मोहन भुलानी
देहरादून के कौशिक भैसोड़ा ने अपने छह दोस्तों प्रदीप सिंह कुंजवाल, राहुल पांडेय, अमित रावल, तुषांत बिष्ट, देवेश मैठाणी और नंदकिशोर के साथ मिलकर गरीबों के भोजन के प्रबंध के लिए उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रिस्पना पुल के पास सिटी मार्केट में एक जनता फ्रिज रखवाया है। इसके पीछे सद्कामना यह है कि कोई भी इंसान भूखे पेट न सोए। इस जनता फ्रिज से कोई भी जरूरतमंद खाना निकालकर खा सकता है।
फ्रिज की कीमत चुकाने के लिए ये सातों दोस्त अपनी तनख्वाह से प्रति माह दो हजार रुपये कटा रहे हैं। ऐसा किसी प्लान के तहत नहीं हुआ। बस एक दिन दफ्तर जाते हुए विधानसभा के पास बच्चों को खाने के लिए भीख मांगते देखा तो दिल को बहुत बुरा लगा। सोचा कि अगर कोई ऐसी व्यवस्था हो जाए कि बच्चों को सर्दी, बरसात जैसे मौसम में भोजन के लिए भीख न मांगनी पड़े तो अच्छा हो। बस यह सोचते ही इस तरह के जनता फ्रिज का ख्याल आया।
जनता फ्रिज अपने स्थान पर कायम रहे, इसमें रखी गई सामग्री सुरक्षित रहे, इसके लिए एक गार्ड की जरूरत महसूस की गई। इसलिए फ्रिज लगाने के साथ ही एक गार्ड को भी यहां तैनात कर दिया गया। बकौल कौशिक गार्ड के वेतन का खर्च भी सभी दोस्त मिलकर ही उठाते हैं। गार्ड का काम यह है कि वह फ्रिज की सुरक्षा करे और खास तौर पर खाने की निगाहबानी करे। अगर कोई इसके लिए खाद्य सामग्री देकर जाता है तो उसकी क्वालिटी पर नजर रखे।
जनता फ्रिज के साथ तैनात गार्ड के पास एक रजिस्टर भी रखवाया गया है। इस रजिस्टर में हर खाना देने वाले की एंट्री की जाती है, ताकि कोई भी खराब खाना इसमें रखवाए तो इसके खिलाफ कदम उठाना भी सुनिश्चित किया जा सके। उसे अपना आधार नंबर या अन्य कोई पहचान पत्र की डिटेल के साथ ही इसमें मोबाइल नंबर भी लिखना होता है। जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसका बेहतर फल भी सामने आया है।
इसे ‘गिव एंट टेक कांसेप्ट’ भी कह सकते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं, जो खुद गरीबों के लिए कुछ न कुछ देना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि कहां दें। ऐसे में वह इस जनता फ्रिज का उपयोग करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनकी दी गई सामग्री का यहां सदुपयोग होगा। इसमें फल, सब्जी, पानी, सॉफ्ट ड्रिंक, बेकरी प्रॉडक्ट्स के साथ ही तमाम ऐसी खाद्य सामग्री भरकर रखी जाती है, जो रेडी टू ईट होती हैं, यानी कि जिसे कभी भी खाने के इस्तेमाल में लिया जा सकता है। ऐसी सामग्री होती है, जिनके जल्द खराब होने की संभावना कम होती है।
यदि कोई पका हुआ खाना देना चाहता हो तो उसके लिए एक शर्त है। और वो ये कि यहां दिया जाने वाला भोजन 12 घंटे से पहले का न पका हो। कौशिक के अनुसार ऐसे भोजन के खराब होने की संभावना रहती है।
अगर सब साथ मिलकर प्रयास करें तो तस्वीर बदल सकती है। उनके मुताबिक हर बात के लिए सरकार का मुंह देखने की बजाय यह अधिक बेहतर है कि खुद भी स्थिति को बदलने के लिए प्रयास किए जाएं। उनके मुताबिक अगर वह जनता फ्रिज के जरिये बच्चों की भिक्षावृत्ति पर रोक लगाने में थोड़ा भी कामयाब रहे तो खुद को कामयाब समझेंगे।
कौशिक और उनके साथियों की इस पहल का हिस्सा बनने के लिए आप उन्हें 9536123555 पर कॉल कर सकते हैं।