षण का खेल खेला गया अखिर कैसे जब एक भी परिवार गांव में अनुसूचित जनजाति का नही तो ये कैसा आरक्षण !!
अब यदि उन दो महिलाओं की बात करें जिनका ससुराल मल्ला गांव में है, जो अनुसूचित जनजाति की हैं, यदि आरक्षण इन पर भी बनता है तो बताते चलें कि मल्ला गांव में इस समय 667 मतदाता हैं, जिसके अनुसार यदि मल्लागांव अनुसूचित जनजाति जनसंख्या का प्रतिशत निकालें तो मात्र दशमलव 29 प्रतिशत आता है। जबकि भटवाडी प्रखंड में ऐसे कई गांव हैं, जिनका अनुसूचित जनजाति जनसंख्या प्रतिशत मल्ला गांव से काफी ज्यादा है तो रोस्टर के अनुसार पहले ज्यादा प्रतिशत वाले गांव पर अरक्षण लागू होता है। यही नियम है।
नियमों की अनदेखी जिला प्रशासन और पंचायतराज विभाग उत्तरकाशी द्वारा हुई है और मल्ला गांव के लोगों ने आपति दर्ज करने के बाद भी मल्ला गांव में प्रधान और क्षेत्र पंचायत पद को नहीं बदला गया है। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि यदि जल्द ही इस मामले पर जिलाधिकारी संज्ञान नहीं लेते हैं तो ग्रामीण न्यायालय की शरण में जायेंगे।
अब देखना होगा कि जिला प्रशासन मामले पर क्या सज्ञांन लेता है !