कोरोना काल में राज्य का एक ही महकमा सबसे ज्यादा विवादों में घिरा रहा है। नित नये कारनामों ने जहाँ इसकी साख को झटका दिया है। देशी शराब जो कि श्रमिक वर्ग सेवन करता है, उसे तो सेस के दायरे में लाया गया लेकिन बियर पर कोई सेस क्यों नही लगा, ये बहुत बड़ा सवाल है।
उत्तरप्रदेश की नकल करते हुये राज्य में कोविड सेस तो लगा दिया गया है। लेकिन बियर क्यों किसके कहने पर सूची से गायब हुई ये सवाल है। वहीं हर फैसला और आदेशों में घिरा रहा है। कोविड सेस जो शराब कीमतों पर लगाई गई उस पर सवाल तो थे ही। अब कल शाम जारी नय़े रेट लिस्ट में आबकारी नीति को ही चैंलेंज खुद विभागीय अधिकारियों ने कर दिया है। इन्ही अफसरों ने दो माह पूर्व आबकारी नीति 2020-21 को जारी किया है। दुकानदारों को मिलने वाला मुनाफा घटकर 20 से 15 कुछ ब्रांड में 16 रह गया है। बियर पर कोई कोविड सेस क्यों नही लगाया गया। क्या किसी ग्रुप विशेष को फायदा पंहुचाया गया है।
आबकारी नीति का नियम 12 ये साफ कहता है कि एमआरपी का जो निर्धारण होगा उसमे 20 प्रतिशत लाभ ठेकेदार का होगा। कैसे निर्धारित होगी लागत मूल्य का 20 प्रतिशत लाभ दिया जायेगा। रेट लिस्ट का जो आदेश जारी किया गया है। कोविड सेस प्रति बोतल एमआरपी पर जोड़ा जायेगा।
ज्वाइंट कमिश्नर आबकारी मुख्यालय बीएस चौहान ने कल ही दावा करते हुये कहा था कि बिना सेस जमा किये एफएलटू से अंग्रेजी शराब की निकासी नही होगी। ठीक हुआ भी वैसा ही है। दुकानदार से एडवांस में कोविड सेस जमा करा लिया गया है। दुकानदारों की मजबूरी थी कि उन्हे कोविड सेस जमा ही करना पडा। इससे सीधे सीधे लागत में इजाफा और मुनाफे मे 20 से गिरकर 15 फीसदी से 16 फीसदी रह गया है। चर्चायें ये भी है कि क्या ये भूलवश हुआ कि या इसमें भी कोई राज है।
राज्य के आबकारी महकमे में अगर इस समय कोई विलेन है तो सिर्फ ठेकेदार ।