मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आज वाकई भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता सौंपने वालों का सर गर्व से ऊंचा कर दिया होगा !
वाकई प्रचंड बहुमत की सरकार ऐसे ही होती है जो ना हाईकोर्ट के आगे झुके और ना अपना हक मांगने के नाम पर 18 दिनों से सरकार की नाक में दम करने वाले आंदोलनकारियों के दबाव में आए !
पिछले 18 दिनों से बढ़ी हुई फीस वापसी वाले हाईकोर्ट के आदेश का दामन थाम कर आंदोलन कर रहे आयुर्वेद कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को आज सरकार के आदेश पर पुलिस ने बर्बरता से पीटकर उठाने सफलता प्राप्त कर ही ली।
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त्रिवेंद्र जी के इस काबिले तारीफ कदम से वाकई लोकतंत्र के कंधे पर दो मेडल और सज गए हैं।
छात्राओं के साथ जिस तरह से पुलिस ने गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की उससे अब कई दिनों तक सरकार चैन की सांस लेकर राजपाट चला सकती है।
जनता को समझ में आ गया होगा कि जब सरकार नौजवान छात्रों के गर्म खून को इस तरह से ठंडा करने का हुनर रखती है तो फिर बूढ़ी हड्डियां ऐसा आंदोलन करने की जल्दी से हिम्मत नहीं करेंगी।
यह छात्र नादान थे। हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश कर दिया था कि छात्रों से बढ़ी हुई फीस नहीं ली जाए, लेकिन इन नादान छात्रों को यह पता नहीं था कि सरकार प्रचंड बहुमत की हो तो फिर हाईकोर्ट की भी नहीं सुनती।
यह सरकार हाईकोर्ट के नहीं बल्कि हाईकमान की सुनती है, और किसी की नहीं सुनती।
वाकई इन छात्रों ने हिमाकत भी काफी बड़ी की थी। इन कॉलेजों में एक कॉलेज दो स्वयं आयुर्वेदिक विभाग संभालने वाले कैबिनेट मिनिस्टर हरक सिंह रावत का ही है और एक कॉलेज केंद्रीय कैबिनेट मिनिस्टर डॉ रमेश पोखरियाल निशंक का है तो भला यह छात्र किन राज्य विरोधियों के इशारे पर धरने पर बैठे हुए थे ! इन पर तो गुंडाएक्ट या राहु का तो लगनी ही चाहिए थी।
इनकी यह हिम्मत कैसे हुई !
इन छात्रों को पहले ही समझ जाना चाहिए था यह प्रचंड बहुमत की सरकार है। यह अपने हिसाब से चलती है। हाईकोर्ट के हिसाब से नहीं।
जब सरकार ने हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद दारू की दुकानों के लिए राजमार्गों को जिला स्तरीय सड़क घोषित कर दिया था।
इन छात्रों को तभी समझ जाना चाहिए था जब मलिन बस्तियों से अतिक्रमण हटाने की हाईकोर्ट के आदेश को सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से ठेंगा दिखा दिया था।
लेकिन यह छात्र नादान निकले कि हाईकोर्ट के बढ़ी हुई फीस वापस लिए जाने वाले आदेश का फर्रा लेकर दबाव बनाने चल दिए।
अब इन्हें और इनके अभिभावकों को समझ में आ गया होगा की प्रचंड जनादेश की सरकार क्या होती है।
खबरदार यदि किसी ने अब जुबान खोली तो पहले चीन के छात्र आंदोलन के थ्येनआनमन चौक वाले दमन का इतिहास भी पलट लें।