एक्सक्लूसिव : जल संस्थान में कनिष्ठ अभियंता और सहायक अभियंता की बैक डोर भर्तियां
पिछले दिनों उत्तराखंड सरकार ने उपनल को पूर्व सैनिकों के अलावा जनरल कैटेगरी के लिए भी खोल दिया था। लीजिए अब उसके रुझान भी आने शुरू हो गए हैं।
उत्तराखंड जल संस्थान में कनिष्ठ अभियंता के पद पर तीन लोगों को तैनात किया गया है तथा सहायक अभियंता के पद पर 7 लोगों को नौकरियां दी गई है।
गौरतलब है कि इन भर्तियों के लिए जल संस्थान ने कोई विज्ञप्ति नहीं निकाली थी।
पर्वतजन ने अपनी तस्दीक में यह पाया कि 2-3 को छोड़कर बाकी का सैनिकों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।
इन भर्तियों से बेरोजगार अपने आप को ठगे हुए महसूस कर सकते हैं।
लॉक डाउन का डर दिखाकर उत्तराखंड सरकार ने पुलिस का ऐसा जंगलराज मचाया हुआ है कि कोई व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन भी करना चाहे तो भी नहीं कर सकता।
कुछ दिन पहले देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा की बिटिया को पीआरडी से लेखाकार के पद पर तैनाती के बाद जो बवाल हुआ था, लगता है उत्तराखंड सरकार प्रचंड बहुमत के इतने प्रचंड घमंड में डूब गई है कि उसे परवाह नहीं है कि जनता क्या सोचती है !
त्रिवेंद्र सरकार ने बड़ी बेशर्मी से आगे बढ़ते हुए उपनल को भी पूर्व सैनिकों के साथ साथ बाकी सभी के लिए खोल दिया ताकि पहुंच वाले और अपने चहेतों को नौकरियां दी जा सके।
इन बैक डोर भर्तियों पर कुछ अहम सवाल खड़े होते हैं
पहला सवाल यह है कि जल संस्थान में यदि पदों की आवश्यकता थी तो फिर जल संस्थान ने विज्ञप्ति प्रकाशित करने के बजाय उपनल से वेकेंसियां क्यों मांगी ?
दूसरा सवाल यह भी है कि संविधान के मूलभूत अधिकारों के अनुसार रोजगार के लिए सभी को समान अवसर मिलने चाहिए किंतु सरकार ने इन भर्तियों के लिए सभी को जानकारी देने के बजाय सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही जॉइनिंग लेटर भेजा है , आखिर क्यों ?
तीसरा सवाल यह है कि सेवायोजन कार्यालयों में उत्तराखंड के लाखों बेरोजगारों ने अपना पंजीकरण करा रखा है यदि कनिष्ठ अभियंता और सहायक अभियंता के पदों के लिए भी उपनल के माध्यम से ही बैक डोर भर्तियां होनी है तो फिर सेवायोजन कार्यालयों में भारी-भरकम तनख्वाह पर अधिकारी कर्मचारियों को कुर्सी तोड़ने के लिए क्यों बिठा रखा है ?
चौथा सवाल है कि कनिष्ठ अभियंता और सहायक अभियंता के पद राज्य लोकसेवा अथवा अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पद हैं। यदि इन पदों पर उपनल के माध्यम से ही भर्तियां होनी है तो फिर बेरोजगारों को बता क्यों नहीं दिया जाता कि वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए अपने समय ,धन और स्वास्थ्य की बर्बादी ना करें ?
पांचवा सबसे अहम सवाल यह है कि आउटसोर्सिंग के भर्तियों में सूचित जाति जनजाति पिछड़ा वर्ग महिला तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। जाहिर है कि यदि इसी तरह से भर्तियां होंगी तो फिर यह सभी वर्ग विधान में प्रदत सुविधा से वंचित रह जाएंगे।
पर्वतजन ने जब एक अभ्यर्थी को उसकी नियुक्ति के बारे में पूछा तो उसने तो खुद ही आश्चर्य से जवाब दिया कि उसे तो खुद ही पता नहीं है कि उसकी जॉब कहां लगी है और लगी भी है कि नहीं लगी है।उसे खुद इस बात का आश्चर्य हुआ।
ऐसे में आप समझ सकते हैं कि कुछ लोग तैयारियां करते हुए ओवर एज हो गए लेकिन भर्तियां कभी मुख्यमंत्री की अखबारी बयानबाजियों के अलावा धरातल पर नहीं उतरी। वहीं कुछ लोगों को थाली में परोस कर नौकरियां दी जा रही है और उन्हें भी इस की कदर तक नहीं।
वाकई प्रचंड बहुमत का इससे प्रचंड उदाहरण कहीं और देखना मुश्किल है।