राजू परिहार
उत्तराखंड में आज अभी तक नौ कोरोना के मामले और सामने आ गए हैं।
इनमें से उधम सिंह नगर से चार, नैनीताल से दो, अल्मोड़ा से एक तथा उत्तरकाशी और हरिद्वार से भी एक-एक मामले सामने आए हैं। गौरतलब है कि उत्तरकाशी और हरिद्वार के मामले देर रात 11:30 बजे ही आ गए थे। इस तरह से आज अभी तक उत्तराखंड में 9 मामले सामने आए हैं और अब कुल आंकड़ा 120 हो गया है। इसके साथ ही अभी तक 53 लोग ठीक हो चुके हैं।
इसके साथ ही उत्तराखंड में बुद्धिजीवियों की भी एक अलग तरह की बहस भी शुरू हो गई है कि आखिर स्वास्थ्य विभाग एक साथ ही दिन में सिर्फ एक बार इन आंकड़ों को सार्वजनिक क्यों नहीं करता ! बार-बार इस तरह की रिपोर्ट आने से एक तरह से सनसनी का माहौल बन रहा है।
सनसनीखेज और डर का माहौल
कोरोना को लेकर उत्तराखंड में भी सनसनीखेज और डर का माहौल हो पैदा हो रहा है। इसमें सरकार की लापरवाही तो है ही, जल्दी बाजी में एक दूसरे से पहले खबर दिखाने की होड़ में मीडिया भी सनसनी पैदा कर रहा है।
सरकार के आधिकारिक हेल्थ बुलेटिन जारी होने से पहले ही मरीजों की ट्रेवल हिस्ट्री सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिससे एक ओर मरीज की पहचान उजागर हो रही है, वहीं इससे एक डर का माहौल पैदा हो रहा है।
लैब और डॉक्टर क्यों कर रहे रिपोर्ट लीक
उत्तराखंड में वर्तमान में चार सरकारी और एक प्राइवेट कोरोना टेस्टिंग लैब हैं।
एम्स ऋषिकेश, दून मेडिकल कॉलेज, सुशीला तिवारी हॉस्पिटल हल्द्वानी तथा श्रीनगर बेस अस्पताल सहित एक प्राइवेट लैब अहूजा पैथोलॉजी लैब है।
हालत यह है कि इन लैब के द्वारा दी गई रिपोर्ट स्वास्थ्य निदेशालय भी नहीं पहुंचती हैं, उससे पहले मीडिया में जारी हो जाती हैं।
एक से अधिक स्रोतों से कोरोना के मरीजों की सूचना मिलने से अनिश्चितता तथा अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है।
सरकार खुद दिन में तीन चार बार क्यों दे रही आंकड़े
खुद सरकार ही कई बार तीन चार बार तक एक दिन में मेडिकल बुलेटिन जारी कर रही है। इससे भी दिनभर कोरोना की खबरें ही छाई रहती हैं।
यदि सरकार यह तय कर देगी कि स्वास्थ्य विभाग कोरोनावायरस की बुलेटिन सिर्फ एक दिन में एक बार शाम को 8:00 बजे जारी करेगा तो करोना को लेकर व्यर्थ की सनसनी फैलने से काफी हद तक रोक लग सकेगी। यदि शाम को एक बार ही रिपोर्ट जारी की जाएगी तो फिर न्यूज़ पोर्टल भी दिन भर अपने स्रोतों से प्राप्त जानकारी को तब तक और अधिक पुख्ता और सही से विश्लेषण करके प्रस्तुत कर पाएंगे।
इसके साथ ही सभी मेडिकल लैब और स्वास्थ्य विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों को भी मरीजों की ट्रेवल हिस्ट्री लीक करने से रोकने को लेकर कठोर गाइडलाइन जारी कर दी जाए तो इस पर रोक लगेगी।
इस बात से किसी का भी भला नहीं है कि एक दिन में कितनी बार कोरोना के मरीजों की संबंध में जानकारी मीडिया में आती है।
सनसनी से डर। डर से आगे पेरासिटामोल
किंतु जब तक इस पर रोक की गाइडलाइन नहीं है, तब तक किसी को रोका भी नहीं जा सकता।
ऐसी अफवाहों और सनसनी के कारण यह भी सुनने में आ रहा है कि बाहर से आ रहे कई प्रवासी पेरासिटामोल का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि उनका तापमान स्क्रीनिंग के समय कम रहे और वे संस्थागत स्कूल, पंचायत घरों में क्वॉरेंटाइन होने के बजाय आराम से अपने घरों में क्वॉरेंटाइन हो सके।
संस्थागत क्वॉरेंटाइन सेंटरों की बदहाली के चलते वे अपने घरों में पहुंचने के लिए इस तरह की जुगत करते हैं। किंतु इससे कोरोना के फैलने का खतरा काफी बढ़ गया है।
प्रवासियों को सैंपल लेकर रिपोर्ट आने तक बॉर्डर पर ही क्यों नहीं रुकवाते
इसके साथ ही सरकारी लापरवाही की हद यह है कि जिन लोगों में कोरोना के लक्षण देखकर उनके सैंपल लिए जा रहे हैं उन्हें बॉर्डर पर ही क्वॉरेंटाइन करने के बजाए घर भेज दिया जा रहा है और जब घर पहुंच कर उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तब फिर से उसकी ट्रैवल हिस्ट्री की खोजबीन के लिए दौड़-धूप शुरू हो जाती है जबकि होना यह चाहिए कि जितनी भी लोगों की लक्षण दिखने पर सैंपलिंग की जा रही है। उन्हें रिपोर्ट आने तक बॉर्डर पर ही दो-तीन दिन आइसोलेट करके रखा जाना चाहिए किंतु इतनी चूक से बहुत बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है।
आज ही हाईकोर्ट ने उत्तराखंड लौट रहे प्रवासियों को प्रदेश की सीमा पर ही क्वॉरेंटाइन करने के निर्देश जारी किए हैं। देखने वाली बात होगी कि सरकारी सिस्टम से और अपने साधनों से गुप चुप आ रहे ऐसे लोगों पर सरकार किस तरीके से सतर्कता बरतती है।
आने वाला वक्त कोरोना की सनसनी में जीने का नहीं बल्कि इसे गंभीरता से लड़ने का हो गया है।
कल तक कोरोना से दूर थे आज साये मे हैं
सनसनी में किसका फायदा है
देश के कोने-कोने में कोरोना संक्रमित पाए जा रहे हैं और यहाँ भी बाहर से वापस लौटे कुछ लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए तो इसमें बहुत अधिक हैरानी की क्या बात हो गयी ? सभी चाहते हैं कि उनके यहाँ,कोरोना का प्रवेश ना हो, लेकिन हमेशा वैसा नहीं हो पाता,जैसा हम चाहते हैं। कोरोना संक्रमितों के ईलाज हेतु शासन-प्रशासन की अपने स्तर से तैयारियां हैं और संक्रमितों के ईलाज हेतु व्यवस्थाएं की गयी हैं और उनका ईलाज भी हो रहा है। अब ऐसी परिस्थितियों में क्या जरूरी है ? खुद जागरूक रहकर औरों को भी जागरूक करना जरूरी है या गैर जिम्मेराना हरकतें कर,आम जनता के मध्य भय का वातावरण बनाना जरूरी है ?
ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं,जो कोरोना वायरस को लेकर अपनी गैर जिम्मेराना हरकतों से आम जनता के बीच भय,अफरा-तफरी का माहौल बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं।जबकि ऐसे माहौल में ऐसी हरकतें करने के बजाय आम जनता के मध्य सकारात्मक वातावरण बनाने और उन्हें जागरूक करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।