देहरादून कोर्ट मे कई तरह की समस्यायें अभी भी जस की तस हैं, इसलिए इस बार परिवर्तन की लहर सी है।
40 वर्षों से हाईकोर्ट बैंच का आंदोलन बिना नतीजे के खत्म कर दिया गया है। अधिवक्ता की मृत्यु पर होने वाली रिफरेंस की परंपरा भी समाप्त हो गई है। नये अधिवक्ताओं को मिलने वाला काम भी टाईपिस्टों व स्टांप वेंडरों ने छीन लिया है। चालान भुगतने का काम भी कोर्ट के बाबू और दलाल स्वयं करा रहे हैं।
अध्यक्ष पद के प्रत्याशी रंजन सोलंकी कहते हैं कि सघन प्रचार अभियान में उन्हें वरिष्ठ एवं नए अधिवक्ताओं का भरपूर समर्थन मिल रहा है। सोलंकी कहते हैं,-” वर्तमान कार्यकारिणी के सभी अधिवक्ता परेशान हैं तथा बार में बदलाव के लिए मन बना चुके हैं।”
“यदि अधिवक्ताओं ने मुझपर विश्वास किया तो मैं सर्वप्रथम शनिवार की हाईकोर्ट बेंच के आंदोलन को पुनर्जीवित करूँगा तथा बेंच का आंदोलन मजबूती से होगा इस दौरान कोर्टो में कोई काम नहीं होगा रेफरेंस को भी पूर्व की भांति किया जाएगा।”
नए अधिवक्ताओं का काम जो छीना गया है उसे दोबारा टाईपिस्टों स्टाम्प वेंडरों व चालान भुगतने का काम केवल अधिवक्ता ही करेगा।
सोलंकी कहते हैं, -” मैं विश्वास दिलाता हूं कि मैं ईमानदारी व निष्ठा पूर्वक अधिवक्ताओं के हित में काम करूंगा तथा अधिवक्ताओं के सपनों को अधिवक्ताओं के सहयोग से पूरा करूंगा।”