रमेश पांडे कृषक/बागेश्वर
यहां उत्तरायणी मेले के अवसर पर पहुचे राज्य के पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत ने कहा कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में प्राधिकरण का कानून त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में त्रिवेन्द्र के शक्त आदेशें के बाद लागू किया गया है। यहि त्रिवेन्द रावत, उनके मन्त्री या विधायक प्रचारित कर रहे हैं कि प्राधिकरण का कानून हरीश रावत के कार्यकाल में लागू किया गया है तो यह त्रिवेन्द्र रावत और उनकी सरकार का खुला झूठ है।
हरीश रावत ने त्रिवेन्द्र रावत को खुली चुनौती दी है कि यदि त्रि़वेन्द्र रावत साबित कर दें कि प्राधिकरण का जन विरोधी कानून हरीश रावत की सरकार के कार्यकाल में लागू किया गया है तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा या त्रिवेन्द्र रावत सरकार स्थीफा दे। हरीश रावत के इस बयान के बाद प्राधिकरण हटाओ मोर्चा द्वारा इस विषय पर स्वेत पत्र जारी कर सच्चाई जनता के बीच सार्वजनिक करने की मांग उठाई गई र्ह।
विदित हो कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में प्राधिकरण का कानून थोपे जाने के बाद सवाल संगठन ने एक कड़ा पत्र मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र रावत को भेजा था। इसी पत्र के बाद विधानसभा में सुधि विधायकों ने प्राधिकरण का मुद्दा विधानसभा में उठाया तथा पहाड़ से प्राधिकरण का कानून हटाने की माग भी की गई थी। विधानसभा में प्रकरण उठने के करीब छः महीने बाद बड़े आराम के साथ सरकार ने विधायकों की एक समिति भी बनाई है। समिति की विशेषता यह है कि बागेश्वर के विधायक चन्दन राम को समिति का सभापति बनाया गया है। यह समिति भी बड़े आराम के साथ सायद कुछ कर तो रही है पर कर क्या रही है किसी को कुछ भी पता नही।
सवाल संगठन द्वारा दो वर्ष पूर्व मुख्यमन्त्री को भेजा गया पत्र
माननीय महोदय,
1970 से 1080 के मध्य उत्तर प्रदेश में पहाड़ विरोधी शासनादेशें, गजटो, नियमो, उपनियमों की बाढ़ जैसी आ गई थी। यही वजह थी कि पहाड़ पर वह वनान्दोलन जन्मा जिसे अन्तिम चरण में बड़ी चालाकी के साथ मीडिया के माध्यम से चिपको के नाम से परोसा गया तो खिन्न पर्वतवासी राज्य आन्दलन के रास्ते पर उतरने को बाध्य हुए। यह पत्र उत्तराखण्ड के आन्दोलनों पर केन्द्रित नही है, पर यहां आन्दोलनों का संक्षिप्त जिक्र जरूरी था।
यह पत्र 12 जून 2015 को सार्वजनिक किये गये उस गजट पर केन्द्रित है, जो उत्तर प्रदेश ( निर्माण कार्य विनियमन ) अधिनियम, 1958 (उत्तराखण्ड राज्य में यथाप्रवृत) की धारा 5 में तैयार की गई शक्ति का प्रयोग करते हुए अधिसूचना संख्या 2012/अ-11-55 (आ0) /2006-टीसी दिनांक 17-11-2011 के रूप में स्वीकृत किया गया है।
पत्र को विषय पर उतारने से पहले आपके संज्ञान में लाना चाहुंगा कि उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 ही उत्तरांचल अनुकूल एवं उपान्तरण आदेश, 2002 प्राविधानों के अधीन उत्तराखण्ड राज्य में यथाप्रवृत एवं संसोधन उपरान्त उत्तराखण्ड राज्य के परिपेक्ष्य में, उत्तराखण्ड नगर विकास अधिनियम, 1973 के नाम से प्रवृत है। सायद आपको भी याद हो कि तब उत्तराखण्ड के पहाड़ों में इस उत्तराखण्ड नगर विकास अधिनियम, 1973 का खूब विरोध हुआ था।
ऐसे ही तमाम पहाड़ विरोधी शासनादेशों, गजटो, नियमां, उपनियमों पर 1978 में डा0 डीडी पन्त के नेतृत्व में तब खूब चर्चा परिचर्चा हुई थी और चुनावी राजनीति के माध्यम से उत्तराखण्ड के लिये अलग राज्य की माग उठाने का फैसला हुआ था। इसी फैसले के बाद उस राज्य आन्दोलन ने जन्म लिया, जिस आन्दोलन में सुरूआती ना नुकुर के बाद आपकी भाजपा को भी कूदना पड़ा था और आज आप उसी राज्य के मुख्य मन्त्री है।
इधर डेड़ दसक में उत्तराखण्ड में उन कार्यक्रमों, नियमों, कानूनों, शासनादेशों को ही अधिक मजबूती देने का काम किया गया जिन कार्यक्रमों, नियमों, कानूनों, शासनादेशों के खिलाफ ही राज्य आन्दोलन के लिये यहां के आम नागरिकों ने कमर कसी थी। इस काम में सारे रिकार्ड पूर्व की हरीश रावत सरकार ने तोड़ने का प्रयास किया था।
रावत की करनी का खामियाजा कांग्रेस की सरकार को चुनावों में उनके लिये अप्रत्याशित हार के रूप में भुगतना भी पड़ा। आपकी सरकार से न्याय प्रिय जनता को बहुत उम्मीद थी और है भी पर जिस सख्ताई से आपने राज्य में वह प्राधिरण जो उत्तर प्रदेश (निर्माण कार्य विनियमन) अधिनियम, 1958 (उत्तराखण्ड राज्य में यथाप्रवष्त) की धारा 5 में तैयार की गई शक्ति का प्रयोग करते हुए अधिसूचना संख्या 2012/अ-11-55 (आ0) /2006-टीसी दिनांक 17-11-2011 के रूप में स्वीकष्त किया गया है, को लागू करवाने का प्रयास किया है वह चिन्ता करवाने वाला है।
एक ऐसा प्रान्त जिसके अधितर नगर व पड़ाव सीवर लाइनों से भी नही जोड़े जा सके हैं, जिसके नगरों व पड़ावों के कचरे के निस्तारण के लिये डम्पिंग जोन की व्यवस्था तक सरकार नही कर पा रही है, जिसके नगरों व पड़ावों में भारतीय स्वास्थ्य मानकों (हम अन्तराष्ट्रीय स्वास्थ्य मानकों की बात नही कर रहे हैं) के आधार पर पीने के पानी की व्यवस्था भी नही हो सकी है, जिसके नगरों व पड़ावों में बर्षाती तथा घरेलू गन्दे पानी के निकास की कोई ठोस व्यवस्था नही की जा सकी है, ऐसे नगर व पड़ाव जिनको ढाई तीन फिट से अधिक चौड़े या 5-6 मीटर पिछले पेज से जारी- चौड़े वाहन मार्गों से नही जोड़ा जा सका है, ऐसा पर्वतीय क्षेत्र जहां समयानुसार भूमि बन्दोबस्त नही करवाया गया है, ऐसा राज्य जहां बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है, ऐसा राज्य जहां बड़े पैमाने पर गरीबी व्याप्त है के उन नगरों व पड़ावों में यह प्रधिकरण क्या सोच व समझ कर थोप दिया गया है। थोपे गये प्राधिकरण क्षेत्र में अपना घर बनाने के निये न्यूनतम 30 वर्ग मीटर भू खण्ड उस स्थान पर होना जरूरी है, जो स्थान 2 मीटर पैदल पथ से जुड़ा हो।
महोदय, उदाहरण के लिये बागेश्वर जनपद के उन मुहल्लों व गांवों की सूची भी यहां नीचे उतार दी जा रही है, जिन गांवों के निकट से सरकार द्वारा बनाये गये राजमार्ग गुजरते हैं और इन्ही राजमार्गों को कारण बना कर इन गांवों पर प्राधिकरण लाद दिया गया है। बागेश्वर जनपद में कौसानी स्टेट, भाना पडियार, तल्ला नाकुरी, लौबांज, रतमटिया, सीमा, द्योराड़, भोजगण, भेटा कुटौलिया, भेटा गूंठ, दर्शानी, पाये, विमोली, शिल्ली, टानी खेत, नौघर, भकुन खोला, बयाली सेरा, स्यालदेख् कनस्यारी, पुरड़ा, मन्यूड़ा, जैंसर, ठकुरा, फुलवारी गूंठ, मेला डुंरी, थान डंगोली, छटिया, ग्वाड़ पजेड़ा, कुंज खेत, आदि।
प्राधिकरण क्षेत्र में अपना व्यवसाय सुरू करने के लिये मानकों के अनुसार आवस्यक भूमि व मार्गों की आवस्यक चौड़ाई मीटर मे निम्नानुसार है। ये आंकडे़ प्रधिकरण के मानकों की सरकारी फाइलों से प्राप्त हुए हैं।
व्यवसाइक स्टेट 60,000 वर्ग मीटर- 7.5 मीटर
औद्योगिक इकाई 300 वर्ग मीटर – 7.5 मीटर
डेटर निटी होम 750 वर्गमीटर – 7.5 मीटर
चिकित्सालय 50 बिस्तर 4000 वर्गमीटर- 7.5 मीटर
चिकित्सालय 200 बिस्तर- 25000 वर्गमीटर- 7.5 मीट
नर्सरी स्कूल 500 वर्गतीटर- 7.5 मीटर
प्राथमिक स्कूल- 3000 वर्गमीटर- 7.5 मीटर
मिडिल स्कूल- 600 वर्गमीटर- 7.5 मीटर
हाईस्कूल 13,500 वर्गमीटर- 7.5 मीटर
इण्टर कालेल 15,000 वर्ग मीटर- 7.5 मीटर
वयवसाइक प्रतिश्ठान- 10,000 वर्ग मीटर- 7.5 मीटर
होटल- 750 वर्ग मीटर- 7.5 मीटर
मोटल व रेस्टोरेण्ट- 25,00 वर्गमीटर- 7.5 मीटर
इको रिजोर्ट – 7500 वर्गमीटर- 7.5 मीटर
गेस्ट हाउस- 500 वर्गमीटर- 7.5 मीटर