जिलाधिकारी रहें सतर्क। कोर्ट जाने की तैयारी सुनकर चौकियें नही। फेल हो चुकी डबल इंजिन सरकार की आबकारी नीति में कुछ ऐसे ही हालात पैदा हो गये हैं। आबकारी महकमा चला रहा एक सलाहकार और उसके खास गुर्गे जो अब अहम पदों पर हैं, उन्होने आबकारी महकमे की इस बर्बादी का मंजर सपने में भी नही सोचा होगा।
कल रात एक बजे हरिद्वार जिले में ठेके कराने गये एक अधिकारी को दोबारा दून से हरिद्वार भेजा गया। हरिद्वार जाकर शेष बचे ठेकों के राजस्व निर्धारण पर फैसला लिया जाना था, लेकिन मातहत इंस्पेक्टरों ने बैठक में आने में कोई रुचि नही दिखाई, लिहाजा देर रात पैदा हुए आपातकाल पर बैठक नही हो सकी।
बताया जा रहा है कि बड़े जिले के जिलाधिकारियों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय से आ रहे संशोधन चार्ट को मंजूर कर दें, लेकिन ऐसा तीन जिलो में नही हुआ है। ये नियम विरूद्ध तो है ही, साथ ही बहुत बड़ा घोटाला भी है। जो आबकारी महकमा इतरा कर दावा कर रहा था कि यूपी की तरह ही राज्य में शराब की कीमतों को कम किया जा रहा है, लेकिन जब शराब ठेकों के उठान का समय आया तो महकमे को चला रहे चंद अफसरों के तोते उड़ गये। हरिद्वार और यूएसनगर मे ठेका बंदी संख्या के लिहाज से बीते वर्ष को पार कर गई।
चार्ट का पता नही करोड़ों का घोटाला
उत्तराखंड एक्साइज मैनेजमेंट सिस्टम में हरिद्वार देहरादून टिहरी का चार्ट अभी तक अपलोड नही किया गया है। आखिर इसे किसके कहने पर और क्यों रोका गया है, ये बेहद चौंकाने वाला है। इस चार्ट से ही पता चलता है कि किन ठेकों का राजस्व कितना है। अधिभार समेत अन्य जानकारियां भी इसी से मिलती है। न तो जिला स्तर पर, न बेवसाइट पर ही इन ठेकों का राजस्व का पता नही चल रहा है, जबकि कल शेष बचे ठेकों के लिये अंतिम तीथि है, जिसकी आज अखबारो में गोलमोल विज्ञप्ति प्रकाशन भी किया गया है। अब आबकारी महकमे मे लाॅटरी के लिए अनुज्ञापी परेशान हैं कि आवेदन कैसे करें, क्योंकि कंही से कोई सूचना नही मिल रही है।