गजेंद्र रावत//
इससे पहले नमोनाद के नाम से किसी प्रकार की धुन उत्तराखंड के ढोल-दमाऊं के जानकारों ने नहीं सुनी
मंत्री बनने के बाद सतपाल महाराज की शेष मंत्रियों से अपने को जुदा दिखाने की कोशिश
ढोल जैसी पौराणिक विधा का राजनीतिक इस्तेमाल निंदनीय
हरिद्वार के प्रेमनगर आश्रम मेें नमोनाद का आयोजन करने वाले कितने लोग फ्योंली दास के बारे में जानते हैं! इस आयोजन की गंभीरता तब और बढ़ जाती, यदि इसमें ढोल पर डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू कराने वाले गुरुजनों को भी आमंत्रित किया जाता। फ्योंली दास दरअसल उत्तराखंड में ढोलसागर पर रिसर्च करने वाले अमेरिका के स्टीफन फ्योल हैं, जिन्होंने टिहरी के सोहन लाल और सुकरू दास से ढोल सागर का प्रशिक्षण लिया और सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में ढोल के विषय में बाकायदा पाठ्यक्रम चलाया। गढ़वाल यूनिवर्सिटी में ढोल पर डिप्लोमा शुरू करने वाले डा. डीआर पुरोहित संभवत: समझ नहीं पा रहे होंगे कि उन्हें इस कार्यक्रम से क्यों अलग रखा गया।
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर आने के बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने अपने हरिद्वार स्थित प्रेम आश्रम में सरकारी खर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुणगान से शुरू होने वाला नमोनाद कार्यक्रम शुरू करवाया। हालांकि इससे पहले नमोनाद के नाम से किसी प्रकार की धुन उत्तराखंड के ढोल-दमाऊं के जा
नकारों ने सुनी नहीं थी। सतपाल ने अपने अधीनस्थ संस्कृति विभाग के खर्चे पर लोक गायक प्रीतम भरतवाण से यह धुन तैयार करवाई और फिर सैकड़ों की संख्या में प्रदेशभर से ढोल-दमाऊं वादकों को अपने आश्रम में बुलाया।
काबीना मंत्री बनने के बाद सतपाल महाराज शेष मंत्रियों से अपने को जुदा दिखाने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। एक ओर वे भाजपा के केंद्रीय नेताओं को साधने मेें लगे हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में किसी तरह अपनी जड़ें मजबूत करना चाहते हैं।
डबल इंजन की सरकार में यह पहला अवसर है, जब एक काबीना मंत्री सरकारी खर्चे से अपना और अपने हाईकमान का गुणगान करने के लिए इतना बड़ा आयोजन कर रहा है। हरिद्वार स्थित अपने आश्रम में कार्यक्रम करवाने वाले काबीना मंत्री सतपाल महाराज गुणगान के इस कार्यक्रम में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि राज्य सरकार ने गैरसैंण में बाकायदा एक ढोल प्रशिक्षण केंद्र पहले से ही बना रखा है। आज प्रदेश के सभी पर्वतीय जिलों में ही बहुतायत में ढोल बजाया जाता है, जबकि ढोल मैदानी जिलों में दिखावे और खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं रहा। बंद हॉल में सैकड़ों की संख्या में ढोल बजाने की बात तो पारंपरिक रूप से इस काम को अंजाम देने वाले लोगों की समझ में भी नहीं आई।
राजेश भारती कहते हैं कि ढोल जैसी पौराणिक विधा का राजनीतिक इस्तेमाल निंदनीय है। लाखों भक्तों वाले महाराज भी क्या-क्या राजनीतिक टोटके करने लगे हैं! वह सुझाते हैं कि बेहतर होता इस लोक कला को ढोल सागर ही रहने देते। सोशल मीडिया में इस संबंध में आलोचना के शिकार बने महाराज इस कार्यकम को गिनीज बुक में दर्ज कराने के लिए यह सब कर रहे हैं।
पलायन को लेकर अभियान चला रहे सोशल एक्टिविस्ट रतन सिंह असवाल कहते हैं नमोनाद ढोल की कौन सी विधा है, यह महाराज ही बेहतर बता सकते हैं। वह जोड़ते हैं कि जिसने भी ढोल के साथ मजाक किया है, इतिहास ने उनके साथ अ
च्छा सलूक नहीं किया।
डा. डीआर पुरोहित इस विषय में कुछ भी कहने से भले ही इंकार कर देते हों, लेकिन उनके एक शिष्य का कहना है कि इस आयोजन को यदि एकांगी न बनाकर बहुआयामी बनाया जाता तो अच्छा होगा।
वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट नमोनाद को चारणीनाद और गुणगाननाद की संज्ञा देते हैं तो अजय रावत चुटकी लेते हुए कहते हैं कि यह नाद सात लोक कल्याण मार्ग तक आवाज पहुंचाने के लिए आयोजित किया जा रहा है।
यमुनोत्री से भाजपा के विधायक केदार सिंह रावत का कहना है कि नमोनाद आधुनिक ढपोरशंख ढोल विधा है।
देखना यह है कि नमोनाद की गूंज नमो के कानों में पहुंच भी पाती है या नहीं!