बेरोजगारों के साथ साजिश : शहरी विकास की भर्ती में साजिशन आरक्षण का पालन नहीं !! ताकि यह भर्ती भी रद्द हो जाए !!!
-वाई एस पांगती (पूर्व निदेशक अर्थ एवं सांख्यिकी)
राज्य सरकार ने शहरी विकास विभाग में भर्ती निकाली है। लेकिन इसमें 142 पदों में से सिर्फ 2 पद आरक्षित करके बाकी सभी पद जनरल कैटेगरी के लिए तय किए हुए हैं।
अब इसमें 47% आरक्षण की व्यवस्था न होने से जैसे ही इन पदों की भर्ती प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, आरक्षण से वंचित अभ्यर्थी कोर्ट चले जाएंगे और यह भर्ती भी लटक जाएगी।
इन पदों के लिए हजारों अभ्यर्थियों ने फार्म भरा होगा तथा अपना समय तथा धन लगाया होगा। इन सब की बर्बादी का कौन जिम्मेदार होगा !
आखिर ऐसा क्यों किया गया है ? अहम सवाल यह है कि क्या खुद सरकारी नौकरियां कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों को इतनी सी बात का पता नहीं है कि भर्तियां निकालते समय आरक्षण रोस्टर का पालन करना होता है ?
क्या यह बेरोजगारों के साथ बहुत बड़ी साजिश है कि रोजगार का शोर मचा रहे बेरोजगारों को कुछ दिन इसी तरह से उलझा कर रखा जाए और सरकार अपने शेष डेढ़ साल पूरे कर ले !
उत्तराखंड में 47% आरक्षित वर्ग सरकार की व्यवस्था से वंचित है। जुलाई महीने में शहरी विकास विभाग द्वारा लेखा लिपिक के 142 पदों की भर्ती करने के लिए विज्ञप्ति जारी की गई थी।
यह पद नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों के लिए वर्ष 2015 में सृजित किए गए थे और इन पदों की नियमावली 2017 में बनाई गई और जुलाई 2020 में 142 पदों की भर्ती शुरू की गई।
जिसमें से 140 पद सामान्य वर्ग के लिए तथा एक-एक पद अनुसूचित जाति व ओबीसी के लिए आरक्षित की गई है।
यह सभी पद राज्यस्तरीय काडर के हैं।
इनकी नियुक्ति, जेष्ठता निदेशालय शहरी विकास विभाग द्वारा बनाई जाएगी।
निदेशालय द्वारा राज्य के अधीन आरक्षण का रोस्टर लागू नहीं करने से सभी आरक्षित वर्ग वंचित रह गए।
ऐसे समझिए पूरा मामला
उक्त पदों में रोस्टर के अनुसार सामान्य वर्ग 75, अनुसूचित जाति-27, जनजाति-6, ओबीसी-20 और ईडब्ल्यूएस-14 के अनुसार भर्ती की जानी थी।
ऐसा न होने से सभी 47 प्रतिशत आरक्षित वर्ग के संगठनों में रोष व्याप्त है।
सरकार को तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के लिए लिखा है। यह सभी पद अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परिधि के पद हैं।
विभाग में इस संवर्ग के कुल 203 पद अकेंद्रीयकृत संवर्ग में है, जिसमें से 30% विभागीय संवर्ग के लिए यानी 61 पद हैं और सीधी भर्ती के 142, इस प्रकार कुल 203 पद सृजित हैं।
सवाल यह है कि यदि विभाग रोस्टर प्रणाली का प्रयोग गलत ढंग से करके नुकसान पहुंचाएंगे तो बेरोजगार युवक न्यायालय अवश्य जाएंगे और सरकार के उद्देश्य पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा।
लापरवाही या साजिश
क्योंकि सरकार ने रोजगार वर्ष घोषित किया है।
वैसे भी यह पद 15 वर्ष बाद सृजित हुए हैं और नियमावली 17 वर्ष बाद बनी तथा भर्ती 20 वर्ष बाद हो रही है। फिर भी इन भर्तियों पर पहले ही न्यायालय के रास्ते निरस्तीकरण की तलवार लटक सकती है।
उठने लगी आपत्ति
एक सामान्य बुद्धि से निचले स्तर का व्यक्ति का दिमाग भी इस बात को लेकर ठनक सकता है कि आखिर सरकार चाहती क्या है !
गंभीर सवाल यह भी है कि क्या शासन और प्रशासन को भी इस बात का मालूम नहीं है कि यह भर्तियां बिना आरक्षण रोस्टर तय किए हुए निकाले जाने पर कोर्ट में अटक सकती है !
क्या कार्मिक विभाग सरकार और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को भी कुछ पता नहीं है ! आखिर सब के सब कितने अंधे कैसे हो सकते हैं !
यह लापरवाही है तो आपराधिक है तथा साज़िश है तो और भी अधिक दंडनीय है।