गिरीश गैरोला/उत्तरकाशी
उत्तराखंड में उद्यान को कृषि विभाग में विलय को लेकर आशंकित पहाड़ी काश्तकार। राज्य में विभागों का खर्च कम करने को लेकर काबीना मंत्री सुबोध उनियाल के निर्णय पर होने लगा विरोध। किसान तथा दोनों विभागों के कर्मचारी अधिकारी भी नहीं हैं खुश, आंदोलन की राह पर निकल सकती हैं कर्मचारी यूनियन। पहाड़ी राज्य में उद्यान और पर्यटन पर हिमाचल से सीख लेने की काश्तकारों ने दी सलाह। कृषि और उद्यान की तकनीकी में फर्क पर जताई चिंता। उत्तराखंड के पहाड़ों में कृषि नाममात्र की। उद्यान से बढ़ी अर्थिकी।
उत्तराखंड के पहाड़ों में छोटे-छोटे सीढ़ीनुमा खेतों में छोटे जोत से गेहूं और धान को आर्थिक रूप से अनुपयुक्त मानकर उद्यान की नगदी फसलों से अपनी जीविका चला रहे काश्तकर अब सरकार के इस नए फरमान से आशंकित हैं। पलायन की समस्या के बीच उत्तरकाशी के यमुना घाटी प्रदेश में एक ऐसा स्थान है, जहां रिवर्स माइग्रेशन हुआ। अर्थात इस इलाके मे उद्यान को फायदे का धंधा मानकर काफी परिवारो ने वापस अपने गावों का रुख कर लिया है, जबकि गंगा घाटी मे पलायन की दर वैसे भी कम ही है। ऐसे में कृषि विभाग में उद्यान विभाग के विलय की खबर से पहाड़ के काश्तकारों के चेहरे पर चिंता की लकीर उभरना लाजिमी है।
विलय से काश्तकार क्यों इतना डरा हुआ है, इसके जवाब में उद्यानविद् जगवीर भण्डारी कहते हैं कि कृषि विभाग और उद्यान विभाग में भिन्न तकनीकी के कारण उद्यानपतियों को समय पर सही तकनीकी सलाह नहीं मिल सकेगी। एक तरफ जहां कृषि विभाग में खेत जोतना, बीज बोना और फसल काटना ही सिंपल स्टेज है, वहीं उद्यान में बीज बोने की बजाय कलम, बाडिंग, एयर लेयरिंग आदि तकनीकी से कम समय में उन्नत किस्म के पौध और पेड़ तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा पॉलीहाउस तकनीकी, मशरूम और सेब उत्पादन तकनीकी और इसमें प्रयोग होने वाली दवा कृषि विभाग से बिल्कुल भिन्न है। इतना ही नहीं, आलू और सब्जी उत्पादन में हाइब्रीड बीज का प्रयोग होता है, जिससे किसान को कई गुना फसल प्राप्त होती है। जिसका अनुभव कृषि विभाग के कर्मियों को नहीं होगा। उत्तरकाशी में जगवीर भण्डारी के परिवार ने ही सबसे पहले इस क्षेत्र में कदम रखा और इसी के बलबूते पर श्री भण्डारी एक बार यमुनोत्री से विधायक का चुनाव लडऩे की हिम्मत भी जुटा सके।
गंगा घाटी के नर्सरी में नित नए प्रयोग कर रहे केएन बहुगुणा बताते हैं कि कृषि विभाग की तकनीकी से एक किलो गेहूं पैदा करने के लिए 11 गैलन पानी की जरूरत होती है, जबकि इतने ही पानी से कई गुना अधिक टमाटर और अन्य सब्जियां पैदा की जा सकती है, जो नगदी फसल होने के चलते किसान की आर्थिकी को भी प्रभावित करती है। लिहाजा जल संस्थान और जल निगम जैसे विभागों की तुलना करते हुए कृषि और उद्यान का विलय पहाड़ में पलायन को तो बढ़ाएगा ही, साथ ही प्रति व्यक्ति किसान की आय को भी झटका लग सकता है।
एक नजर वर्ष 2016-17 में जनपद उत्तरकाशी में उद्यान से हुई पैदावार पर नजर डालें तो जनपद में सेब 25850 , आलू 891 , प्लम 2585, खुमानी चुल्लू 752, अखरोट 680, और नींबू 719, मीट्रिकटन पैदा हुए।
वहीं सगिया मिर्च 640, भिंडी 981, टमाटर 7279, बैंगन 859, अन्य सब्जी 14870 मीट्रिक टन और कुल 36026 मीट्रिक टन सब्जी का उत्पादन हुआ 7 इसके अलावा मटर 2901, मुली 1676, फ्रेंच बीन 1159 , बंद गोभी 1087, प्याज 1732, मीट्रिक टन पैदावार हुई।
मसालों की बात करें तो मिर्च 408 , लहसुन 536 , अदरक 748, कुल 2364 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ जो हर वर्ष और बेहतरी के आंकड़े छू रहा है, जबकि कृषि संबंधी उत्पाद गेहूं और धान न तो किसान के अपने परिवार के लिए ही पूरा हो पता है और न उसके दाम ही अच्छे मिल पाते हैं।
ऐसे मे उद्यान में लंबी मेहनत के बाद से बेहतर आर्थिकी को प्राप्त किसानों का अनुसरण कर गावों की तरफ लौटने की राह में खड़े परिवारों पर भी विलय की इस मार का बुरा असर पड़ सकता है।