जगदम्बा कोठारी
अभी तक आपने गुलदार के हमले मे गयी महिलाओं की जान की खबरें तो दर्जनों पढ़ी होंगी, मगर आज हम आपको एक महिला की दास्तां बताने जा रहे हैं कि जिन पर गुलदार के हमले के बाद गुलदार को ही अपनी जान गंवानी पड़ी थी। युद्द मे उत्तराखण्ड की इस शेरनी ने जंगल की शेरनी को ही मौत के घाट उतार दिया था।
हम बात कर रहे हैं रूद्रप्रयाग जनपद के जखोली विकासखंड के सेम-कोटी गांव निवासी 52 वर्षीय (आयु 2014 की है) महिला कमला देवी की। जिन्होने गुलदार से युद्द कर उसे मौत के घाट उतार दिया था। रविवार 26 जुलाई 2014 की सुबह जब कमला देवी कपड़े धोने और घास काटने गदेरे मे गयी तो अचानक से घात लगाये गुलदार ने उन पर पीछे से हमला कर दिया था। हमले मे उनके दोनों हाथ और सिर बुरी तरह जख्मी हो गया था बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी घास काटने वाली दरांती और छोटी सी कुदाल से गुलदार के सिर पर ताबड़ तोड़ कई वार किये जिसके बाद गुलदार वहीं ढेर हो गया।
इतना ही नहीं लहूलूहान कमला देवी अपने ही बलबूते पर लगभग एक किलोमीटर दूर चलकर अपने घर भी पहुंची और परिजनों को वाकिया बताया। ग्रामिणों द्वारा घटनास्थल का दौरा किया गया तो वहां एक विशालकाय खून से लतपत मादा गुलदार मृत पड़ी मिली थी। जिसकी सूचना ग्रामिणों ने जखोली के दक्षिणी रेंज कार्यालय मे दी। वन विभाग द्वारा गुलदार को कब्जे मे लेकर पोस्टमार्टम के बाद शव को जला दिया था। पोस्टमार्टम मे पता चला कि गुलदार के सिर पर कुदाल के प्रहार से काफी छेद हो रखे थे और इस युद्द मे जबड़ा भी टूट चुका था।
लगभग छह माह तक विमला देवी का इलाज श्रीनगर बेस अस्तपताल से लेकर जौलीग्रांट और एम्स जैंसे प्रतिष्ठित अस्तपतालों मे चला। उनके हाथ सिर की कई सर्जरियां हुयी। तत्तकालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनको 1 लाख रूपये का चैक देकर सम्मानित किया और उनका इलाज खर्च भी सरकार ने उठाया। इसके बाद उन्हे हंस फांउडेशन सहित कई संस्थाओं ने सम्मानित किया। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं।
एक खास बातचीत मे कमला देवी ने पर्वतजन को गुलदार और अपने आपसी संघर्ष की कहानी बताई तो पढ़िए आप भी पहाड़ की इस वीरांगना की वीरगाथा स्ंवय उनकी ही जुबानी।
कमला कहती हैं कि “रविवार को वे गांव से करीब एक किमी दूर गदेरे में घास काटने तथा कपड़े धोने गई थी। जब वह गदेरे के पास पहुंची, तो सामने गुलदार को देख शोर कर भगाने का प्रयास किया। इस पर गुलदार भाग भी गया। गदेरे के पास गुलदार को देख घास नहीं काटा और सिर्फ कपड़े धोकर ही घर लौटने का निर्णय लिया। इसी बीच गुलदार ने फिर अचानक उन पर हमला कर दिया”। छलकती आँखों से वह दिन यादकर कमला देवी आगे कहती हैं कि बचपन में सुना था कि गुलदार के कान यदि कुत्ता पकड़ ले, तो वह प्रहार नहीं कर पाता। मैंने भी यही किया। मैंने गुलदार के दोनों कान पकड़कर जोर-जोर से झंझोड़ना शुरू किया।कुदाल से प्रहार करती रही
काफी देर तक ऐसा करते हुए उसे पीछे की ओर धकेला। फिर उसकी छाती पर चढ़कर दायें हाथ से उसका कान पकड़ा और बाएं हाथ से कुदाल से प्रहार करती रही। उसके दांतों तथा सिर पर कुदाल से प्रहार करने के बाद जब उसने मेरे दायें हाथ पर मुंह से वार किए, तो मैंने पास पड़े छोटे-छोटे पत्थर उसके मुंह में भर दिए।
काफी देर तक चली इस तरह की गुत्थमगुत्थी के बाद मुझे लगा कि मुझे भागना चाहिए। मैं दौड़ती रही, एक जगह गिर पड़ी, लेकिन मुझे लगा कि वह मेरे पीछे भाग रहा है। दौड़ते-भागते अपने घर के पास पहुंची और पूरी कहानी अपने इकलौते बेटे और पुत्रवधू को बतायी। इसके बाद मे बेहोश हो गयी और जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को अस्तपताल मे पाया।मेरे हाथ और सिर पर दर्जमों टांके थे। बाद में गांव वालों ने बताया कि गुलदार मर चुका है।
मुझे इस जीत की बहुत खुशी थी। मैं किस्मत वाली थी जो मैं बच गयी।”