देहरादून के विकास नगर में खनन माफिया द्वारा ट्रैक्टर ट्राली से सिपाही को कुचलने के बहुचर्चित मामले में भले ही प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा हो लेकिन पुलिस या अन्य प्रशासन पर जानलेवा हमले की विकास नगर में ये कोई पहली घटना नहीं है। ये खनन माफियाओं के पास सत्ता का बल ही है कि इससे पहले भी अवैध खनन के मामले में पुलिस कर्मी वन कर्मी या अन्य प्रशासनिक कर्मचारियों पर जानलेवा हमले किये जाने की विकास नगर में कई घटनाएं सामने आई हैं।
इतना ही नहीं पूर्व में SDM अरविन्द पांडे के वाहन पर डंफर चड़ाने का सनसनीखेज मामला भी घटित हो चुका है तो एक बार खनन की ड्यूटी पर तैनात PAC सिपाही द्वारा पुलिस कांस्टेबल पर फायर झोंकने का मामला भी सुर्ख़ियों में रहा है।
तो वहीं पूर्व में खनन पर सख़्त कार्यवाही करने पर रातों रात अशोक कुमार पांडे जैसे साफ छवि SDM का ट्रांसफर भी कर दिया गया है।
इस तरह की ही तमाम वजह हैं कि विकास नगर में पुलिस व अन्य प्रशासन आज तक भी अवैध खनन पर अंकुश लगाने में नाकाम रहा है। ऐसा नहीं है कि पुलिस या अन्य प्रशासन अवैध खनन को बंद नहीं करना चाहता लेकिन सत्ता के हुक्मरानों की जोर जबरदस्ती के आगे सब बेबस हैं लाचार हैं।
बाकी रही सही कसर खुद चौकी थानों में तैनात कुछ तथाकथित पुलिस कर्मी पूरी कर देते हैं जिनकी सहभागिता से क्षेत्र में खनन का काला कारोबार जमकर फल फूल रहा है। वैसे तथाकथित तौर पर माना यह भी जाता है कि अवैध खनन पर पुलिस की आपसी खींचातानी और लेनदेन भी इस तरह की घटनाओं की वजह बनते हैं।
जबकि कई बार विकास नगर क्षेत्र से अवैध खनन की अवैध गतिविधियों में लिप्त पाये जाने पर कई पुलिस कर्मी निलंबित हो चुके हैं। तो कुछ मौकों पर पूरी पुलिस चौकी भी निलंबित हुई है बावजूद इसके अवैध खनन का खेल बदस्तूर जारी है।
क्षेत्र में इस वक्त सबसे ज्यादा डाकपत्थर , कुल्हाल , धर्मावाला , सेलाकुई और बाजार चौकी सहित कोतवाली विकास नगर व सहसपुर थाने की भूमिका सवालो के घेरे में है, जिनके क्षेत्र अंतर्गत रात दिन जमकर अवैध खनन का मोटा खेल खेला जा रहा है और माफिया प्रतिदिन लाखों के वारे न्यारे कर मोटी चांदी काट रहे हैं।
त्रिवेंद्र सरकार में विकास नगर में अवैध खनन पर अब तक की सबसे ज्यदा अवैध गतिविधियाँ देखने को मिल रही हैं तो वहीं प्रशासन सबसे ज्यादा लाचार और भ्रष्ट दिख रहा है।
बाहरी प्रदेशों का खनन माफिया विकास नगर में हावी हो गया है। कालसी के बोसान , कुल्हाल , डाकपत्थर , ढकरानी , ढालीपुर से प्रतिबंध के बावजूद उपखनिज का दोहन किया जा रहा है और नो एंट्री के डर से धर्मावाला चौक , शिमला बाइपास , लांगा रोड आदि स्थानों पर शाम तक सैकड़ों खनिज से लदे वाहन खड़े देखे जा सकते हैं जो फिर रात के अंधेरे में कहीं गुम हो जाते हैं।
अवैध खनन पर माफियाओ के हावी होने के कारण स्पष्ट हैं। सत्ताधारियों की खनन माफियाओ से राजनैतिक यारी प्रशासन की कार्यवाही के आड़े आ रही है जिसके चलते पुलिस दबाव में रहती है अब तो सत्ताधारियों के राजनैतिक कार्यक्रमों में भी सार्वजनिक रूप से सभी तरह के खनन व्यवसायी खुल्लम खुल्ला देखे जा सकते हैं।
इतना ही नहीं सत्ताधारियों के खासम खास भी अब खनन माफियाओं के साथ खनन के काले कारोबार करते देखे जा रहे है। ऐसे में किस ट्रैक्टर ट्राली या डंफर को कब्जे में लेते ही किस नेता मंत्री का फोन आ जाये और किस सरकारी कर्मचारी पर कौन सी आफत टूट पड़े ये तो भगवान ही जाने। इसलिये पुलिस और अन्य प्रशासन तथाकथित तौर पर खनन माफियाओ से दुश्मनी निभाने के बजाये अब दोस्ती निभाने में अपना फायदा समझता है। तथाकथित तौर पर पुलिस कर्मियों की खनन माफियाओ से गलबहियां यारी भी देखी जा सकती है अब इस गलबहियां यारी के मायने आप समझ ही सकते हैं। अब सिपाही पर ट्रैक्टर चढाये जाने के घटनाक्रम के बाद भले ही दो चार दिन जरूर सख्ताई देखने को मिले लेकिन बाद में स्थितियां वही ढाक के तीन पात ही रहनी हैं।